History Of Laundry Detergent: बदलते दौर में चीज़ें बदली हैं तो आसान भी हुई हैं. आज एक बटन दबाओ और कपड़े धुल कर और सूख कर मिल जाते हैं. अगर वॉशिंग मशीन नहीं है तो डिटर्जेंट या साबुन के पानी में कपड़ों को तोड़ी देर भिगो दो उससे भी कपड़े अच्छे साफ़ हो जाते हैं. रोज़ ही कुछ न कुछ नया मार्केट में आता रहता है पहले साबुन फिर सर्फ़ और अब लिक्विड डिटर्जेंट. कपड़े धोना आज भले ही आसान हो लेकिन एक समय था जब कपड़े धोना पहाड़ तोड़ने जितना कठिन काम था, तब लोगों के पास साबुन नहीं था सर्फ़ नहीं था बिना इन चीज़ों के कपड़े धोते थे (History Of Laundry Detergent).

History Of Laundry Detergent
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कभी सोचा है कि, अगर साबुन और सर्फ़ नहीं था तो कपड़े धोए किस चीज़ से जाते थे क्योंकि साबुन और सर्फ़ से धोने वालों के लिए ये एक बहुत बड़ा सवाल है? तो इस सवाल का जवाब ये रहा. मैं अपना एक क़िस्सा बताऊं,

मेरे ससुराल में एक दादी हैं, जिन्होंने बताया कि वो लोग पहले रेह नाम का एक पदार्थ ता, उससे कपड़े धोते थे. रेह सफ़ेद रंग का मिट्टी जैसा होता है, जिसको रगड़ो तो साबुन जैसा ही झाग निकलता है. उस वक़्त तक हालांकि, साबुन आ चुका था, लेकिन वो पैसे की कमी की वजह से रेह से कपड़े धोती थीं.

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हालांकि, उस वक़्त मुझे ये बात अजीब लगी थी, लेकिन 130 साल पहले भारत में साबुन या सर्फ़ से नहीं, बल्कि रीठा या रेह से कपड़े धोए जाते थे. रेह एक प्रकार की सफ़ेद मिट्टी होती है, जिसमें सोडियम सल्फेट, मैग्नीशियम सल्फेट और कैल्शियम सल्फेट होता है. इसे पानी में घोलकर इसमें कपड़े भिगो दिए जाते थे, जिससे कपड़ों से सारी गंदगी हट जाती थी, फिर हल्का सा रगड़कर उसे पत्थर या मुगरी (एक प्रकार का छोटा सा डंडा जिससे कपड़े धोए जाते हैं) से पीटकर कपड़ों को धोया जाता था.

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अगर बात करें रीठा की तो रीठा उस दौर में महंगा माना जाता था, इसलिए ये सबके पास नहीं होता था. राजा-महाराजाओं के बाग़ में रीठा के पेड़ लगे होते थे. रीठा को तोड़कर उसके छिलके या साबुत रीठा को गर्म पानी में उबाल लिया जाता था, जिससे अच्छा-ख़ासा झाग बन जाता था फिर उससे गंदे को धो लिया जाता था, कपड़े चमकदार हो जाते थे. आज भी पुराने लोग महंगे और रेशमी कपड़ों के लिए रीठा का ही उपयोग करते हैं. धोबीघाट में आज भी पुराने तरीक़ों का ही इस्तेमाल होता है.

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रीठा का इस्तेमाल कपड़ों और शरीर दोनों के लिए लाभदायक होता था क्योंकि रीठा ऑर्गेनिक होता है इसलिए इसके कोई साइड इफ़ेक्ट्स नहीं होते थे.

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आपको बता दें, भारतीय बाज़ारों में पहली बार साबुन ब्रिटिश कंपनी Lever Brothers ने उतारा था. इसके बाद, 1897 में मेरठ में सबसे पहली नहाने और कपड़े धोने के साबुन की फ़ैक्ट्री लगाई गई थी.