Bipolar Disorder: बाइपोलर डिसऑर्डर, एक ऐसी मानसिक बीमारी (mental illness) जिससे हर 150 में से 1 भारतीय पीड़ित है. मगर फिर भी ज़्यादातर लोग इसके बारे में नहीं जानते. हमारे आसपास अगर इस डिसऑर्डर से पीड़ित शख़्स होता है तो हम उसके व्यवहार को अजीब समझ कर या तो इग्नोर कर देते हैं या फिर उसकी हंसी उड़ाते हैं. इसी जागरूकता की कमी की वजह क़रीब 70 फ़ीसदी लोगों का तो इलाज भी नहीं हो पाता.

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ऐसे में आज हम आपको इस मानसिक डिसऑर्डर से जुड़ी हर ज़रूरी जानकारी देंगे-

क्या होता है बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder)?

हेल्थ वेबसाइट हेल्थलाइन के मुताबिक, जब शरीर में डोपामाइन हार्मोन का बैलेंस बिगड़ जाता है, तब इंसान बाइपोलर डिसऑर्डर का शिकार होता है. क्योंकि, डोपामाइन हार्मोन का बैलेंस बिगड़ने से इंसान का व्यवहार बदल जाता है. जो इस डिसऑर्डर से पीड़ित होता है, उसे भयंकर मूड स्विंग्स होते हैं. साथ ही, दो तरह के डिप्रेशन के दौरे पड़ते हैं.

हो सकता है कि पीड़ित व्यक्ति बेहद फुर्तीला महसूस करे या वो बिल्कुल ही शांत और उदास हो जाए. इन दोनों स्थितियों को हाइपरमेनिया और हाइपोमेनिया कहते हैं.

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हाइपरमोनिया में क्या होता है?

इसमें इंसान बिल्कुल बेकाबू हो जाता है. उल्टे-सीधे काम करता है, आतार्किक बातें करता है. वो कुछ भी सोच-समझ कर नहीं करता. ऐसे व्यक्ति का हक़ीक़त से कोई लेना-देना नहीं होता और लगातार काम करता है. वो न तो ढंग से नींद लेता है और न ही एक जगह चैन से बैठता है.

इतना ही नहीं, वो बिना सोचे-समझे ख़र्चे करता है. क़रीब हफ़्ते भर तक वो इसी मूड में रहता है. अगर हफ़्ते भर से ज़्यादा वो हरकतें जारी रखता है तो मतलब है कि उसे मेनिया या तेज़ी का दौरा पड़ा है. इसमें अलग-अलग तरह के लक्षण देखने को मिलते हैं. मसलन, सेक्स को लेकर शख़्स ज़्यादा आकर्षित रहेगा. शराब-सिगरेट ज़्यादा पिएगा, बिना मतलब रोड ट्रिप पर निकल जाएगा, जॉब छोड़ देगा, बिना मतलब शॉपिंग करेगा.

हाइपोमेनिया में क्या होता है?

हाइपोमेनिया में इसका बिल्कुल उलट होता है. ऐसा व्यक्ति बहुत शांत और उदास महसूस करता है. वो दिन-रात एक कोने में बैठा रहेगा. रोएगा और हर वक़्त बिस्तर पर पड़ा रहेगा. उसका किसी काम में मन नहीं लगता. न बाहर जाने में और न ही किसी से बात करने में. ऐसा शख़्स फ़ैसले नहीं ले पाता. सुसाइड के विचार आते हैं. वो या तो बहुत कम सोएगा या बहुत ज़्यादा सोने लगेगा. उसका भूख और वज़न भी कम होने लगता है.

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हेल्थ एक्स्पर्ट्स के मुताबिक, बाइपोलर डिसऑर्डर किसी भी उम्र के शख़्स को हो सकता है. आमतौर पर 20 से 30 की उम्र में इसके होने की ज़्यादा संभावना रहती है. बच्चों में भी ये मानसिक समस्या हो सकती है, लेकिन उसकी पहचान करना मुश्किल होता है. वजह है कि बच्चों का मूड वैसे भी बदलता रहता है. वो ज़्यादा एक्टिव और अटेंशन सीकर होते हैं. हालांकि, अगर ये मूड स्विंग्स बहुत ज़्यादा हों तो डॉक्टरों की सलाह लेनी चाहिए.

क्या है इसका इलाज?

बाइपोलर डिसॉर्डर का ऐसा कोई इलाज नहीं है, जिससे इसे पूरी तरह ख़त्म किया जा सके. हालांकि, दवाओं और थेरेपी से इस पर कंट्रोल किया जा सकता है. अगर कोई लगातार थेरेप करवाता है तो वो नॉर्मल लाइफ़ जी सकता है. डॉक्टर हमारे मष्तिष्क की झिल्ली में डोपेमाइन की मात्रा को संतुलित करने के लिए स्टेबिलाइजर का इस्तेमाल करते हैं. इससे बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं.

अगर कोई शख़्स बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित है तो फ़ैमिली सबसे बड़ा सपोर्ट बनती है. शख़्स के साथ बने रहना, उसकी देखभाल करना ज़रूरी है. अगर उसे क्रिएटिव चीज़ों में लगाया जाए तो और बेहतर रहता है. साथ ही, ये भी ध्यान रखना कि जब व्यक्ति संतुलित न हो, तब उसका ख़ासतौर से ध्यान रखें. क्योंकि, वो सुसाइड करने जैसे कदम उठा सकता है. या किसी दूसरे को नुक़सान पहुंचा सकता है.

बता दें, हाल ही में ओडिशा के स्वास्थ्य मंत्री नब दास की एक पुलिस कर्मचारी ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. हत्या के आरोपी ASI गोपाल दास को बाइपोलर डिसऑर्डर से ही पीड़ित बताया जा रहा है. हालांकि, अभी इस बारे में कुछ भी कंफ़र्म नहीं है.

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