South Films Craze: एक्टर सलमान खान वास्तव में बॉलीवुड के ‘भाईजान’ कब बने थे? उनको ये टाइटल ‘एक था टाइगर‘ या ‘दबंग‘ जैसी फ़िल्मों से नहीं मिला था, बल्कि इसका सारा क्रेडिट साल 2009 में रिलीज़ हुई उनकी मूवी ‘वांटेड’ को जाता है. ये मूवी महेश बाबू स्टारर तेलुगू फ़िल्म ‘पोकिरी’ की रीमेक थी, जिसने सलमान को सुपर-स्टारडम तक पहुंचा दिया. काफ़ी लंबे समय से बॉलीवुड की सबसे मसालेदार मूवीज़ या तो रीमेक रही हैं या साउथ सिनेमा से इंस्पायर्ड हैं. डायरेक्टर रोहित शेट्टी और उनकी फ़िल्मों में उड़ती हुई कार्स को ही देख़ लीजिये. आप समझ जाएंगे कि हम क्या कहना चाह रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि साउथ सिनेमा में एक गज़ब टाइप का रोमांच है, जिस तक बॉलीवुड बेसब्री से पहुंचना चाहता है.  

लेकिन अब समय बदल गया है. बीते कुछ सालों में नॉर्थ इंडियन का झुकाव तेज़ी से साउथ सिनेमा की ओर बढ़ा है. लोग फ़ैमिली के साथ बड़े चाव से साउथ इंडियन मूवीज़ का लुत्फ़ उठाते हैं. आइए 6 पॉइंट्स में जानते हैं इसके पीछे की वजहें.

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1. बॉलीवुड फ़िल्मों में सिर्फ़ मॉडर्न टच देने पर ज़ोर

साउथ की फ़िल्में एक्शन, ड्रामा और इमोशन से लबरेज़ होती हैं. इसमें गांव से शुरू हुई हीरो की कहानी बड़े शहर तक पहुंचती है. इससे दर्शकों को मॉडर्न और लोकल दोनों का फ़ील आता है. लेकिन बॉलीवुड की फ़िल्मों की कहानी इससे बिल्कुल उलट है. ज़्यादातर हिंदी फ़िल्मों में गांव और परंपरा का एंगल मिसिंग लगता है. ज़्यादातर उत्तर भारत की आत्मा गांव में ही बसती है. भले ही कई लोग गांव से शहर में पलायन कर चुके हैं, लेकिन उनकी जड़ें अभी भी गांव से जुड़ी हुई हैं.

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2. साउथ फ़िल्में दे रही हैं फ़्री का एंटरटेनमेंट

आपने गौर किया होगा कि ज़्यादातर टीवी चैनल्स साउथ की डब फ़िल्में प्रसारित करते हैं. इसकी वजह साउथ फ़िल्मों के ब्रॉडकास्टिंग राइट का कम रुपये ख़र्च करके हासिल होना है. यूट्यूब पर भी साउथ की हिंदी में डब फ़िल्मों की भरमार है. जबकि बॉलीवुड मूवीज़ देखने के लिए आपको जेब से पैसे ख़र्च करने पड़ते हैं. यही वजह है कि गांव से लेकर शहर के लोगों को साउथ मूवीज़ का चस्का लग चुका है. अमिताभ बच्चन की साउथ प्रोडक्शन फ़िल्म सूर्यवंशम इसका सटीक उदाहरण है. रिलीज़ के वक्त थिएटर में इसे पसंद नहीं किया गया था, लेकिन जब इसे 20 साल बाद सैटेलाइट पर टेलीकास्ट किया गया. तो ये टीवी के इतिहास में सबसे ज़्यादा देखी जाने वाली फ़िल्म बन गई. (South Films Craze)

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3. बॉलीवुड में स्टार पॉवर मिसिंग

बॉलीवुड, टॉलीवुड, हॉलीवुड किसी भी इंडस्ट्री की बात कर ली जाए, यहां हमेशा स्टारडम क़ायम रहा है. बॉलीवुड के इतिहास में सलमान खान, अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ खान जैसे कई ऐसे सुपरस्टार्स रहे हैं, जिनके नाम से ही थिएटर्स में दर्शकों की भीड़ खिंची चली आती थी. लेकिन वक्त बदला और अब स्थिति पहले से काफ़ी बदल चुकी है. सुपरस्टार्स अब केवल स्टार्स बन कर रह गए हैं. इनकी बकवास फ़िल्मों से दर्शक मुंह फ़ेर रहे हैं. लेकिन साउथ इंडस्ट्री में स्टारडम का रुतबा अब भी कायम है. पवन कल्याण, सूर्या, अल्लू अर्जुन, विजय देवरकोंडा ये कुछ ऐसे नाम हैं, जिनका स्टार पॉवर फ़िल्में हिट कराने के लिए काफ़ी है. हिंदी सिनेमा के दर्शकों पर भी उनका क्रेज़ चढ़ता ही जा रहा है.

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4. तकनीक और स्क्रिप्ट में साउथ ने की तरक्की

वो साउथ सिनेमा ही है, जिसने 2 महीने में फ़िल्म की शूटिंग पूरी करने का कॉन्सेप्ट बॉलीवुड को दिया है. ऐसे कई बॉलीवुड स्टार्स हैं, जो साउथ फ़िल्मों के बलबूते ही हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह मज़बूत कर पाए हैं. ऐश्वर्या राय, दीपिका पादुकोण जैसी एक्ट्रेसेस का नाम इनमें शामिल है. साउथ फ़िल्मों की रीमेक की डिमांड बॉलीवुड में ज़ोरों-शोरों से बढ़ी है. हम इसी से अंदाज़ा लग़ा सकते हैं कि स्क्रिप्ट के मामले में साउथ सिनेमा आज किस लेवल पर है. इसके साथ ही साउथ फ़िल्मों में ज़बरदस्त सिनेमाटोग्राफ़ी बॉलीवुड के बस की बात नहीं लगती. (South Films Craze)

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5. बॉलीवुड में रिमिक्स और रीमेक का बोलबाला

किसी भी गाने को सुपरहिट कराना है, तो मेहनत क्यूं करनी पुराने गानों का रिमिक्स डाल दो. अब ज़्यादातर बॉलीवुड फ़िल्मों की यही कहानी है. म्यूज़िक डायरेक्टर ओरिजिनल गाने कंपोज़ करने से बचना चाहता है. पुराने सुपरहिट गानों के दम पर वो अपनी लेटेस्ट फ़िल्म हिट कराना चाहता है. शायद ही आजकल ऐसा कोई गाना आया हो, जो लोगों की जुबां पर लंबे समय तक टिका रहे. इसलिए लोग पंजाबी और भोजपुरी गानों की धुन पर ज़्यादा थिरक रहे हैं. साथ ही साउथ की सुपरहिट मूवीज़ का रीमेक बनाना तो जैसे बॉलीवुड डायरेक्टर्स का नया पैशन बन चुका है. हिंदी फ़िल्मों में ओरिजिनल स्क्रिप्ट्स का अकाल पड़ गया है और इस ट्रेंड को बदलने की बेहद ज़रूरत है.   

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6. लोगों को पसंद आ गई साउथ की क्रिएटिविटी

एक आंकड़ों की मानें तो हिंदी फ़िल्मों की क़रीब 22 फ़ीसदी कमाई का हिस्सा मुंबई से आता है. इसलिए ज़्यादातर हिंदी फ़िल्में मुंबईकरों को ध्यान में रख़ कर बनाई जाती हैं. सिंगल स्क्रीन के दर्शक हिंदी बेल्ट से कम हो रहे हैं और मल्टीप्लेक्स सिनेमा पर ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है. बात करें एस. एस. राजामौली की ‘बाहुबली‘ सीरीज़ की, तो दोनों फ़िल्मों ने नॉर्थ इंडिया में धूम मचा दी थी. हाल ही में फ़िल्म ‘पुष्पा‘ के हिंदी वर्ज़न ने क़रीब 80 करोड़ की कमाई की है. आलम ये रहा है कि इसका असर रणवीर सिंह की ‘83‘ पर पड़ा और इसे बॉक्स ऑफ़िस से हटाना पड़ा. मतलब साफ़ है कि हिंदी बेल्ट के दर्शकों पर साउथ फ़िल्मों का नशा सिर चढ़ कर बोल रहा है. (South Films Craze)

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आने वाले समय में साउथ फ़िल्मों का फ्यूचर कुछ ज़्यादा ही ब्राइट दिख़ रहा है.