Story of Satish Dhawan in Hindi: हमारी हमेशा से कोशिश रही है कि रिडर्स को हम गुदगुदाने वाले आर्टिकल्स के साथ-साथ इनफ़ॉर्मेटिव जानकारियां भी दें. साथ ही इतिहास के उन ख़ास व्यक्तियों के बारे में बताएं, जिन्होंने देश के लिए कुछ कर दिखाने का ज़िम्मा उठाया है और देश के भविष्य निर्माण में अपनी भागीदारी दी. इस कड़ी में हम उस ख़ास शख़्स के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिनके मार्गदर्शन में भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की. ये वो वैज्ञानिक थे जिन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में विदेशी निर्भरता को ख़त्म करने का काम किया.

आइये, विस्तार से जानते हैं भारतीय वैज्ञानिक सतीश धवन (Story of Satish Dhawan ISRO Scientist in Hindi) के बारे में और साथ में जानते हैं देश के पहले सैटालाइट को लॉन्च करने में उनकी क्या भूमिका थी. 

गणित के साथ कई विषयों की डिग्री हासिल की

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Story of Satish Dhawan in Hindi: सतीश धवन का जन्म 25 दिसंबर 1920 को श्रीनगर में हुआ था. वहीं, स्कूली पढ़ाई के बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से कई विषयों की डिग्री हासिल की, जैसे गणित में बीए, इंग्लिश लिटरेचर में एमए और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीई की डिग्री. वहीं, 1947 में सतीश धवन ने अमेरिका की University of Minnesota से MS in Aerospace Engineering की डिग्री हासिल की. इसके बाद California Institute of Technology से उन्होंने Aeronautical Engineering की पढ़ाई पूरी की. 

इसके बाद आगे चलकर उन्होंने Professor Hans W Liepmann के अंडर अपनी पीएडी पूरी की. वहीं, इसके बाद उन्होंने Fluid Dynamics पर अपनी रिसर्च शुरू कर दी. 

Indian Institute of Science किया ज्वाइन 

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Story of Satish Dhawan in Hindi: विभिन्न विषयों में डिग्री हासिल करने के बाद सतीश धवन ने Senior Scientific Officer के रूप में बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस को ज़्वाइन किया. कुछ सालों बाद उन्हें Department of Aeronautical Engineering में बड़े पद पर नियुक्त किया गया. सतीश धवन की मेहनत की बदौलत ये डिपार्टमेंट जल्द ही Fluid Dynamics में एक रिसर्च सेंटर बन गया. 

ये सतीश धवन ही थे जिनकी मेहनत से बेंगलुरु की National Aerospace Laboratories में विश्व स्तरीय Wind Tunnel Facility के निर्माण के द्वार खुले. 

Indian Institute of Science के डायरेक्टर 

अपनी मेहनत और ज्ञान के बल पर सतीश धवन 1962 में Indian Institute of Science के डायरेक्टर बनें. इस पद को पाने वाले वो सबसे कम उम्र के वैज्ञानिक थे. 

संभाला इंडियन स्पेस प्रोग्राम का कार्यभार 

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Story of Satish Dhawan ISRO Scientist in Hindi: सतीश धवन क़रीब 9 सालों तक IISC के डायरेक्टर पद पर बने रहे और इसके बाद वो 1971 में एक साल के पढ़ने के लिए बाहर चले गए. इस बीच उन्हें इंडियन एंबेसी से कॉल आया कि इंदिरा गांधी ने अनुरोध किया है कि वो भारत वापस आ जाएं और इंडियन स्पेस प्रोग्राम का कार्यभार संभाल लें.  

ये फैसला तब लिया गया जब विक्रम साराभाई की अचानक मृत्यु (30 सितंबर 1971) हो गई. सतीश धवन ने देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम का कार्यभार संभालने का फैसला तो किया, लेकिन उनकी दो शर्ते थे. पहली ये कि बेंगलुरु में अंतरिक्ष कार्यक्रम का मुख्यालय बनें और दूसरा ये कि उन्हें IISC का डायरेक्टर भी बनाया जाए. उनकी शर्तों को माना गया और इसके बाद सतीश धवन का भारत लौटना हुआ. 1972 में सतीश धवन ने भारत के अंतरिक्ष विभाग के सचिव का पद संभाला. 

ये वो समय था जब ISRO (Indian Space Research Organization) और अंतरिक्ष विभाग को औपचारिक रूप से स्थापित किए गए थे. 

अंतरिक्ष कार्यक्रमों की उपलब्धियों को बढ़ाने का किया काम  

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साथ ही भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के विकास और उनकी उपलब्धियों को बढ़ाने का काम किया. 

सतीश धवन ने पूरी गरिमा के साथ अपने सभी दों को संभाला. साथ ही सभी विषयों पर काम करवाया और प्रोग्राम की फ़ंडिंग से लेकर टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट के निर्माण को सुनिश्चित किया. 

ISRO में इनोवेशन को प्रोत्साहित करने का काम 

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Indian Scientist Satish Dhawan: इसके साथ ही उन्होंने इसरो में एक ऐसी संरचना की नींव रखी जिसने इसरो में इनोवेशन को प्रोत्साहित करता था. वक़्त के साथ-साथ अच्छे रिज़ल्ट भी मिलने शुरू हो गए थे. इसके साथ ही अलग-अलग केंद्रों से विशेषज्ञों की टीम भी तैयारी की. साथ ही इसरो में स्वतंत्र प्रयासों को लक्ष्य बनाया, चाहे वो सैटेलाइट हो या उसे लॉन्च करने वाला व्हीकल. 

इसके साथ ही जो ख़ास काम सतीश धवन ने किया वो ये कि उन्होंने इसरो में स्वदेशी उद्योग की भूमिका पर ज़ोर दिया. आज कई स्वदेशी फ़र्म ISRO (Indian Space Research Organization) के लिये Space Quality Hardware का निर्माण करते हैं. 

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होनहार और युवा कर्मचारियों को चुना 

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सतीश धवन ने इसरो प्रोजक्ट के लिए इसरो के ही होनहार, कर्मठ और युवा कर्मचारियों का चयन किया. जैसे अब्दुल कलाम को भारत के पहले लॉन्च व्हिकल SLV-3 के लिये, NLA में रिसर्च का नेतृत्व करने के लिये और Udupi Ramachandra Rao को उस टीम का नेतृत्व करने के लिए चुना जिसने देश का पहला सैटेलाइट ‘आर्यभट्ट’ बनाया. 

युवाओं को प्रोत्साहित किया और असफलताओं से डरे नहीं

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ISRO Under Satish Dhawan in Hindi: देश के पहले लॉन्च व्हिकल (10 अगस्त 1979) SLV-3 का मिशन असफल रहा. इसके बाद हुई प्रेस कांफ़्रेस में उन्होंने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से कहा था कि वो सब संभाल लेंगे. उन्होंने प्रेस कांफ़्रेस में कहा था कि हमारा पहला सैटेलाइट लॉन्च था, लेकिन ये असफल रहा. हालांकि, कई टेक्नोलॉजी में हम सफल हुए हैं और कई और सफलता हमें पानी है. इसलिये, मेरी टीम को सभी तकनीकी मदद मिलनी चाहिए और हम अलगे मिशन में ज़रूर सफल होंगे और ऐसा हुई हुआ. 

8 जुलाई 1980 को SLV-3 को लॉन्च किया गया और इस बार हमें सफलता हाथ लगी. इस लॉन्च व्हिकल ने 40 किलो के Rohini Satellite ने सफलतापूर्वक ऑरबिट में छोड़ा. 

इस बार प्रेस कांफ़्रेस को संभालने के लिए सतीश धवन ने एपीजे अब्दुल कलाम और उनकी टीम को कहा. उनका मानना था कि अगर सफलता हाथ आती है, तो उसका श्रेय लीडर और उसकी टीम को मिलना चाहिए.    

रिटायर होने के बाद भी उन्होंने उन्होंने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर ध्यान बनाए रखा. वहीं, 3 जनवरी 2002 को हमने देश के एक काबिल और वरिष्ठ वैज्ञानिकों में से एक को खो दिया. 

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