Mulla-Do-Piyaza: बादशाह अकबर के नवरत्नों में जो सबसे ज़्यादा चर्चित हैं वो हैं, बीरबल. इनके अलावा, अबुल फ़ज़ल, फ़ैज़ी, मियां तानसेन, राजा टोडरमल, राजा मान सिंह, अब्दुल रहीम ख़ान-ऐ-खाना और हमीम हमाम. इन सबमें एक और ते, जिनका नाम था मुल्ला-दो-प्याज़ा. ये मुग़लिया सल्तनत के वो शख़्स थे जो हमेशा अपना नाम बनाना चाहते थे. मुल्ला-दो-प्याज़ा अपना नाम तो बनाना चाहते थे, लेकिन इनका नाम इतना विचित्र था कि उसे सुनते ही लोगों में उसके बारे में जानने का उत्साह बढ़ जाते थे. वैसे इस नाम को सुनने के बाद आपको भी लग रहा होगा कि इनका नाम मुल्ला-दो-प्याज़ा ही था या किसी वजह से नाम पड़ा.

Mulla-Do-Piyaza
Image Source: roar

आइए, जानते हैं कि एक शख़्स अकबर का नवरत्न कैसे बना और उसका ये नाम किसने रखा?

Mulla-Do-Piyaza

ये भी पढ़ें: रोचक तथ्य: अकबर के नवरत्न में से एक महेश दास कैसे बने बीरबल, जानिए इसका दिलचस्प क़िस्सा

मुग़ल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक मुल्ला-दो-प्याज़ा का असली नाम अब्दुल हसन था, जो एक स्कूल मास्टर के बेटे थे. पिता स्कूल मास्टर थे तो अब्दुल के घर में पढ़ने का मौहाल था और उन्हें किताबें पढ़ने में बहुत रुचि थी. हालांकि, वो एक साधारण परिवार से थे, लेकिन कभी भी साधारण जीवन जीना नहीं चाहते थे. उनका एक सपना था कि, वो अकबर के नवरत्नों में शामिल हो सकें.

Mulla-Do-Piyaza
Image Source: tv9hindi

इनके सपने को पूरा करने में अनजाने में ही सही अब्दुल का साथ दिया अकबर के पिता हुमायूं ने, जो उन्हें ईरान से भारत लेकर आए थे. हुमायूं ने जब दिल्ली फ़तेह की तो अब्दुल हसन भी उनके साथ थे और वो मस्जिद में इमाम बनकर रहे. अब्दुल अपनी दमदार आवाज़ की वजह से हमेशा में चर्चा रहते ते इसके चलते वो धीरे-धीरे मुग़ल दरबारियों से मिलने लगे और एक दिन उनकी मुलाक़ात अकबर के नवरत्नों में शामिल फ़ैज़ी से हुई. दोनों अच्छे दोस्त बन गए, बस यहीं से अब्दुल फ़ज़ल को अपना नवरत्न बनने का सपना सच होता दिखा.

Mulla-Do-Piyaza
Image Source: news18

BBC की रिपोर्ट के अनुसार,

इस सपने को पूरा करने के लिए अब्दुल हसन ने कई पैंतरें अपनाए और वो अकबर के दरबार के मुर्गीखाने में प्रभारी की नौकरी पाने में सफल हुए. हालंकि, अब्दुल हसन बहुत पढ़े-लिखे थे इसके बावजूद भी अकबर के नवरत्नों तक पहुंचने के लिए उन्होंने इस पद को स्वीकार कर लिया.

Mulla-Do-Piyaza
Image Source: postsen

अब्दुल ने अपने चतुर दिमाग़ का परिचय देते हुए मुर्गियों को महीनेभर तक शाही रसोई में बचा हुआ खाना खिलाया, जिससे की मुर्गियों के खाने का खर्चा बच गया जब अब्दुल ने अकबर के सामने एक महीने का लेखा-जोखा पेश किया तो अकबर इस बचत को देखकर ख़ुश हुए और अब्दुल को शाही पुस्तकालय का प्रभारी बना दिया.

Mulla-Do-Piyaza
Image Source: hindustantimes

पुस्तकालय के प्रभारी के तौर पर भी अब्दुल ने कुछ ऐसा ही किया, उन्होंने पुस्तकालय की सुंदरता को बढ़ाने के लिए एक तरक़ीब निकाली. फ़रियादी मखमल और ज़री के काम वाले जो पर्दे देकर जाते थे उसे अब्दुल ने पुस्तकालय की सजावट के तौर पर इस्तेमाल किया. एक साल बाद जब अकबर पुस्तकालय गए तो, वहां ज़री और मखमल के पर्दों में लिपटी किताबें देखकर उनकी नज़र नहीं हटी और वो बहुत ख़ुश हो गए. इस बुद्धिमानी के लिए बादशाह अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया.

Mulla-Do-Piyaza
Image Source: freelibrary

ये भी पढ़ें: जानिए क्यों औरंगज़ेब ने बेटी ज़ेबुन्निसा को दी 20 साल की सज़ा और कैसे वो बन गई एक ‘कृष्ण भक्त’

फ़ैज़ी जिससे अब्दुल की मुलाक़ात मस्जिद में काम करने के दौरान हुई थी उसने एक दिन इन्हें शाही दावत पर बुलाया और मुर्ग गोश्त बनवाया, जो इन्हें इतना पसंद आया कि वो इसके दीवाने हो गए. फिर इन्होंने फ़ैज़ी से इसका नाम पूछा तो उन्होंने मुर्ग दो प्याज़ा बताया. ये अब्दुल का पसंदीदा खाना हो गया इसलिए जब भी उन्हें कोई दावत पर बुलाता तो वो यही बनवाता था इसे बनाते समय प्याज़ को बड़े ही अलग और ख़ास तरीक़े से इस्तेमाल किया जाता है.

Mulla-Do-Piyaza
Image Source: zaykarecipes

फिर जब अकबर ने अब्दुल को अपने बावर्चीखाने की ज़िम्मेदारी सौंपी तो उन्होंने अकबर को सबसे पहले मुर्ग दो प्याज़ा खिलाया. वो भी इस पकवना के मुरीद हो गए और उन्होंने अब्दुल हसन को ‘दो प्याज़ा’ की उपाधि दे दी. मस्जिद में इमाम के पद पर रहने के चलते इन्हें मुल्ला भी कहा जाता था तो बस ऐसी ही इनका नाम मुल्ला-दो-प्याज़ा पड़ा.