Major Ramaswamy Parameswaran : भारतीय सेना द्वारा कई बड़े सैन्य अभियानों को अंजाम दिया गया है, जिसमें 1971 की लड़ाई, कारगिल युद्ध, ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसे नाम शामिल हैं. वहीं, इनमें एक नाम ‘ऑपरेशन पवन’ का भी आता है, जिसे श्रीलंका की धरती अंजाम दिया गया था. इस ऑपरेशन में शामिल भारतीय सेना के हर एक सिपाही ने अपनी अहम भूमिका दी थी. इसमें एक नाम मेजर रामास्वामी परमेश्वरन का भी आता है, जिन्हें ‘ऑपरेशन पवन’ में बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. आइये, जानते हैं मेजर रामास्वामी परमेश्वरन के बारे में कुछ ख़ास. 

आइये, विस्तार से पढ़ते हैं आर्टिकल (Major Ramaswamy Parameswaran). 

क्या था ऑपरेशन पवन?  

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11 अक्टूबर 1987 में ऑपरेशन पवन इंडियन पीस कीपिंग फ़ोर्स (IPKF) द्वारा लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) से जाफ़ना को मुक़्त कराने के लिए चलाए गए ऑपरेशन का कोड नेम था. लगभग तीन सप्ताह तक चली इस क्रूर लड़ाई में, IPKF ने जाफ़ना प्रायद्वीप पर नियंत्रण कर लिया, जो श्रीलंकाई सेना करने में विफल रही थी. दरअसल, भारत-श्रीलंका के बीच 29 जुलाई 1987 को एक शांति समझौता हुआ था, जिसका उद्देश्य था श्रीलंका में जारी गृहयुद्ध को ख़त्म करना था. ये भारतीय सैन्य अभियान उसी समझौते का हिस्सा था. 

मेजर परमेश्वरन 

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Major Parameswaran का जन्म मुंबई, महाराष्ट्र में 13 सितंबर 1946 को हुआ था. उनके पिता का नाम के.एस. रामास्वामी और माता का नाम जानकी था. उन्होंने अपनी स्कूलिंग मुंबई के ‘South Indian Education Society’ से की थी. इसके बाद उन्होंने SIES college से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया. इसके बाद वो चेन्नई के OTA (Officers Training Academy) में शामिल हो गए और 16 जून 1972 को वहां से पास आउट हुए. वहीं, 1981 में वो शादी के बंधन में बंधे. उनकी पत्नी का नाम था उमा. 

मेजर परमेश्वरन को भारतीय सेना की प्रसिद्ध महार रेजिमेंट के 15वें बटालियन में नियुक्त किया गया था और वहां उन्होंने आठ साल तक सेवा की.

ऑपरेशन पवन में दिखाई बहादुरी  

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Major Ramaswamy Parameswaran: श्रीलंका में चल रहे गृहयुद्ध को शांत करने के लिए भारत से भेजी गई सेना में महार रेजिमेंट के मेजर रामास्वामी भी थे. वहीं, 25 नवंबर 1987 को जब ‘8 महार’ के मेजर रामास्वामी परमेश्वरन श्रीलंका में एक तलाशी अभियान से लौट रहे थे, तो उनकी टुकड़ी पर उग्रवादियों के एक समूह ने घात लगाकर हमला किया. वहीं, अपने तेज़ दिमाग़ के उन्होंने उग्रवादियों को पीछे से घेर लिया और उन पर हमला कर दिया, जिससे वो पूरी तरह से अचंभित हो गए.

वहीं, आमने-सामने की लड़ाई के दौरान, एक आतंकवादी ने उनके सीने में गोली मार दी. निडर मेजर परमेश्वरन ने आतंकवादी से राइफल छीन ली और उसे गोली मार दी. गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद उन्होंने आदेश देना जारी रखा और अंतिम सांस लेने तक अपना काम जारी रखा.

उनकी साहसिक कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप पांच आतंकवादी मारे गए और कई हथियार और गोला-बारूद बरामद किए गए. मेजर रामास्वामी परमेश्वरन ने विशिष्ट वीरता और प्रेरक नेतृत्व का परिचय दिया और सर्वोच्च बलिदान दिया, जिसके लिए उन्हें परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया.