India Wins Freedom मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की आत्मकथा है, जो एक क्रांतिकारी, कांग्रेस के एक बड़े नेता ओर एक लेखक थे. उनकी आत्मकथा के प्रकाशन से कई विवाद भी जुड़े हैं. India Wins Freedom का संक्षिप्त मूल (अंग्रेजी संस्करण) 1959 में प्रकाशित किया गया था. वहीं, पूरी आत्मकथा अक्टूबर 1988 में प्रकाशित की गई यानी उनके निधन के 30 वर्षों बाद. उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद 30 वर्षों तक मूल सामग्री को राष्ट्रीय पुस्तकालय, कलकत्ता एंव राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली में सिलबंद रखवाना बेहतर समझा. सिर्फ़ संक्षिप्त सामग्री ही प्रकाशन के लिए दी गई थी. उन्होंने अपनी आत्मकथा में आज़ादी की कहानी को अपने शब्दों में बयां किया है. वहीं, इस किताब में उनकी कही कुछ ऐसी भी बातें हैं, तो आपको काफ़ी हैरान कर सकती हैं.   

आइये, क्रमवार जानते हैं मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की आत्मकथा ‘India Wins Freedom’ में दर्ज कुछ चौंका देने वाली बातों (Facts about Indian Freedom Struggle) को.  

1. गवर्नर को दे दिए गये थे विशेष अधिकार 

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चैप्टर 1, पेज नंबर 13 : अबुल कलाम आज़ाद के अनुसार, गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट, 1935 में प्रांतीय स्वायत्तता की व्यवस्था तो थी, पर उसमें एक बड़ी कमी थी. दरअसल, उसमें गर्वनर को विशेष अधिकार दिए गए थे यानी गवर्नर आपातकाल की घोषणा कर सकता था और अगर उसने ये घोषणा कि तो वो संविधान को स्थगित करके सारी शक्तियां अपने हाथ में ले सकता था. वहीं, गवर्नर की इच्छा से ही प्रांतों में लोकतांत्रिक तरीक़े से काम-काज चल सकता था.  

2. राजे-रजवाड़ों के पक्ष में ज़्यादा झुकाव  

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चैप्टर 1, पेज नंबर 13 : अबुल कलाम आज़ाद के अनुसार, केंद्र सरकार यानी ब्रिटिश सरकार राजे-रजवाड़ों और अपने स्वार्थ के पक्ष में ज़्यादा झुकी हुई थी (Facts about Indian Freedom Struggle), क्योंकि उसने आशा की जाती थी कि वो ब्रिटिश शासकों का समर्थन करेंगे.  

3. कांग्रेस को बदनाम कर रही थी मुस्लिम लीग  

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चैप्टर 1, पेज नंबर 14 : जब कांग्रेस ने सत्ता अपने हाथ में संभाली, तो जनता ये देख रही थी कि ये राष्ट्रीय विचारधारा को कितना निभा सकती है. वहीं, विपक्ष के रूप में मुस्लिम लीग ने केवल ये प्रचार किया कि कांग्रेस नाम मात्र की राष्ट्रीय विचारधारा वाला संगठन है. इसके अलावा, मुस्लिम लीग कांग्रेस को बदनाम करते हुए ये भी कह रही थी कि वो अल्पसंख्यकों पर तानाशाही कर रही है. इसके लिए उन्होंने एक रिपोर्ट भी तैयार की थी. वहीं, अबुल कलाम आज़ाद इन आरोपों को ग़लत बताया.  

4. कांग्रेस की आपसी लड़ाई  

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चैप्टर 1, पेज नंबर 20 : अबुल कलाम आज़ाद अपनी आत्मकथा में बताते हैं कि जब वे 6 महीने बाद जेल से छूट, तो कांग्रेस घोर संकट से जूझ रही थी. दरअसल, कांग्रेस में आपसी लड़ाई चल रही थी (Facts about Indian Freedom Struggle). पंडित मोतीलाल, श्री दास व हकीम अजमल खां परिवर्तन -समर्थक नेताओं में शामिल थे, जबकि राजाजी, सरदार पटेल और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद परिवर्तन विरोधियों के प्रवक्ता थे. 

अबुल कलाम आज़ाद कहते हैं दोनों ही खेमे उन्हें अपने में मिलाना चाहते थे, लेकिन वो इनसे दूर रहे. वहीं, उनकी कोशिश रही कि सभी मिलकर राजनीतिक संघर्ष पर अपना ध्यान केंद्रित करें और वो इसमें सफल भी हुए. 

5. बंगाल के मुसलमानों की स्थिति  

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चैप्टर 1, पेज नंबर 21 : अबुल कलाम आज़ाद ने अपनी आत्मकथा में बंगाल के मुसलमानों की स्थिति पर भी प्रकाश डाला है. उनके अनुसार, बंगाल में मुस्लिमों की संख्या अधिक थी (Facts about Indian Freedom Struggle), लेकिन वे शिक्षा और राजनीतिक दृष्टि से पिछडे हुए थे. उन्हें सरकारी सेवा में मुश्किल से ही स्थान मिलता था. वो कहते हैं कि उनकी संख्या 50 प्रतिशत से ज़्यादा थी, लेकिन सरकार में 30 प्रतिशत ही स्थान मिल पाया था.  

6. गांधी का मुख्य मुद्दा स्वतंत्रता का नहीं था  

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चैप्टर 3, पेज नंबर 29 : अबुल कलाम आज़ाद की आत्मकथा के अनुसार, गांधी जी का मुख्य मुद्दा शांतिवाद था, भारत की स्वतंत्रता का नहीं था. दरअसल, यूरोप में युद्ध की वजह से बाहर का माहौल बिगड़ा हुआ था. इसके अलावा, कांग्रेस के अंदर फूट बढ़ने पर थी. वहीं, अबुल कलाम आज़ाद कहते हैं कि, “मैं कांग्रेस का अध्यक्ष था और चाहता था कि भारत अगर आज़ाद हो जाए, तो उसे लोकतंत्र के ख़ेमे में ले जाना चाहिए. 

वहीं, भारत की गुलाम इस मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा थी. लेकिन गांधी जी के विचार कुछ और थे. उनके लिए शांतिवाद मुख्य मुद्दा था, भारत की स्वतंत्रता नहीं”. अबुल कलाम आज़ाद गांधी के विचारों के काफी विपरीत थे.  

7. गांधी जी का आत्महत्या का विचार 

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चैप्टर 3, पेज नंबर 30 : गांधी जी बाहर के हिंसक यानी युद्ध के माहौल से काफी दुखी थे. अबुल कलाम कहते हैं कि, “ गांधी जी ने देखा कि युद्ध से दुनिया ख़त्म हो रही है और वो कुछ भी नहीं कर सकते हैं. वो इतने हताश व दुखी हो गये थे कि उन्होंने कई बार आत्महत्या की बात भी कही. उन्होंने मुझसे कहा था कि यदि मुझमें इतनी शक्ति नहीं कि लड़ाई के कारण होने वाली यातनाओं को रोक सकूं, तो अपने जीवन का अंत कर अपनी आंखों से उस दृश्य को देखने से बच सकूंगा”.  

8. सुभाष चंद्र बोस और गांधी से जुड़ी बातें 

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चैप्टर 3, पेज नंबर 37 : आपने ये ज़रूर सुना होगा कि भारत की आज़ादी के लिए महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार का भी भिन्न थे. वहीं, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अपनी आत्मकथा में कहते हैं कि “ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युद्ध की तैयारी के लिए सुभाष जब जर्मनी चले गए, तो गांधी के मन में काफी गहरा प्रभाव पड़ा था. पहले उन्हें बोस के कई काम पसंद नहीं आए थे, परंतु बोस की प्रति उनके दृष्टिकोण में थोड़ा परिवर्तन देखा गया था. 

वहीं, जब सुभाष चंद्र बोस की हवाई दुर्घटना में निधन की ख़बर सामने आई, तो गांधी जी पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा था (Facts about Indian Freedom Struggle). उन्होंने सुभाष चंद्र बोस की मां को एक संवेदना से भरा पत्र भेजा था. हालांकि, बाद में पता चला कि ये समाचार झूठा था”.  

9. सोते समय बड़बड़ाते थे जवाहरलाल नेहरू

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चैप्टर 5 पेज नंबर 61 : मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के अनुसार, जब जवाहरलाल नेहरू तनाव में होते थे, तो वो नींद के दौरान बड़बड़ाते थे. दिन की बातें उन्हें सपनों में परेशान किया करती थीं. आत्मकतथा में वो एक क़िस्सा बताते हैं कि, “एक बार जब उनकी बात रामेश्वरी नेहरू से हुई, तो उन्होंने बाताया कि जवाहरलाल नेहरू पिछली दो रातों से बड़बड़ाते रहे हैं और नींद में उन्होंने गांधी, अबुल कलाम आज़ाद और क्रिप्स का नाम सुना था”.    

10. अहमदाबाद क़िले की जेल  

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चैप्टर 8, पेज नंबर 82 : आज़ादी के संघर्ष के दौरान क्रांतिकारियों व नेताओं को ब्रिटिश सरकार ने कई बार जेल में भी डाला (Facts about Indian Freedom Struggle). मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अपनी आत्मकथा में एक इससे जुड़ा एक क़िस्सा बताते हैं कि, “मेरे साथ नौं अन्य सदस्यों को गिरफ़्तार कर अहमदाबाद लाया गया था. इनमें जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, आसफ़ अली, शंकर राव देव, गोविंद बल्लभ पंद, डॉ. सैयद महमूद, आचार्य कृपलानी और डॉ. प्रफुल्ल घोष भी थे. 

 हमें किले की ऐसी इमारत में ले जाया गया जो मिलिट्री बैरक जैसी थी, लगभग 200 फुट लंबी जगह जिससे चारों ओर कमरे बने हुए थे. बाद में पता चला कि यहां प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इटली के बंदियों को यहां रखा गया था. हमें कहां क़ैद करके रखा गया है, वो बात गुप्त रखी गई थी”.    

11. जिन्ना के क़ायदे आज़म ख़िताब का प्रचलन 

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चैप्टर 8, पेज 87 : मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपनी आत्मकथा में एक बड़ी बात को उजागर किया (Facts about Indian Freedom Struggle) है कि मोहम्मद अली जिन्ना के लिए क़ायदे आज़म यानी महान नेता के ख़िताब का प्रचलन करने वाले गांधी ही थे. दरअसल, उनके आश्रम में कुमारी अमतुस्सलाम नाम की एक महिला रहा करती थी. उस महिला ने कुछ उर्दू अख़बारों में जिन्ना के लिए क़ायदे आज़म का शब्द प्रयोग करते देखा था. 

एक बार जब गांधी जी जिन्ना से मिलने के लिए पत्र लिख रहे थे, तो उस महिला ने सुझाव दिया था कि आपको भी पत्र में जिन्ना के लिए क़ायदे आज़म प्रयोग करना चाहिए. इस घटना के बाद से इस शब्द का प्रभाव आगे जाकर काफी ज़्यादा पड़ा. हिन्दूस्तान के मुसलमानों ने भी मान लिया था कि अगर गांधी जी ने जिन्ना को क़ायदे आज़म कहा है, तो वो सच में क़ायदे आज़म ही होंगे.  

12. सरदार पटेल को अखरोट कहते थे लॉर्ड माउंटबेटन  

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चैप्टर 14, पेज 176 : मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अपनी आत्मकथा में कहते हैं कि, “लॉर्ड माउंटबेटन बड़े, चतूर आदमी थे. वे अपने हिंदुस्तानी साथियों की मन की बात समझते थे. जब उनको लगा कि विभाजन की बात से पटेल के विचार अनुकूल हैं, तो उन्होंने व्यक्तित्व के आकर्षण और शक्ति से उन्हें जीतने का प्रयास किया (Facts about Indian Freedom Struggle). वो सरदार पटेल का अखरोट कहा करते थे, जिसका ऊपर का छिलका कठोर, तो गूदा मुलामम होता है. वो कहते थे कि अखरोट से बात कर ली है और अखरोट के प्रश्नों पर सहमति भी दे दी है”.