सदियों से भारत पर विदेशी आक्रांता आक्रमण करते रहे हैं. भारतीय राजा-महाराजाओं ने उनका डटकर मुक़ाबला भी किया है. पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी के नाम से तो हर कोई वाक़िफ़ ही है. मगर विदेशी आक्रांताओं का खदेड़ने में भारतीय वीरांगनाएं भी पीछे नहीं रही हैं. फिर चाहे अंग्रेज़ोंं से मुक़ाबला करने वाली महारानी लक्ष्मीबाई हों या फिर मोहम्मद गोरी को हराने वाली नायकी देवी. इनके अलावा कित्तूर की रानी चेनम्मा और रानी वेलु नचियार की बहादुरी भी इतिहास के स्वर्णिम अध्याय का हिस्सा हैं.

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आज हम आपको एक ऐसी ही सिख वीरांगना (Sikh Warrior) माई भागो (Mai Bhago) या माता भाग कौर (Mata Bhag Kaur) की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनकी बहादुरी को देखकर मुगलों को भी जान बचाकर भागने पर मजबूर होना पड़ा था.

कौन थी ये सिख वीरांगना?

Live History India के मुताबिक़, सिख वीरांगना माई भागो (Mai Bhago) का जन्म झाबल कलां (अब अमृतसर) में हुआ था और वो भाई मल्लो शाह नामक ज़मींदार की इकलौती बेटी थीं. उनके माता-पिता सिख धर्म को मानने वाले थे. जब माता भागो छोटी थीं, तो उनके पिता उन्हें गुरू गोबिंद सिंह जी से मिलने आनंदपुर ले जाया करते थे.

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 Kaur Life के एक लेख के मुताबिक़, माई भागो साल 1699 के बाद मार्शल आर्ट सीखने और सैनिक बनने के लिए आनंदपुर साहिब में रहना चाहती थी, लेकिन उनके पिता ने मना कर दिया. हालांकि, उन्होंने गुरु गोविंंद सिंह जी की सेना में शामिल होने के लिए अपने पिता से युद्ध, तीरंदाजी और घुड़सवारी में ट्रेनिंग ली. 

मुगलों ने आनंदपुर पर किया हमला, 40 सैनिकों को लेकर पहुंची माई भागो 

बात साल 1704-05 की है. सिखों की बढ़ती ताकत ने मुगलों को चिंता में डाल दिया था. ऐसे में हिमाचल के कुछ पहाड़ी राजाओं की मदद से मुगलों ने आनंदपुर पर हमला कर दिया. उस दौरान वहां माई भागो के गांव के 40 लोग भी मौजूद थे. मगर गुरू गोबिंद सिंह जी से उन्हें युद्ध में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं मिली. ऐसे में वो अपने गांव वापस आ गए. ये बात जब माई को पता चली, तो उन्होंने इन सिखों को उनकी कायरता के लिए खूब लताड़ा. माई ने उन्हें वापस आनंदपुर जाने के लिए राज़ी किया और साथ में ख़ुद भी पुरुष का भेस धारण कर युद्ध के लिए निकल पड़ीं.

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माई भागो जब आनंदपुर साहिब पहुंची तो तब तक वहां हालात बहुत ख़राब हो चुके थे. गुरु गोबिंद सिंह जी को ये कहकर वहां से सिख योद्धा ले गए कि बाकी बचे लोगों को भी निकाल लिया जाएगा. मगर ऐसा नहीं हो पाया. कई अनुयायी और ख़ुद गुरू गोबिंग सिंह का बेटा भी युद्ध में शहीद हो गया. गुरू अपने अनुयायियों के साथ पंजाब के फ़िरोज़पुर के खिदराना गांव आ गए थे. यहां माई भागो उन्हीं 40 सिखों के साथ पहुंची.

मुगलों के 10000 सैनिकों पर भारी पड़ीं माई भागो (Mai Bhago)

न तो सिखों ने झुकना सीखा था और न ही माई भागो (Mai Bhago) ने. ऐसे में ये महिला सिख योद्धा मई 1705 में 250 सिखों और 40 अनुयायियों की टुकड़ी लेकर मुगलों के 10000 सैनिकों से भिड़ गई. ये युद्ध इतना भीषण हुआ कि सभी सिख योद्धा और अनुयायी बलिदान हो गए. सिर्फ़ माई भागो ही जीवित बचीं. मगर उन्होंने मुगलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. इसे ‘मुक्तसर की जंग’ (Battle of Muktsar) के तौर पर जाना गया. 

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गुरु गोबिंद सिंह जी ने इन 40 सिखों की बहादुरी और बलिदान को देखकर इन्हें ‘चाली मुक्ते’ कहा. खिदराना की झील के पास आज एक गुरुद्वारा है, जिसे ‘श्री मुक्तसर साहिब’ कहा जाता है. यहां चालीस मुक्तों की याद में आज भी ‘माघी का मेला’ लगता है. श्रद्धालु यहां पवित्र सरोवर में माघी स्नान कर मुक्तों को नमन करते हैं.

माई भागो बनी गुरू गोबिंद सिंह जी की अंगरक्षक

युद्ध में माई भागो घायल हो गई थीं. गुरू गोबिंद सिंह जी ने उनका इलाज और देख-रेख की. स्वस्थ होने के बाद नानदेद में वनवास के दौरान माई भागो गुरु की अंगरक्षक भी थीं. गुरु के निधन के बाद माई कर्नाटक के जिनवारा, बीदार में जाकर रहने लगीं. यहां वो लंबे अरसे तक रहीं. उनका निधन कब हुआ, इस बारे में जानकारी नहीं है. जहां माई भागो की कुटिया थी, वहां पर आज ‘गुरुद्वारा तप अस्थान’ (Gurudwara Tap Asthan) स्थित है. 

वाक़ई सिख इतिहास में माई भागो का अहम स्थान और योगदान है. इतिहास के पन्नों में छुपी शहादत की कहानी हर भारतीय को जाननी चाहिए.