नूरजहां (Nur Jahan) ‘मुगल सल्तनत’ के बादशाह जहांगीर (Mughal Emperor Jahangir) की 20वीं और आख़िरी बेगम थीं. हालांकि, इतिहासकार नूरजहां को जहांगीर की वजह से नहीं, बल्क़ि ख़ुद नूरजहां के असाधारण व्यक्तित्व के लिए याद करते हैं. कहा जाता है कि जिस दौर में महिलाओं के अधिकारों की बात तक नहीं होती थी, उस वक़्त नूरजहां एक फ़ेमनिस्ट महिला के तौर पर दिखाई दीं. उन्होंने न सिर्फ़ अपने नाम के सिक्के जारी किए, बल्क़ि ‘मुगल साम्राज्य’ की कमान तक अपने हाथों में ले ली.

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आइए जानते हैं 17वीं सदी की भारत की सबसे ताक़तवर महिला की कहानी-

साधारण परिवार में जन्मी असाधारण महिला थीं नूरजहां (Nur Jahan)

नूरजहां (Nur Jahan) का जन्म 1577 के क़रीब कंधार (अफ़ग़ानिस्तान) में हुआ था. उनके माता-पिता फ़ारसी थे, जिन्होंने सफ़वी शासन में बढ़ती असहिष्णुता की वजह से ईरान छोड़कर कंधार में शरण ली थी. नूरजहां अलग-अलग तरह की संस्कृतियों और रीति-रिवाजों में पली बढ़ीं.

बहुत कम लोग जानते हैं कि नूरजहां की शादी पहले जहांगीर से नहीं, बल्क़ि 1594 में मुगल सरकार के एक पूर्व सिख सरकारी अधिकारी से हुई थी. इसके बाद वो बंगाल चली गईं, जो उस वक़्त पूर्वी भारत का एक संपन्न राज्य था. हालांकि, बाद में जहांगीर के ख़िलाफ़ षड्यंत्र रचने के आरोप में नूरजहां के पति का बंगाल के गवर्नर के आदमियों से युद्ध हुआ, जिसमें वो मारे गए. पति की मौत के बाद विधवा नूरजहां को जहांगीर के महल में शरण दी गई और साल 1611 में नूरजहां और जहांगीर की शादी हो गई.

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पुरुषों के दबदबे वाली दुनिया में संभाली सत्ता की कमान

नूरजहां (Nur Jahan) एक आकर्षक महिला थीं. वो महान कवयित्री, शिकार करने की शौक़ीन और स्थापत्य कला में नए-नए प्रयोग करना पसंद करती थीं. उन्होंने आगरा में अपने माता-पिता के मक़बरे का डिज़ाइन तैयार किया, जिससे ताजमहल की डिज़ाइन प्रेरित है.

नूरजहां, जहांगीर की पसंदीदा बेगम थीं. जहांगीर ने नूरजहां की एक तस्वीर भी बनाई, जिसमें उसे एक संवेदनशील साथी, ख़्याल रखने वाली महिला, कुशल सलाहकार, कूटनीतिज्ञ और कला प्रेमी दिखाया. यक़ीनन, नूरजहां बहुत़ क़ाबिल थीं, तब ही वो पुरुषों के दबदबे वाली दुनिया में एक शानदार नेता बनकर उभरीं.

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इतिहासकारों का कहना है कि, नशे का आदी होने के बाद जहांगीर ने अपना साम्राज्य नूरजहां को सौंप दिया. जबकि ये पूरी तरह सच नहीं है. नूरजहां और जहांगीर तो एक दूसरे के पूरक थे. जहांगीर से शादी के बाद उन्होंने कर्मचारियों की ज़मीन की सुरक्षा से जुड़ा अपना पहला शाही फ़रमान ज़ारी किया था, जिसमें नूरजहां बादशाह बेगम के नाम से उनके दस्तख़त थे. इससे पता चलता है कि नूरजहां की ताक़त कैसे बढ़ रही थी.

चांदी के सिक्कों पर छपवाया नाम

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साल 1617 में चांदी के सिक्के जारी किए गए, जिन पर जहांगीर के बगल में नूरजहां का नाम छपा था. मुगल सल्तनत में ये पहली बार था जब एक रानी का नाम सिक्कों पर छपा था. नूरजहां शासन-प्रशासन के हर क्षेत्र में सक्रिय थीं. वो महिलाओं के मामले, घरेलू और विदेशी व्यापार और टैक्स कलेक्शन व्यवस्था पर भी थी. एक बार तो नूरजहां ने उस शाही बरामदे में आकर सबको चौंका दिया जो केवल पुरुषों के लिए आरक्षित था.

न्यायालय के अधिकारियों, विदेशी राजनायिकों, व्यापारी और मेहमानों ने भी नूरजहां के बढ़ते कद को पहचानना शुरू कर दिया था. यहां तक कि जब जहांगीर को बंदी बना लिया गया, तब उन्होंने उन्हें बचाने के लिए सेना का नेतृत्व किया. नूरजहां के इन्हीं कामों के चलते उनका नाम इतिहास में एक असाधारण महिला के तौर पर दर्ज हो गया.

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