Story Behind Congress Hand Symbol: ये तो आपको पता ही होगा भारत में हर राजनीतिक पार्टी का अपना एक अलग चुनाव चिह्न होता है. ये चुनाव चिह्न विभिन्न राजनीतिक दलों को बीच एक अलग पहचान बनाने का काम करता है. साथ ही ये सुनिश्चित करता है कि चुनाव के समय जनता अपनी पसंदीदा पार्टी को वोटे देते समय कनफ़्यूज़ न हो. 

वहीं, चुनाव चिह्न भी बहुत ही सोच समझकर रखे जाते हैं. इसके अलावा, कई राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न के पीछे दिलचस्प कहानियां भी जुड़ी हैं. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कि भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को कैसे मिला (Story of Congress Party Symbol in Hindi) उनका चुनाव चिह्न ‘हाथ का पंजा’.

अब विस्तार से पढ़ते हैं Story Behind Congress Hand Symbol

कांग्रेस पार्टी का पहला चुनाव चिह्न

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Story Behind Congress Hand Symbol: कांग्रेस की स्थापना एओ ह्यूम द्वारा 1885 को की गई थी. वहीं, इस पार्टी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में 1951-52 को लड़ा था. उस वक़्त इस पार्टी का चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ था. वहीं, जब कांग्रेस पार्टी का विघटन हुआ, तो ये पार्टी दो भागों में बंट गई, एक कांग्रेस ‘ओ’ और दूसरी काग्रेस ‘आर’. वहीं, दोनों पार्टियां ‘बैलों की जोड़ी’ चुनाव चिह्न पर अपना दावा जताने लगी और जब ये मामला चुनाव आयोग के पास पहुंचा, तो काग्रेस ‘ओ’ को ‘दो बैलों की जोड़ी’ वाला चिह्न दे दिया गया.

वहीं, इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी के के लिए ‘गाय-बछड़ा’ चुनाव चिह्न चुना. इस चुनाव चिह्न के साथ पार्टी काफ़ी समय तक रही. वहीं, आगे चलकर कांग्रेस की स्थिति फिर से डगमगाई और 1978 में पार्टी को तोड़कर एक नई पार्टी बनाई गई, जिसका नाम रखा गया कांग्रेस ‘आई’.  

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कहते हैं कि ‘गाय-बछड़ा’ चुनाव चिह्न पार्टी के लिए नेगेटिव इमेज बना रहा था. लोग इसे अलग तरीक़े से यानी गाय को इंदिरा गांधी और बछड़े को संजय गांधी से जोड़कर देख रहे थे. वहीं, विपक्ष भी लगातार हमला करने पर था. ऐसे में इंदिरा गांधी इस चुनावी चिह्न से छुटकारा पाना चाहती थीं. इसलिए, आगे चलकर ‘हाथ का पंजा’ कांग्रेस का नया चुनावी चिह्न बना, लेकिन इस चुनावी चिह्न के पीछे कई दिलचस्प कहानियां जुड़ी हुई हैं.  

पहली दिलचस्प कहानी

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राजनीतिक पत्रकार रशीद किदवई  की किताब ‘Ballot -Ten Episodes That Have Shaped India’s Democracy’ के अनुसार, बूटा सिंह, जो उस समय अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के महासचिव थे, ने चुनाव आयोग से नए चुनाव चिह्न के लिए याचिका दायर की. बूटा सिंह के सामने तीन विकल्प रखे गए, एक साइकिल, दूसरा हाथ का पंजा और तीसरा हाथी. बूटा सिंह को समझ में नहीं आ रहा था कि कौन-सा विकल्प चुनें. जिस वक्त बूटा सिंह को चुनाव आयोग द्वारा पार्टी चिह्न चुनने के लिए बुलाया गया, तो इंदिरा गांधी पीवी नरसिम्हा राव के साथ विजयवाड़ा में थी.


बूटा सिंह ने इंदिरा गांधी का अप्रूवल लेने के लिए उन्हें फ़ोन लगा दिया. शायद टेलिफ़ोन लाइन स्पष्ट नहीं थी या बूटा सिंह के बोलने का उच्चारण थोड़ा अलग था, इंदिरा गांधी लगातार हाथ की बजाय हाथी सुनती रहीं. इंदिरा गांधी उधर से मना कर रही थीं और उधर से बूटा सिंह समझाने की कोशिश में लगे रहे कि वो हाथी नहीं हाथ का पंजा है, जिसे वो चुनने के लिए कह रहे थे.

वहीं, बाद में इंदिरा गांधी ने फ़ोन पीवी नरसिम्हा राव को दे दिया और कुछ ही देर में राव समझ गए कि बूटा सिंह क्या समझाने की कोशिश कर रहे हैं. बाद में पीवी नरसिम्हा राव ने हाथ के पंजे पर मुहर लगा दी.

दूसरी कहानी

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Story Behind Congress Hand Symbol: चुनावी चिह्न से जुड़ी दूसरी कहानी मथुरा के देवरहा बाबा से जुड़ी है. एक मीडिया रिपोर्ट की मानें, तो जब 1977 में कांग्रेस पार्टी की करारी हार हुई, तो इंदिरा गांधी दवराह बाबा के आश्रम उनका आशाीर्वाद लेने गईं थीं. कहते हैं कि बाबा ने हाथ उठाकर उन्हें आशीर्वाद दिया था. इसके बाद इंदिरा गांधी ने पार्टी का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा रख दिया था.

तीसरी कहानी  

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Story Behind Congress Hand Symbol: चुनाव चिह्न से जुड़ी तीसरी दिलचस्प कहानी का ज़िक्र Hindustan Times की एक रिपोर्ट में मिलता है. पलक्कड़ ज़िले के ईएमूर भगवती (हेमाम्बिका) मंदिर के लोगों का मानना है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मंदिर के देवी से प्रभावित थीं. वहीं, ऐसा माना जाता है कि ये अनोखा मंदिर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां केवल देवी का हाथ है और मंदिर को “कैपति” (हाथ) मंदिर के रूप में भी जाना जाता है.


हेमाम्बिका मंदिर के कार्यकारी अधिकारी वी मुरलीधर के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मंदिर के प्रमुख श्रद्धालुओं में से एक थीं और उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न देवी के हाथों से लिया गया था.