द्वितीय विश्व युद्ध (World War II). ये वो भयानक जंग थी, जो लाखों इंसानों को निगल गई. साल 1939 से लेकर 1945 तक, 6 साल के लंबे वक़्त में धरती का हर कोना इंसानी ख़ून और चीखों से भर गया था. यूं तो इस दौरान वो सब कुछ हुआ, जिसकी इंसान एक जंग में कल्पना कर सकता है. मगर आज हम जिस ख़ौफ़नाक घटना के बारे में आपको बताएंगे, उसका अंदाज़ा किसी को भी नहीं था. 

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ये वो दर्दनक वाक़या था, जब जापान के 980 सैनिकों (Japanese soldiers) को मगरमच्छ (Crocodiles) ज़िंदा निगल गए थे. ये घटना कैसे और कहां हुई थी, आज हम आपको इसी बारे में बताएंगे. 

दरअसल, जंग के दौरान दुनिया दो धड़ों में बंट गई थी. एक्सिस धड़ा और एलाइड धड़ा. पहले वाले धड़े में जर्मनी, जापान और इटली थे. वहीं, दूसरे में रूस, अमेरिका और ब्रिटेन. सारे देश दुनियाभर के अलग-अलग हिस्सों में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे. ऐसा ही एक जंग का मैदान बर्मा (म्यांमार) का राम्री द्वीप (Ramree island) भी था.

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इस द्वीप पर इंपीरियल जापानी आर्मी का कब्ज़ा था. ऐसे में फ़रवरी 1945 में ब्रिटिश-इंडियन आर्मी ने इस द्वीप को जापानियों से खाली करवाने के लिए एक ऑपरेशन चलाया. ब्रिटिश-इंडियन आर्मी का मकसद इस द्वीप को एयरबेस की तरह इस्तेमाल करना था. ऑपरेशन के चलते जापानी सैनिकों की हालत ख़राब हो गई. मगर उन्होंने हथियार नहीं डाले. वो लड़े. लेकिन उन्हें लगातार पीछे हटना पड़ रहा था. इस दौरान क़रीब 1,000 जापानी सैनिक बाकी सेना से बिछड़ गए.

अब उन्हें वापस सेना तक पहुंचने के लिए दलदली इलाके को पार करना था. मगर समस्या ये थी कि राम्री द्वीप एक ट्रॉपिकल एरिया था. यहां ख़तरनाक से ख़तरनाक जानवर पाए जाते थे. उनमें सबसे खूंखार था मगरमच्छ. मगर फिर भी जापानी सैनिक मैंग्रोव दलदलों में उतर गए. 

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जापानी सैनिक पहले से ही भूख और प्यास से तड़प रहे थे. इस दलदली इलाके में उनकी हालत और बदतर हो गई. ऊपर से मच्छर, मकड़ी, जहरीले सांप और बिच्छुओं ने भी इन जापानी सैनिकों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया. जापानी सैनिक किसी तरह ख़ुद को बचाने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ने लगे. मगर वो बाहर निकलने के बजाय और गहरे दलदल में दाखिल हो गए.

यहां उनका इंतज़ार ख़ारे पानी के मगरमच्छ कर रहे थे. ये मगरमच्छ दुनिया के सबसे बड़े सरीसृप होते हैं. ये क़रीब 20 फीट तक लंबे और 1 टन तक वजनी हो सकते हैं. जापानी सैनिक पहले से भूखे-प्यासे और थके थे. और जैसे ही वो गहरे दलदल में उतरे इन मगरमच्छों ने उन पर हमला कर दिया. 

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उसके बाद सिर्फ़ चीखें और गोलियों की आावाज़ गूंजी. उस रात वो दलदल नर्क से भी ख़ौफ़नाक हो गया था. अगली सुबह वहां सिर्फ़ गिद्ध थे, जो जापानी सैनिकों के मांस के बचे लोथड़े नोचते नज़र आ रहे थे. 1,000 सैनिकों में महज़ 20 ही ज़िंदा बचे थे. 980 जापानी सैनिक ख़ारे पानी के मगरमच्छों का निवाला बन गए थे.

हालांकि, कुछ लोग मगरमच्छों द्वारा मारे गए सैनिकों की संख्या को लेकर शक जताते हैं. उनका कहना है कि इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकती है कि कितने लोग मगरमच्छों का शिकार बने और कितने भूख, डिहाईड्रेशन और बीमारी से मरे. मगर ये भी सच है कि आज तक कोई इन आंकड़ों के ख़िलाफ़ कोई सुबूत भी नहीं ला सका है. वहीं, सभी इस बात को मानते हैं कि उस रात जापानी सैनिकों को मगरमच्छों ने खाया था.