नेताजी सुभाष चंद्र बोस को हर कोई जानता हैं. देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए इन्होंने अपनी जान तक की बाज़ी लगा थी. इनके बारे में बहुत बातें और विचार-विमर्श हो चुका है, लेकिन इनके राजनीतिक गुरु के बारे में जल्दी कोई बात नहीं करता.  

इसलिए आज हम आपको सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक गुरु के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें प्यार से हम देशबंधू कहकर बुलाते हैं.    

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बहुमुखी प्रतिभा के थे धनी

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हम बात कर रहे हैं स्वतंत्रता सेनानी, वक़ील, राजनीतिज्ञ और पत्रकार चित्तरंजन दास(Chittaranjan Das) की जिन्होंने भारत को आज़ाद करवाने के लिए अंतिम सांस तक अंग्रेज़ों से लोहा लिया. इन्होंने जिस तरह से देश को आज़ाद करवाने में जुटे देशभक्तों की मदद की थी उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है. 

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गांधी जी कहते थे महात्मा

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लोग प्यार से इन्हें देशबंधु कहकर बुलाते थे और गांधी जी ने इनको महात्मा कहकर पुकारा था. चित्तरंजन दास कोलकाता के रहने वाले थे उनके पिता कोलकाता हाईकोर्ट प्रसिद्ध वक़ील थे. अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए इंग्लैंड से वकालत की शिक्षा हासिल की और भारत वापस आकर प्रैक्टिस करने लगे. सपना तो इनका ICS क्लियर करने का था पर परीक्षा में फ़ेल होने के बाद इन्होंने वक़ील बनने की ठानी थी. 

इस केस से हुए प्रसिद्ध

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1908 में अंग्रेज़ी हुकूमत ने महान क्रांतिकारी अरबिंदो घोष को ‘अलीपुर बम कांड’ के सिलसिले में एक विचाराधीन कै़दी के रूप में गिरफ़्तार कर लिया. तब उनकी सहायता के लिए चित्तरंजन दास जी आगे आए. इस केस को लड़ने के लिए उन्होंने दूसरे केस छोड़ दिए और दिन-रात इसकी तैयारी करने लगे. 1910 में अरबिंदो घोष जेल से रिहा हुए तो इसका श्रेय चित्तरंजन दास जी को ही जाता है. इसके बाद वो पूरे देश में प्रसिद्ध हो गए. 

1906 में कांग्रेस में हुए शामिल  

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फिर वो स्वतंत्रता संग्राम में जुटे किसी भी केस में फंसे देशभक्त की मदद करने लगे. इसी बीच 1906 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी जॉइन कर ली. 1917 में इनको बंगाल की प्रांतीय राजकीय परिषद का अध्यक्ष बनाया गया था. उनके ही प्रयासों से एनी बेसेंट को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में उसी साल अध्यक्ष चुना गया था. 1919 में अंग्रेज़ों ने रॉलेक्ट एक्ट देश में लागू किया इसके विरोध में गांधी जी ने पूरे देश में असहयोग आंदोलन छेड़ दिया. 

छात्रों के लिए खोला राष्ट्रीय विद्यालय  

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इसमें हिस्सा लेने के लिए देशभर के छात्रों ने स्कूल-कॉलेज त्याग दिए. उनके भविष्य की चिंता चित्तरंजन दास जी को सता रही थी, तो उन्होंने छात्रों की शिक्षा के लिए ढाका में एक राष्ट्रीय विद्यालय की शुरुआत की. इसके बाद वो अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इस आंदोलन में कूद पड़े. 1922 में चौरा-चौरी की घटना के बाद गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया. उसके बाद उन्हें अंग्रेज़ों ने जेल में डाल दिया तब चित्तरंजन जी ने सोचा की अंग्रेज़ों को देश से बाहर निकालने के लिए कुछ अलग करना होगा.   

स्वराज पार्टी की हुई शुरुआत  

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इसलिए चित्तरंजन जी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ 1 जनवरी 1923 को ‘कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी’ की शुरुआत की. वो इस पार्टी के अध्यक्ष और मोतीलाल नेहरू महासचिव थे. बाद में इस पार्टी का नाम बदलकर स्वराज पार्टी रख दिया गया था. उनकी पार्टी ने बंगाल के स्थानीय चुनावों में कई बार जीत हासिल की और राज्य के लिए बहुत सारे कल्याणकारी कार्य भी किए.   

लिखने में भी थे माहिर  

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राजनीति करने के साथ ही चित्तरंजन दास जी लिखने में भी माहिर थे. वो बांग्ला भाषा के अच्छे कवि और पत्रकार थे. उन्होंने सागरसंगीत, अंतर्यामी, किशोर-किशोरी जैसे कई काव्य ग्रंथों की रचना भी की थी. नारायण और वंदे मातरम जैसी पत्रिकाओं में काम भी किया. 1925 में सब कुछ सही चल रहा था कि अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. वो स्वस्थ होने के उद्देश्य से दार्जिलिंग भी गए मगर कुछ फ़ायदा नहीं हुआ. 16 जून 1925 को इन्होंने अंतिम सांस ली थी. उनकी अंतिम यात्रा में सैकड़ों लोग शामिल हुए थे.

देश के इस महान सपूत के नाम पर आज भी पश्चिम बंगाल में बहुत सारी योजनाएं और स्कूल-कॉलेज चलाए जा रहे हैं.