Most Successful Female Sniper In History: जंग की कहानियों में ज़्यादातर पुरुषों की बहादुरी के क़िस्से मिलते हैं. जबकि, महिलाओं ने हर युद्ध में बड़ी-बड़ी भूमिकाएं निभाई हैं. द्वितीय विश्य युद्ध (World War II) भी इसका अपवाद नहीं है. इस जंग में एक ऐसी महिला स्नाइपर थी, जिसने हिटलर की सेना के 300 से ज़्यादा लोगों को अपनी गोली का शिकार बनाया था. दुश्मनों के बीच वो ‘लेडी डेथ’ (Lady Death) नाम से मशहूर थी. इस यूक्रेनियन सोवियत स्नाइपर का नाम था ल्यूडमिला पेवलीचेंको (Lyudmila Pavlichenko).
आइए जानते हैं इतिहास की सबसे ख़तरनाक महिला स्नाइपर की कहानी- (Most Successful Female Sniper In History Lyudmila Pavlichenko AKA Lady Death)
इतिहास की छात्रा कैसे बनी स्नाइपर?
द्वितीय विश्व का भयानक दौर युद्ध. वो भयानक समय जब इंसानों की दरिंदगी अपने चरम पर थी. जून 1941 में 24 साल की पेवलीचेंको कीव यूनिवर्सिटी, यूक्रेन में हिस्ट्री की पढ़ाई कर रही थीं और अपने चौथे साल में थी. उसी वक़्त हिटलर ने Operation Barbarossa लॉन्च किया और सोवियत यूनियन पर अपना धावा बोल दिया था.
जर्मन सैनिक सोवियत यूनियन पर कब्ज़ा जमाने की फ़िराक में आगे बढ़ रहे थे. ऐसे में आम नागरिकों की सोवियत सेना में भर्ती शुरू होने लगी. रिक्रूटिंग ऑफ़िस में पेवलिचेंको पहले राउंड में भर्ती होने वाले वॉलंटियर्स में से थीं. हालांकि, उन्हें बतौर नर्स शामिल होने के लिए कहा गया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. उन्होंने इंफेंट्री जॉइन करने का आग्रह किया और उसके बाद उन्हें रेड आर्मी की 25वीं राइफ़ल डिवीज़न में जगह मिली.
300 से ज़्यादा हिटलर सैनिकों का किया शिकार
पेवलिचेंको रेड आर्मी की 2,000 महिला स्नाइपर्स में से एक थीं, जिनमें से युद्ध के बाद केवल 500 ही जीवित बचीं. सबसे पहले उन्होंने दो सैनिकों को निशाना बनाया था. उसके बाद उन्होंने ओडेसा की घेराबंदी तोड़ने के लिए ढाई महीने तक फ़्रंटलाइन पर युद्ध लड़ा. इस दौरान उन्होंने 187 लोगों को मारा था. इसके लिए उन्हें प्रमोट कर सीनियर सार्जेंट बना दिया गया.
जब रोमानिया को ओडेसा पर कंट्रोल मिल गया, तब उनकी यूनिट को सेवासटोपोल भेजा गया. यहां पेवलीचेंको ने 8 महीने तक लड़ाई लड़ी. मई 1942 तक पेवलीचेंको 257 जर्मन सैनिकों को मार चुकी थीं. द्वितीय विश्व युद्ध में उनके द्वारा प्रमाणिक हत्याओं की संख्या 309 है और इसमें दुश्मन देश के 36 स्नाइपर्स भी शामिल हैं.
इसी के चलते पेवलिचेंको अपने दुश्मनों के बीच ‘लेडी डेथ’ (Lady Death) नाम से मशहूर हो गई थीं. हालांकि, जून 1942 में, पेवलीचेंको मोर्टार फायर में घायल हो गईं. बढ़ते ख़तरे और अपने नाम की चर्चा की वजह से उन्होंने कॉम्बैट से अपने कदम पीछे खींच लिए.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने किया व्हाइट हाउस में स्वागत
पेवलिचेंको जब ठीक हो गईं तो उन्हें दोबारा फ़्रंटलाइन पर न भेजकर पब्लिसिटी विजिट पर कनाडा और युनाइटेड स्टेट भेजा गया. सोवियत यूनियन की पहली नागरिक बनीं, जिनकी अगवानी अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने व्हाइट हाउस में की.
युनाइटेड स्टेट ने उन्हें एक सेमी ऑटोमैटिक पिस्टल गिफ़्ट की और कनाडा में उन्हें विनचेस्टर राइफ़ल दी गई, जो अभी मॉस्को के सेंट्रल आर्म्ड फोर्स के म्यूज़ियम में रखी हुई है. पेवलीचेंको को सोवियत यूनियन में मेजर की रैंक मिली और युद्ध के बाद सोवियत स्नाइपर्स को ट्रेंनिंग देने लगीं. 1943 में, उन्हें सोवियत यूनियन के हीरो के तौर पर गोल्ड स्टार की उपाधि दी गई.
भले ही पेवलिचेंको कॉम्बैट में बिज़ी रही हों, मगर युद्ध के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की. उन्होंने सोवियत नेवी के चीफ हेडक्वॉर्टर में रिसर्च असिस्टेंट की नौकरी भी की. 10 अक्टूबर 1974 को 58 साल की उम्र में उनका निधन हो गया और मॉस्को में ही उन्हें दफ़न किया गया.
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