Maharaja Duleep Singh History in Hindi: इस बात की जानकारी शायद बहुत कम लोगों को होगी कि पंजाब के आख़िरी सिख महाराजा के साथ अंग्रेज़ों ने क्या-क्या किया था. उसने जुड़े कई सवाल हैं जिनका जवाब बहुतों को पता नहीं होगा, जैसे एक सिख राजा होने के बावजूद क्यों उन्होंने ईसाई धर्म (Sikh King who became Christian) अपनाया? क्यों अपना राज्य छोड़कर उन्हें ब्रिटेन में बसना पड़ा और यहां तक कि उनके राज्य पर किसने कब्ज़ा किया? 

महाराजा दलीप सिंह (Maharaja Duleep Singh in Hindi) से जुड़े ऐसे बहुत से सवालों के जवाब आपको हम इस लेख में देंगे. पूरी जानकारी के लिए इस आर्टिकल के साथ बने रहें.

पांच साल की उम्र में बने महाराजा 

Maharaja Duleep Singh
Image Source: BBC

last Maharaja of the Sikh Empire: महाराजा दलीप सिंह सिख सिख साम्राज्य के अंतिम महाराजा थे, जिन्हें बाद में Black Prince of Perthshire भी कहा गया. वो महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे बेटे और महारानी ज़िंद कौर के एकमात्र सुपुत्र थे. उनका जन्म 4 अक्टूबर 1938 को हुआ था. पिता के निधन के बाद मात्र पांच साल की उम्र में उन्हें साम्राज्य की गद्दी सौंपी गई. चूंकि वो बच्चे थे, इसलिए राजपाठ संभालने का काम उनकी माता और उनके चाचा ही किया करते थे.  

जानकारी के अनुसार, महाराजा दलीप सिंह के जन्म के अगले साल ही महाराजा रणजीत सिंह का निधन हो गया था. इसके बाद पंजाब में अशांति का माहौल बन गया था.

महाराजा दलीप सिंह का तख़्ता पलट  

Maharaja Duleep Singh
Image Source: tribuneindia

इतिहास में ऐसा भी युद्ध लड़ा गया जिसने महाराजा दलीप सिंह की ज़िंदगी तबाह करके रख दी. उनको पूरी तरह से बदलकर रख दिया. ये युद्ध अंग्रेज़ों और सिखों के बीच लड़ा गया था. जब दूसरा अंग्रेज़-सिख युद्ध हुआ, तो अंग्रेज़ों को पंजाब में दाखिल होने का एक अच्छा मौक़ा मिल गया था. 

वहीं, 1969 में अंग्रेज़ों ने महाराजा दलीप सिंह का तख़्ता पटल कर दिया और पंजाब पर अपना कब्ज़ा जमा लिया. 

मां से कर दिया गया अलग 

Image Source: lahore.city-history

जब अंग्रेज़ों ने पंजाब पर कब्ज़ा किया, तो उन्होंने राजा दलीप सिंह को अपनी मां ज़िंद कौर से अलग कर दिया था. उन्हें अपने राज्य से फ़तेहगढ़ (जो अब उत्तर प्रदेश में है) लाया गया, जो भारत में ही एक ब्रितानी बस्ती की तरह था, जहां अंग्रेज़ अधिकारियों के परिवार रहा करते थे.  

ये भी पढ़ें: महाराजा रणजीत सिंह: वो महान सिख योद्धा जिनके साहस के आगे ‘मुग़ल और अफ़गान’ भी टिक न सके

महाराजा दलीप सिंह एक सिख से कैसे बने ईसाई? 

duleep singh
Image Source: lahore.city-history

Why Maharaja Duleep Singh adopted Christianity: बहुतों के लिए ये एक बड़ा सवाल हो सकता है कि एक सिख महाराजा कैसे एक ईसाई बन गया. दरअसल, अंग्रेज़ों ने दलीप सिंह (Son of Maharaja Ranjit Singh) को John Spencer Login (आर्मी सर्जन) और उनकी पत्नी को सौंपा और उन्हें एक बाइबल भी दी गई थी. इतिहासकार बताते हैं कि उन्हें अंग्रेज़ों की तरह लाइफ़ जीना सिखाया गया. उन्हें उनके धर्म और उनकी संस्कृति से अलग कर दिया गया. उनमें इतना बदलाव किया गया कि अंग्रेज़ उन्हें किसी भी तरह ढाल सकते थे.

ये बात बहुतों को पता नहीं होगी कि पंजाब के आख़िरी महाराजा दलीप सिंह को 15 साल की उम्र में निर्वासित यानी देश निकाला कर दिया था. युवा दलीप सिंह (Exile Sikh King of India) में इतना बदलाव किया गया कि उन्होंने आगे चलकर ईसाई धर्म ही अपना लिया. 1854 में वो इंग्लैंड आ गए थे, जहां उन्हें महारानी विक्टोरिया से मिलवाया गया था. वो वहां रानी विक्टोरिया के पास रहे. इसके बाद वो ‘ब्लैक प्रिंस’ के नाम से भी जाने गए.  

क्या हुआ ज़िंद कौर का?

maharani jind kaur
Image Source: wikipedia

Who was Jind Kaur in Hindi: बहुतों को इस बारे में भी जानकारी नहीं होगी कि महाराजा दलीप सिंह की मां महारानी ज़िंद कौर का बाद में क्या हुआ. BBC की मानें, तो अंग्रेज़ों द्वारा राज्य कब्जाने के बाद महारानी ने एक दिन नौकरानी का वेश भरा और अंग्रेज़ों की क़ैद से फ़रार होकर नेपाल चली गईं, जहां उन्होंने शरण ली थी.

इग्लैंड में ही दफ़नाया गया 

Grave of maharaja duleep singh
Image Source: BBC

Grave of Maharaja Duleep Singh: आखरी सिख महाराजा दलीप सिंह अपनी मृत्यु तक ब्रिटेन में ही रहे. यूनाइटेड किंगडम के Elveden में उनकी क्रब मौजूद है, जहां उन्हें दफ़नाया गया था. इसी वर्ष यानी 2022 में ही ब्रिटेन में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था, जो महाराजा दलीप सिंह की जीवन पर आधारित थी. वहां उस बाइबल को भी दिखाया गया, जिससे उन्होंने ईसाई धर्म से जुड़ी जानकारियां हासिल की. साथ ही यहां महाराजा की जैकेट और उनका गन केस भी दिखाया गया, जिसका इस्तेमाल वो शिकार के लिए किया करते थे.

ये भी पढ़ें: बंदा सिंह बहादुर: वो महान सिख योद्धा जिनके साहस के आगे मुग़लों ने घुटने टेक दिये थे