Mughal Food History: पहले के राजा-महाराजा बहुत भौकाल में रहते थे. बड़े-बड़े महल, नौकर-चाकर से लेकर हर तरह की सुविधा जो आप सोच सकते हैं और जो उस वक़्त मौजूद थी. शाही खाना भी इनमें से एक है. ऐसे में हमने सोचा कि क्यों ना आज आपको बताएं कि आख़िर मुगल शासकों को क्या खाना पसंद था और उसका इंतज़ाम कैसे किया जाता था. (Hakim Roles In Royal Kitchen)

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विदेशियों ने किया मुगलों की खान-पान और रसोई का ज़िक्र (Mughal Food History)

भारत में कई विदेशी व्यापारी आए. मुगलों के दौर में तो बड़ी संख्या में आए. हमारी ख़ुशकिस्मती ये है कि उन्होंने जो देखा, उसे लिख भी लिया. दरअसल, मुगल काल में किन्नरों की हरम से लेकर रसोई घर तक पहुंच थी. डच व्यापारी फ्रैंसिस्को पेल्सार्त ने अपनी किताब ‘जहांगीर्स इंडिया’ में मुगलों के दौर में शाही खानपान और रसोई का ज़िक्र किया है. फ्रैंसिस्को लिखते हैं, मुगल सल्तनत के दौर में किन्नरों को अरबी नस्ल के घोड़े, नौकर-चाकर, दासियां और बहुमूल्य कपड़े मिलते थे.

वहीं, एक पुर्तगाली व्यापारी मैनरिक किन्नर को रिश्वत देकर रसोई घर तक पहुंच गया था. उसने वहां के तौर-तरीके देखे. मैनरिक ने अपनी किताब ‘ट्रेवल्स ऑफ़ फ़्रे सेबेस्टियन मैनरिक’ लिखा कि मुगलों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए शाहजहां भी अपनी बेगम और रखैलों के साथ खाना खाता था. खाना परोसने का काम किन्नर करते थे.

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चावल के दानों में चांदी का वर्क लगता था

मैनरिक लिखता है कि शाही भोजन में क्या बनेगा, इसकी ज़िम्मेदारी हकीम के पास होती थी. वो ही ये तय करते थे कि खाने में कौन सी औषधी और मसालों का इस्तेमाल होगा. ताकि बादशाह सेहतमंद रहें. इसके लिए वो मौसम और बादशाह की सेहत को ध्यान में रख कर मेन्यू तैयार करवाता था.

मसलन, चावल में दानों में चांदी का वर्क का नज़र आता था. कहते थे कि चांदी का वर्क पाचन को बेहतर बनाने के साथ कामोत्तेजक भी होता था. ऐसे में खानसामे हकीम के निर्देश पर ही खाना बनाते थे.

साथ ही, शाही भोजन को तैयार कराने में मदद कराने से लेकर परोसने तक, सैकड़ों नौकर लगे होते थे.

खाना बनाने के लिए गंगा का पानी होता था इस्तेमाल

गंगा नदी के पानी को मुगल भी काफ़ी पवित्र मानते थे. अबुल फज़ल ने ‘आइन-ए-अक़बरी’ में गंगाजल के लिए अक़बर के इस प्यार का ज़िक्र भी किया है. अक़बर अपने पीने के लिए गंगाजल का ही इस्तेमाल करता था. इतिहासकार डॉ. राम नाथ ने अपनी किताब ‘प्राइवेट लाइफ़ ऑफ़ मुगल्स’ में कहा है कि अक़बर चाहें घर पर हो या यात्रा में, वो गंगाजल ही पीता था. बाबर और हुमायूं को भी गंगाजल ही पसंद था. उन्होंने इसे ‘आब-ए-हयात’ यानि स्वर्ग का पानी माना था.

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मुगल काल में खाना बनाने के लिए भी गंगा नदी और बारिश के छने हुए पानी का इस्तेमाल किया जाता था. मुगल बावर्ची जब भोजन तैयार कर रहा होता था तो उसकी खुशबू दूर तक जाती थी.

साथ ही, शाही भोजन को सलीके के साथ चांदी के बर्तन में परोसा जाता था. खाना परोसने और सजाने में भी काफ़ी समय लगता था.

खाना हो या पानी, ज़हर की जांच ज़रूर होती थी

कहते हैं कि गंगा नदी के किनारे कुछ भरोसेमंद लोग तैनात थे, जो हर रोज़ सीलबंद जार में पानी भेजते थे. ऐसा शायद इसलिए किया जाता था कि कोई पानी में ज़हर न मिला दे.

वहीं, मुगलों को भोजन खिलाने से पहले खाने में ज़हर की जांच होती थी. इसके लिए ज़ेड स्टोन का इस्तेमाल किया जाता था. ज़मीन पर महंगी कालीन बिछाकर दस्तरख़ान सजाया जाता था. मुगल बादशाह खाना खाने से पहले और भोजन के बाद, खुदा की इबादत करते थे. यही वजह थी कि मुगलों को भोजन करने में लम्बा समय लगता था.

बता दें, पहले जब मुगल भारत आए तो उन्होंने तुर्की खाना ही पसंद था. मगर समय के साथ उनके भोजन में कश्मीर वड़ी, पान के पत्ते, सफेद लौकी और बताशे शामिल हुए. इसके साथ ही फालसा और केला भी वो खाने लगे.

मुगल बादशाहों को आम और खरबूजे से विशेष लगाव रहा. यही वजह थी इनके भोजन में मेमने के गोश्त और चावल में आम को डालकर विशेष ज़ायके वाला भोजन तैयार किया जाता था.

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