पुरानी कहावत है ‘नाम में क्या रखा है’ लेकिन जनाब नाम में बहुत कुछ रखा है. इसके बिना आप कुछ भी नहीं हैं. आपकी पहचान ही आपका नाम है. ज़रा सोचिये अगर किसी इंसान या जगह का नाम ही नहीं होगा तो क्या होगा? हमें लगता है आज के दौर में पुराने ज़माने की ये कहावत बस कहावत भर ही रह गई है. लेकिन नाम ही इंसान और किसी जगह का अस्तित्व होता है. इसके बिना गुज़ारा नामुमकिन सा लगता है. भारत में आपने पिछले कुछ सालों से जगहों के नाम बदलते हुए देखा होगा. लेकिन आज हम आपको नाम बदलने की नहीं, बल्कि देश के प्रमुख ‘शहरों का नाम’ कैसे पड़े वो बताने जा रहे हैं. 

जानिए देश के इन प्रमुख शहरों का नाम कैसे पड़ा था और पहले इनके नाम क्या हुआ करते थे

1- देहरादून का नाम कैसे पड़ा?

इतिहासकारों के मुताबिक़, 17वीं शताब्दी में जब सिख गुरु हर राय के पुत्र रामराय इस इलाक़े में आये तो उन्होंने ख़ुद के लिए और अपने अनुयायियों के रहने के लिए यहां अपना ‘डेरा’ स्थापित किया था. डेरे की वजह से यहां पर लोगों की बसावट शुरू होने लगी. स्थानीय लोग आम बोलचाल की भाषा में ‘डेरा’ को ‘देहरा’ पुकारने लगे. ये जगह घाटी के रूप में बसा हुआ है और ‘घाटी’ को ‘दून’ भी कहा जाता है. इस तरह से ‘देहरा’ और ‘दून’ मिलकर ‘देहरादून’ कहलाने लगे. 

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2- लखनऊ का नाम कैसे पड़ा?

नवाबों के शहर के तौर पर मशहूर लखनऊ प्राचीन ‘कोसल राज्य’ का हिस्सा हुआ करता था. प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक़, ये भगवान राम की विरासत हुआ करती थी जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था. इसीलिए इसे ‘लक्ष्मणावती’, ‘लक्ष्मणपुर’ या ‘लखनपुर’ के नाम से जाना जाना जाता था. यही नाम बाद में बदल कर ‘लखनऊ’ हो गया जबकि एतिहासिक तौर से इसे ‘अवध’ के नाम से जाना जाता है. 

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3- कलकत्ता का नाम कैसे पड़ा? 

देश के 4 प्रमुख शहरों में से एक कोलकाता (Kolkata) का इतिहास बेहद पुराना है. भारत में ये सबसे पहले बसने वाले शहरों में से एक है. ऐतिहासिक दस्तावेजों में इसका इसे समय-समय पर ‘कलकत्ता’, ‘कैलकटा’ और ‘कोलिकाता’ आदि नामों से भी जाना जाता था. कोलकाता के नाम को लेकर सबसे प्राचीन कहानी जो है वो ये कि इसका नाम ‘देवी काली माता’ के नाम पर पड़ा है. लेकिन 1 जनवरी 2001 को इसका परमानेंट नाम ‘कोलकाता’ कर दिया गया था.

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4- चेन्नई का नाम कैसे पड़ा? 

भारत के प्रमुख शहरों में शुमार ‘चेन्नई’ का पुराना नाम ‘मद्रास’ हुआ करता था. मद्रास शब्द पुर्तगाली शब्द का बिगड़ा स्वरूप है. पुर्तगाली में एक फ़्रेज़ है ‘Madre de Deus’ इसका अर्थ है ‘मदर ऑफ़ गॉड’. यही शब्द आगे चलकर ‘मद्रास’ कहलाने लगा. जबकि अंग्रेज़ों के इस स्थान को मद्रास बोलने के पीछे की वजह ‘मदर मेरी’ थी. लेकिन इतिहासकार इन दोनों से ही सहमत नहीं है. बताया जाता है कि संस्कृत-तमिल भाषा में एक शब्द है ‘मद्राक्ष’, जिसका अर्थ मधुर रस या मदिर रस है. इसी शब्द से ‘मद्रास’ शब्द की उत्पत्ति हुई थी. 

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5- चंडीगढ़ का नाम कैसे पड़ा? 

 इतिहासकारों के मुताबिक़, चंडीगढ़ का इतिहास क़रीब 8000 साल पुराना है. यहां दुनिया की सबसे पहली संस्कृति ‘हड़प्पा संस्कृति’ के लोग रहा करते थे. मध्ययुगीन काल में ये एक समृद्ध शहर हुआ करता था और तब ये पंजाब प्रान्त का हिस्सा था. बंटवारे के बाद पंजाब की कोई राजधानी नहीं थी. इसीलिए पंजाब की राजधानी बनाने के लिए इसे नये तरीके से बनाया गया. इस शहर का नाम यहां के चंडी मंदिर के नाम पर रखा गया है, इसीलिए इस शहर को ‘चंडीगढ़’ कहा जाता है.

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6- गुड़गांव का नाम कैसे पड़ा? 

प्राचीन ग्रन्धों में बताया गया है कि महाभारत काल के दौरान राजा युधिष्ठिर ने ‘गुरुग्राम’ को अपने धर्मगुरु द्रोणाचार्य को उपहार स्वरूप दिया था और आज भी इस शहर में उनके नाम पर एक तालाब और एक मंदिर प्रतीक के तौर पर विद्यमान हैं. इस कारण इसे ‘गुरु गांव’ के नाम से भी जाना जाता था, जो बाद में ‘गुड़गांव’ नाम से पुकारा जाने लगा. अंग्रेज़ों ने इसका नाम हमेशा के लिए ‘गुड़गांव’ कर दिया था, जिसे एक बार फिर बदलकर ‘गुरुग्राम’ कर दिया गया है.

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7- बैंगलोर का नाम कैसे पड़ा?

बेंगलुरु को कुछ साल पहले तक बैंगलोर के नाम से जाना जाता था. 9वीं सदी में बेंगलुरु को ‘बेंगावल उरू’ कहा जाता था. 12वीं सदी में ये ‘बेंदा कालू उरू’ हो गया. पूर्ववर्ती विजयनगर साम्राज्य के तहत केम्पेगौड़ा को बेंगलुरु का संस्थापक माना जाता है. 16वीं सदी के प्रारंभ में उन्होंने ‘बेंदाकालुरू’ को अपनी राजधानी के रूप में चुना, जो बदलकर ‘बेंगलुरु’ हो गया और औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश राज के दौरान ये ‘बैंगलोर’ बन गया था.

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8- हैदराबाद का नाम कैसे पड़ा?

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, इतिहास की कई किताबों में हैदराबाद का नाम भाग्यनगर दिखता है. सन 1816 में ब्रिटिश नागरिक ऐरॉन एरो स्मिथ ने हैदराबाद का एक नक़्शा तैयार किया था, जिसमें हैदराबाद के नाम के नीचे ‘भाग्यनगर’ और ‘गोलकुंडा’ भी लिखा था. इतिहासकार नरेंद्र लूथर ने 1992- 93 में छपी अपनी क़िताब ‘ऑन द हिस्ट्री ऑफ़ भाग्यमती’ में भी इसका ज़िक्र है कि ‘हैदराबाद’ का पुराना नाम ‘भाग्यनगर’ था. हैदराबाद सन 1591 में बना. सन 1596 में इसका नाम ‘फरखुंडा बुनियाद’ रखा गया था. इस फ़ारसी शब्द का मतलब ‘लकी सिटी’ यानी ‘भाग्यनगर’ था.

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9- गोवा का नाम कैसे पड़ा?

महाभारत काल में गोवा (Goa) का उल्लेख गोमांत या गोदावरी के नाम से मिलता है. ग्रंथों में ये इलाक़ा ‘गोमनचला’, ‘गोपाला पटनम’, ‘गोपका पत्तम’, ‘गोपकापुरी’, ‘गोवा पुरी’, ‘गोपुर’, ‘गौराष्ट्र’ आदि नामों से उल्लेख है. अरब के मध्युगीन यात्रियों ने इस क्षेत्र को ‘चंद्रपुर और चंदौर’ नाम दिया, जो मुख्य रूप से एक तटीय शहर था. लेकिन बाद में पुर्तगालियों से इसका नाम ‘गोवा’ रखा. 

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10- दिल्ली का नाम कैसे पड़ा?

प्राचीनकाल में दिल्ली का नाम इंद्रपस्थ हुआ करता था. इतिहासकारों के मुताबिक़, 800 BC में कनौज के गौतम वंश के राजा ढील्लू ने इस शहर पर कब्ज़ा कर लिया. तब उसने ‘इन्द्रप्रस्थ’ का नाम बदलकर ‘ढील्लू’ कर दिया था. वहीं मध्यकालीन युग 1052 AD में तोमरवंश के राजा आनंगपाल द्वितीय को दिल्ली की स्थापना के लिए जाना जाता है. उनके शासनकाल में दिल्ली ‘ढिल्लिका’ के नाम से जानी जाती थी. अन्य इतिहासकारों का मानना है दिल्ली शब्द फ़ारसी के ‘दहलीज’ या ‘देहली’ से निकला है. इन दोनों शब्दों का अर्थ दहलीज यानी प्रवेशद्वार होता है. उस दौर में इसे गंगा नदी के तराई इलाक़ों का गेट माना जाता है. इस वजह से इसका नाम ‘दिल्ली’ पड़ा.

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