Brutal History of Japan Comfort Women: युद्ध की सबसे बड़ी क़ीमत औरतें और बच्चे चुकाते हैं. दूसरा विश्व युद्ध भी इसका अपवाद नहीं था. World War II में दुनिया का नक्शा लाशों से पटा था. हर कोना ख़ून से सना और चीखों से गूंज उठा था. इस बीच जापान में महिलाओं के साथ कुछ ऐसा भयानक हुआ था, जिसे इतिहास के पन्नों पर आंसू और ख़ून की स्याही के साथ दर्ज किया गया है. आज हम आपको Comfort Women की दुर्दशा की वो दास्तां बताएंगे, जब औरतों ने जापानी सेना का सबसे ख़ौफ़नाक चेहरा देखा था. (Japan forced Women To Become Military Sex Slaves)

कौन थीं Comfort Women?

WW2 में सैनिक जब लड़ रहे थे तो उनके पास गोले-बारूद की कोई कमी नहीं थी. मगर एक चीज़ की कमी उन्हें बेहद खलती थी. वो था शरीर की ज़रूरत को पूरा करना. क्योंकि, सभी सैनिक अपने परिवारों से दूर थे. जापानी सेना ने इसका बेहद घटिया रास्ता तलाशा. उन्होंने अलग-अलग बिल्डिंग्स में ‘कंफ़र्ट स्टेशन’ बना दिए. ये वो जगह थीं, जहां औरतों को ‘सेक्स स्लेव’ बना कर रखा जाता था. ये वो लड़कियां थी, जो सेक्शुअली एक्टिव नही थीं, और इनमें ज़्यादातर बच्चियां थी. इन्हीं को कंफ़र्ट वुमेन कहा जाता था. यानी आराम या राहत देने वाली महिला. ये जापानी टर्म ianfu से आया है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है- ian यानी राहत और fu यानी महिला.

Brutal History of Japan Comfort Women

दूसरे देशों और गांव से उठाई जाती थी लड़कियां

कोरिया, वियतनाम, चीन और फ़िलीपीन्स जैसे देशों से लड़कियोंं को लाया गया. ग़रीब परिवारों की लड़कियों को फ़ैक्ट्री में काम देने का लालच देकर ट्रकों में भर कर लाया गया. बहुतों को गांवों से जबरन उठवा लिया गया. एक-एक लड़की हर रोज़ 30 से 40 सैनिकों की ज़रूरत को पूरा करती थी.

गैंगरेप से लेकर ज़िंदा जलाने की क्रूर घटनाएं

जापान ने दूसरे विश्व युद्ध में क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थीं. सैनिक लड़कियों के साथ गैंगरेप करते थे. चीखती थीं तो बेरहमी से मारते थे. यौन रोग हो जाए तो उन्हें मारने के लिए सैनिक गोली भी ख़र्च नहीं करते थे. बल्क़ि वो उन्हें ज़िंदा जला देते थे या फिर बंदूक की बट से मार-मार कर हत्या कर देते थे.

प्रेग्नेंट ना हों, इसलिए उन्हें हर हफ़्ते इंजेक्शन दिया जाता था. 606 नाम का ये इंजेक्शन बेहद ख़तरनाक था, क्योंकि, इससे लड़कियों की जान तक चली जाती थी. वजाइनल ब्लीडिंग, पेट में लगातार दर्द, वज़न कम या ज़्यादा होना, उल्टियां होना और फर्टिलिटी खत्म होने की भी समस्या होती थी.

बता दें, जब जापान दूसरा विश्व युद्ध हार गया, फिर भी इन लड़कियों की ज़िंदगी बेहतर नहीं हो पाई. क्योंकि, कइयों की आंखें फोड़ दी गई थीं. बहुतों के हाथ-पैर कटे थे. शरीर पर गर्म लकड़ी से कुछ ना कुछ उकेरा गया था. ये लड़कियां इस कदर सदमे में थी कि कभी सामान्य ज़िंदगी नहीं जी सकीं. कुछ अपने लौटींं तो उन्हें समाज ने नहीं अपनाया.

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