आज के राजनीतिक हालातों में गाय एक अहम मुद्दा है. हालांकि चार राज्यों में हुए चुनावों के बाद इस मुद्दे से राजनीति ने थोड़ी दूरी ज़रूर बना ली है, पर आज भी इसका इस्तेमाल जहां-तहां देखने को मिल ही जाता है. अब जैसे बाबा रामदेव को देख लीजिये, जिन्होंने गौ मूत्र को कांच की शीशियों में बंद करके लोगों के घरों तक पहुंचा दिया. ऐसे में अपने आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर जी भी कैसे पीछे रह सकते हैं.

सोशल मीडिया में ‘श्री श्री इंस्टिट्यूट ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंसेज़ एंड टेक्नोलॉजी‘ के एक कोर्स की तस्वीर वायरल हो रही है, जिसके अजीबो-गरीब फै़क्ट्स को पढ़ कर सिर्फ़ वैज्ञानिकों के ही नहीं, बल्कि गौ पालकों की आंखें भी घायल हो गई हैं.

इंस्टिट्यूट के डाटा के मुताबिक, देशी गाय और विदेशी नस्ल की गाय के बीच, जो अंतर बताया गया है उनमें से एक है कि:

  • देशी गाय के अंदर महसूस करने की क्षमता होती है, वो चीज़ों को पहचान सकती है. इसके साथ ही उसके अंदर एक मज़बूत भावना होती है.
  • वहीं विदेशी गाय में न ही कोई भावना होती है और न ही कोई समझ. इसके साथ ही वो कहते हैं कि ये ईमानदार भी नहीं होती.

देशी गाय की भैंस से तुलना करते हुए इंस्टिट्यूट कहता है कि:

  • देशी गाय बहुत समझदार और ईमानदार होती है, जबकि भैंस बेवकूफ़ होती है.
  • इसके साथ ही इंस्टिट्यूट का एक फ़ैक्ट्स कहता है कि गाय का बच्चा अपनी मां को पहचानता है और उसी का दूध पीता है. जबकि भैंस का बच्चा किसी भी भैंस के थन से दूध पी लेता है.

ख़ैर, ये तो पता नहीं कि इंस्टिट्यूट ने ये बात किस रिसर्च पर कही है, पर इंस्टिट्यूट के इन फै़क्ट्स को पढ़ कर बस यही बात कहने का दिल करता है, गुरु जी जानवर को जानवर ही रहने दो. क्यों उन्हें भी जातिवाद के आधार पर बांट रहे हो.