Story Of Tunda Monster: हज़ारों साल पुराने पेड़ों को तो देखा होगा, उन पर कितनी लंबी-लंबी जड़ें लटकने लगती हैं. इन जड़ों की वजह से पेड़ डरावना भी लगने लगता है. वैसे कई किवदंतियां प्रचलित हैं कि पुराने पेड़ों पर भूत-प्रेतों का वास होता है. इसलिए कई बार आपने देखा होगा कि पुराने पेड़ के आस-पास किसी रात में खड़े होने के लिए मना किया जाता है. हज़ारों साल पुराने पड़े हर जगह होते हैं और इनसे जुड़ा एक इतिहास भी होता है. ऐसा ही एक 5000 साल पुराना देवदार का पेड़, हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में भी है, जो देखने में उल्टा लगता है.

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इस पेड़ को लेकर कहा जाता है कि इसमें टुंडा राक्षस रहते हैं, तो चलिए जानते हैं कि आख़िर क्या है टुंडा राक्षस की कहानी और ये कौन होते हैं? देवदार के पेड़ को स्थानीय भाषा में केलो कहते हैं.

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दरअसल, हज़ारों साल पुराना देवदार का ये पेड़ हिमाचल प्रदेश की ऊंची घाटी स्थित हलाण के कुम्हारटी में है. इस पेड़ के नीचे फाल्गुन महीने में फागली मेला लगता है. इस मेले का ही एक हिस्सा होते हैं टुंडा राक्षस, जो एक पात्र होता है. इस पेड़ के उल्टे होने के पीछे की पौराणिक मान्यता है कि,

हज़ारों साल पहले यहां देवता वासुकी नाग रहते थे उन्होंने एक शक्ति की परीक्षा लेने के लिए इस पेड़ को ज़मीन से परा उखाड़ कर उसे उल्टा खड़ा कर दिया. और उस शक्ति की परीक्षा लेते हुए उससे कहा कि, ये पेड़ सुबह तक सूखना नहीं चाहिए. उस दिव्य शक्ति के प्रभाव से उल्टे खड़े पेड़ में कोपलें निकल आईं और पेड़ हरा-भरा हो गया.

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इसके अलावा, टुंडा राक्षस का संबंध भी वासुकी नाग से है. जिस समय यहां पर देवता वासुकी नाग का वास था उसी समय टुंडा नाम का एक राक्षस अपना ज़बरदस्त आतंक फैला रहा था. आस-पास के देवताओं ने उस टुंडा राक्षस को अपने वश में करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे तो उन्होंने देवता वासुकी नाग से सलाह ली. देवता वासुकी ने कहा कि,

टुंडा की शादी टिबंर शाचकी से करवा दी जाए तो इसके आतंक को कम किया जा सकता है. तब ये प्रस्ताव शाचकी के सामने रखा गया, जिसके लिए शाचकी ने कहा, मैं तैयार हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है कि जब साल में एकबार मैं इस पेड़ के नीचे आऊं तो मुझे खाने-पाने का सामान चाहिए. शाचकी की ये शर्त मान ली गई और उसका विवाह टुंडा राक्षस से करवा दिया गया, लेकिन टुंडा का आतंक फिर भी कम नहीं हुआ तो वासुकी नाग ने टुंडा राक्षस को इसी पेड़ से बांध दिया. देवताओं के पुजारी कहते हैं कि, इसी की याद में फागली उत्सव आज भी मनाया जाता है और ये परंपरा पूरे रीति-रिवाज़ के साथ निभाई जाती है.

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हिमाचल प्रदेश के रहने वाले लोगों की मान्यता है कि,

जब देवताओं के इस इलाक़े में किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा आती है तो देवता इस पेड़ पर बिजली गिराकर हमारी और इलाक़े की रक्षा करते हैं.

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आपको बता दें, इस देवदार के पेड़ के अलावा, मनाली और क्लाथ के बीच जंगल में एक और देवदार का पेड़ है, जिसका व्यास 21 फ़ुट है और ऊंचाई क़रीब 75 फ़ुट है और ये भी 5000 साल पुराना है. इस पेड़ की बनावट छतरी जैसी है, जिसे जमलू केलो कहा जाता है यानी देवता जमलू का देवदार, इस पेड़ को देखने के लिए पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ती है.