History Of Bibi Ka Maqbara: महाराष्ट्र का औरंगाबाद अपने अंदर एक रोचक इतिहास समेटे है. यहां पर कई ऐसी एतिहासिक इमारतें हैं जो इसके इतिहास को धनी बनाती हैं. इन्हीं में से एक हैं मार्बल बीबी का मक़बरा (Bibi Ka Maqbara), जिसे 1668 से लेकर 1669 ईं. के बीच में बनाया गया था. इस मक़बरे को राबिया-उद-दौरानी के नाम से भी जाना जाता है, जिसे शाहजहां और मुमताज़ के महल के बेटे औरंगज़ेब ने अपनी बेग़म दिलरस बानो बेग़म के लिए बनवाया था. ताजमहल जैसा दिखने के कारण इसे डेक्कन का ताज (Taj of Deccan) भी कहा जाता है. ताजमहल की तर्ज पर बना ये मक़बरा हमेशा आलोचना का पात्र बना रहा, जिसे ताजमहल की फूहड़ नकल कहा जाता था.

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History Of Bibi Ka Maqbara

शाहनवाज़ ख़ान की बेटी राजकुमारी दिलरस बानो (Dilras Bano) ईरान के एक शाही परिवार में जन्मी थीं, जो गुजरात राज्य के तत्कालीन वायसराय थे. दिलरस और औरंगज़ेब ने 1637 में शादी की और वो उसकी पहली पत्नी बन गईं, इन दोनों के 5 बच्चे थे, पांच बच्चों के जन्म देने के बाद दिलरस बानो बेग़म ने दम तोड़ दिया.

इस मक़बरे का इतिहास (History Of Bibi Ka Maqbara) और निर्माण दोनों ही रोचक है, जिसे कई तरह के तथ्य जुड़े हैं.

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आइए जानते हैं, इस मक़बरे से जुडे़ कुछ रोचक तथ्य (Interesting Facts About Bibi Ka Maqbara)

देश के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र में स्थित होने के चलते इसे पश्चिम का ताजमहल भी कहते हैं. इस मक़बरे को बनाने के लिए मार्बल जयपुर से लाया गया था. कहते हैं कि इस मार्बल को औरंगाबाद तक लाने में 150 से भी ज़्यादा वाहन लगे थे. इसके अलावा, दिलरस बानो बेग़म की कब्र को हू-ब-हू मुमताज़ महल की कब्र की तरह बनाया गया है.

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इतना ही नहीं अगर इस मक़बरे की लागत की बात करें तो वो 7 लाख रुपये थी, जो ताजमहल के आगे कुछ भी नहीं ती. ताजमहल को बनाने में उस वक़्त 3 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इतना सस्ता बनने के कारण, बीबी के मक़बरे को लोग ग़रीबों का ताजमहल भी कहते हैं. इस मक़बरे के गुम्बद में सिर्फ़ मार्बल है बाकी प्लास्टर से बना है.  

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बीबी के मक़बरे को इतरह से ऊंची-ऊंची दीवारों से बनाया गया है ताकि कोई भी इसे बाहर से न देख पाए. इसकी कारीगरी कमाल की है, जिसमें चारों ओर ख़ूबसूरत बाग़, फ़ाउंटेन, तालाब, सीलिंग, मीनार, चारबाग़ आदि हैं. मक़बरे को ताजमहल की तरह ही ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है, जिसका दरवाज़ा बेहद ख़ूबसूरत है.

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आपको बता दें, हाल ही में औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर कर दिया गया है. ये नाम संभाजी महाराज पर रखा गया है, जो छत्रपति शिवाजी के बड़े बेटे और मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति थे.