कहते हैं फ़िल्म समाज का आईना होती हैं. कई दफ़ा बॉलीवुड ने कहानियों के ज़रिये हमें शीशा दिखाने की कोशिश की है. हालांकि, कई बार फ़िल्में अपनी सीमा पार कर देती हैं. ऐसा सेंसर बोर्ड को लगता है. इसलिये फ़िल्में रिलीज़ से पहले ही कंट्रोवर्सी में आती हैं. वहीं बॉलीवुड वालों का कहना है कि उन्हें फ़िल्म बनाने की स्वंत्रता चाहिये. वो इसलिये, क्योंकि रचनाओं की सीमा तय नहीं की जा सकती.

काफ़ी सालों से चल रही इस मांग पर अब तक सुनवाई नहीं हुई है. यही वजह है कि अच्छे कंटेंट वाली फ़िल्म इंडिया में लटका दी जाती हैं, पर विदेशों में तारीफ़ बाटोर लाती हैं. जैसे कि ये फ़िल्में:

1. वॉटर (Water) 

दीपा मेहता द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में बनारस की विधावाओं के जीवन का वर्णन किया गया था. विवादों में घिरी फ़िल्म को 2007 में ‘U’ सर्टीफ़िकेट के साथ रिलीज़ किया गया. जिस फ़िल्म के लिये भारत में बवाल हुआ, उसे Toronto International Film Festival और Bangkok International Film Festival में तारीफ़ें मिलीं.

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2. पांच (Paanch)

हिंसा, ड्रग्स और गाली की वजह से फ़िल्म को CBFC सर्टीफ़िकेट देते हुए तहत ग़लत बताया गया. काफ़ी विरोध और कट्स के बाद 2001 में इसे रिलीज़ करने की परमिशन मिली. पर फ़िल्म रिलीज़ करना भी निर्देशकों के लिये आसान नहीं रहा. वहीं ‘पांच’ को Filmfest Hamburg, Asian’s Cinefan Festival of Asian & Arab Cinema और Indian Film Festival of Los Angeles में ख़ूब सराहा गया.

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3. छत्रक (Chatrak)  

Vimukthi Jayasundara की बंगाली फ़िल्म की शूटिंग कोलकाता में हुई थी. ऐसा कहा गया कि फ़िल्म के ज़रिये न्यूडिटी परोसी जा रही थी. फ़िल्म को भारत में जगह नहीं मिली. पर उसे 2011 Cannes Film Festival में ख़ूब प्यार मिला. फ़िल्म ने 2011 Toronto International Film Festival और Pacific Meridian film festival, Russia में ख़ूब तारीफ़ें पाईं.

4. लिप्सटिक अंडर मॉय बुर्का (Lipstick Under My Burkha) 

‘Lipstick Under My Burkha’ एक डार्क फ़ीचर फ़िल्म है, जिसे देख कर आप सामाजिक हकीकत से रू-ब-रू हो पायेंगे. इस फ़िल्म को लेकर भी भारत में काफ़ी विरोध हुआ. वहीं Gender Equality के लिये उसे Prestigious Spirit of Asia Prize और The Oxfam Award की तरफ़ से बेस्ट फ़िल्म घोषित किया गया. टोक्यो और मुंबई फ़िल्म फ़ेस्टिवल में भी फ़िल्म को बहुत प्रशंसा मिली.

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5. द पिंक मिरर (The Pink Mirror) 

‘No-Homo’ का हवाला देते हुए इस फ़िल्म को भी प्रतिबंधित कर दिया गया था. इसके बाद फ़िल्म ने ‘Question De Genre Lill’ में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का अवॉर्ड जीता. 18th Turin International Gay & Lesbian Film Festival और San Francisco International Lesbian & Gay Film Festival में भी फ़िल्म को पसंद किया गया.  

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6. अनफ़्रीडम (Unfreedom) 

फ़िल्म की कहानी इस्लामिक कट्टरपंथी पर आधारित थी. इसमें समलैंगिक रिश्ते को भी दिखाया गया था. बस यही बात सेंसर बोर्ड को पसंद नहीं आई और इसे बैन कर दिया. इंडिया में न सही पर ‘Unfreedom’ उत्तरी अमेरिका में रिलीज़ हुई. फ़िल्म Indie Gems, Portland Film Fest और Chelsea Film Festival में भी सेलेक्ट हुई थी.

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7. गांडू (Gandu) 

हिंदुस्तानियों के मुताबिक, फ़िल्म में Sexual सीन्स ज़्यादा थे, जिस वजह से लोगों ने फ़िल्म का विरोध किया और कहानी नहीं चल पाई. Osian Film Festival में फ़िल्म की सार्वजनिक स्क्रानिंग हुई और तारीफ़ भी. 

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8. परज़ानिया (Parzania)

‘परज़ानिया’ एक ऐसे लड़के की कहानी होती है, राज्य के दंगों के दौरान अपने परिवार से बिछड़ जाता है. कंटेंट की वजह से फ़िल्म गुजरात में बैन हुई, जिसे 36th India International Film Festival (2005) में बहुत तारीफ़ मिली. फ़िल्म की लीड एक्ट्रेस और निर्देशक दोनों को बेहतरीन काम के लिये लोटस अवॉर्ड भी मिला था.

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इन फ़िल्मों की कहानी अच्छी थी, लेकिन शायद आज भी हम ऐसी कहानियों को अपना नहीं पाये हैं. इसलिये जिस चीज़ को देश ने नकारा, उसे विदेशियों ने अपनाया. फ़िल्में ऑनलाइन मौजूद हैं, आप चाहें तो देख सकते हैं.