औरंगज़ेब (Aurangzeb) को धार्मिक रूप से कट्टर मुगल शासक के तौर देखा जाता है. वजह है कि उसके वक़्त में कई क्रूर घटनाएं हुई थीं. इनमें से एक सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर (Guru Tegh Bahadur) की निर्मम हत्या भी शामिल है. दिल्ली के चांदनी चौक पर हुई इस घटना के बाद औरंगज़ेब ने शव तक ले जाने नहीं दिया था. हालांकि, एक शख़्स ऐसा था, जिसने औरंगज़ेब की नाक के नीचे से गुरु तेग बहादुर का पार्थिव शरीर निकाल लाया था. इस बहादुर शख़्स का नाम था ‘बाबा लक्खी शाह बंजारा’(Baba Lakhi Shah Vanjara) जिन्हें लोग ‘लाखा बंजारा’ नाम से जानते हैं.

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आइए जानते हैं इस पूरी घटना के बारे में-

जब हिंदू ब्राहम्णों के बचाव में आए गुरु तेग बहादुर

साल था 1675. गुरु तेग बहादुर असम और बंगाल की यात्रा पर थे. वहां उन्हें मालूम पड़ा कि मुगल शासक औरंगज़ेब ने हिंदू ब्राहम्णों को प्रताड़ित करने का आदेश दिया है. उस दौरान सैकड़ों ब्राह्मणों को जेल में डाल दिया गया था. आदेश था कि अगर इस्लाम क़ुबूल कर लिया तो छोड़ दिया जाए, वरना प्रताड़ित करते रहो.

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गुरु तेग बहादुर जब आनंदपुर साहिब लौटे तो कश्मीरी पंडित किरपा राम के नेतृत्व में कुछ लोग उनसे मदद मांगने पहुंचे. इसके बाद गुरू तेग बहादुर आगरा पहुंचे, जहां उन्हें उनके शिष्यों के साथ गिरफ़्तार कर दिल्ली लाया गया. उसके बाद 5 दिनों तक उन्हें लगातार यातनाएं दी गईं.

औरंगज़ेब चाहता था कि गुरू तेग बहादुर इस्लाम क़ुबूल कर लें. मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया. उनके शिष्यों को ज़िंदा जला दिया गया, फिर भी उन्होंने औरंगज़ेब की बात नहीं मानी. जिसके बाद 11 नवंबर, 1675 को बरगद के पेड़ के नीचे एक बड़ी भीड़ के सामने गुरु तेग बहादुर का सिर काट दिया गया.

चांदनी चौक में शव को घेरे रहे मुगल सैनिक

एक तरफ़ औरंगज़ेब ने गुरु तेग बहादुर का सिर कलम करवा दिया. वहीं, दूसरी ओर शव के चारों ओर सैनिक खड़े कर दिये. ऐसे में किसी की हिम्मत नहीं हुई कि आगे बढ़कर शव को उठाए. ऐसे खौफ़जदा माहौल में दाखिल हुए बाबा लक्खी शाह बंजारा.

एक तरफ़ औरंगज़ेब ने गुरु तेग बहादुर का सिर कलम करवा दिया. वहीं, दूसरी ओर शव के चारों ओर सैनिक खड़े कर दिये. ऐसे में किसी की हिम्मत नहीं हुई कि आगे बढ़कर शव को उठाए. ऐसे खौफ़जदा माहौल में दाखिल हुए बाबा लक्खी शाह बंजारा.

लक्खी शाह मुगल दरबार में ठेकेदार थे. उनका परिवार काफ़ी रईस और मशहूर था. बाब लक्खी शाह और उनके परिवार ने दिल्ली में चार गांव भी बसाए थे. मालचा, नरेला, बारहखंभा और रायसीना भी. वही रायसीना, जहां आज राष्ट्रपति आवास है. मगर जब गुरु तेग बहादुर के शरीर को सम्मान के साथ ले जाने की बात आई तो उन्होंने अपने जान-माल की भी परवाह नहीं की.

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कहते हैं कि गुरु तेग बहादुर का पार्थिव शरीर खून से लथपथ वहीं पड़ा था. तलवारों से लैस मुगलिया सेना तैनात थी. चारों ओर सन्नाटा पसरा था. तभी मुगलिया दरबार में ठेकेदार बाबा लक्खी शाह बंजारा बैलगाड़ियों का काफिला और घोड़ों के साथ अपने आठ पुत्रों को लेकर तूफ़ान की रफ़्तार से वहां पहुंचे. अचानक हवा में रुई के फाहे उड़ने लगे. मुगलिया सेना का ध्यान भटका. वो कुछ समझ नहीं पाए और इधर-उधर देखने लगे. उसी वक़्त लाखा बंजारा पूरे सम्मान से गुरु तेग बहादुर का पार्थिव शरीर लेकर निकल गए.

वहां से वो सीधा रायसीना हिल के जंगल में स्थित अपने घर गए. यहां उन्होंने अपने घर के साथ ही गुरु तेग बहादुर का पार्थिव शरीर भी जला दिया. वहीं, भाई जैता जी गुरु के सिर को आनंदपुर ले गए, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया. बता दें, जिस घर में गुरू के शव के साथ आग लगाई गयी थी, वहां आज गुरुद्वारा रकाबगंज स्थित है. साल 1680 में ‘लाखा बंजारा’ का निधन हो गया था.

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