The Great Madras Famine: आज से क़रीब 146 साल पहले 1876-1878 का मद्रास प्रांत (चेन्नई) में भीषण अकाल पड़ा था. इसे 1877 का मद्रास अकाल (The Great Madras Famine) के नाम से भी जाना जाता है. ये ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में पड़ने वाले सबसे भयंकर अकाल में से एक था. इसकी शुरुआत 1876 के अंत में  सूखे के चलते हुई, जिसके परिणामस्वरूप दक्षिण भारत में सभी प्रकार की फसल नष्ट हो गई. इसने 2 साल की अवधि के लिए दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम भारत (मद्रास और बॉम्बे प्रांत और मैसूर व हैदराबाद की रियासतों) को काफ़ी प्रभावित किया. मद्रास अकाल ने क़रीब 670,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को प्रभावित किया. इसके चलते क़रीब 5 करोड़ 85 लाख की कुल आबादी इसकी चपेट में आई. इस दौरान अकाल से मरने वालों की संख्या अनुमानित 55 लाख से 1 करोड़ के बीच थी.

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1 करोड़ लोगों की मौत

अकाल के दौरान काम करते हुए कॉर्नेलियस वालफ़ोर्ड ने अनुमान लगाया था कि, लगभग 1 करोड़ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. ब्रिटिश शासन के 120 वर्षों में भारत में कुल 34 अकाल पड़े थे, जबकि उससे पहले के पूरे 2000 सालों में केवल 17 अकाल ही पड़े थे. इस स्थिति को स्पष्ट करने वाले कारकों में से एक ये था कि अंग्रेज़ों ने मुग़लों की सार्वजनिक विनियमन और निवेश (Public Regulation And Investment) प्रणाली का परित्याग कर दिया था. अंग्रेज़ों के उलट मुगल शासक कर-राजस्व का उपयोग जल संरक्षण के लिए धन देने के लिए करते थे, जिससे खाद्य उत्पादन को बढ़ावा मिलता था. जब कभी अकाल पड़ता भी था तो वे खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध, जमाख़ोरी-विरोधी मूल्य विनियमन, कर राहत और मुफ्त भोजन के वितरण जैसे क़दम उठाते थे. 

The Great Madras Famine 

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भूख से इंसान-इंसान को खाने को मजबूर

‘अकाल’ के चलते लोगों ने ‘मद्रास प्रेसिडेंसी’ व ‘बॉम्बे प्रेसिडेंसी’ से पलायन करना शुरू कर दिया. जिससे वहां के हथकरघा व स्थानीय उद्योग तहस नहस हो गये. मद्रास अकाल ने 1877 के अंत तक भयावह रूप धारण कर लिया था. इस दौरान हर जगह लाशों के ढेर देखे जा सकते थे. महिलाओं व बच्चों को विक्रय की वस्तु बना दिया गया. हालात इस कदर डरावने थे के इंसान-इंसान को खाने को मज़बूर था. भूख और प्यास के चलते लोग चींटियों के बिलों से अनाज के दाने निकाल कर खाने तक को मजबूर हो गये. इस दौरान महिलाएं देह व्यापार द्वारा किसी तरह अपने परिवार का पेट पालने को मजबूर थी. (The Great Madras Famine)

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ब्रिटिश सरकार में लेफ़्टिनेंट कर्नल रोनाल्ड ऑस्बॉर्न ने लिखा, अकाल के दौरान सैकड़ों कंकाल पुराने कुओं में धकेल दिये गये क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर असंख्य मौतें हुईं कि मृतकों के दुखी सम्बन्धी परम्परा के अनुसार अन्तिम संस्कार करने में असमर्थ थे. मांओं ने थोड़े से भोजन के लिए अपने बच्चों को बेच दिया. पतियों ने अपनी पत्नियों को, उन्हें भूख के कष्ट झेलते हुए मरते देखने की पीड़ा से बचने के लिए तालाबों में फेंक दिया, मृत्यु के इन दृश्यों के बीच भारत और ब्रिटिश सरकार ख़ामोश रही और इसकी प्रसन्नता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इस दौरान समाचार पत्रों को मौन रहने के लिए समझा दिया गया था. (The Great Madras Famine)

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ब्रिटिश शासकों ने दिया मात्र 10,000 पौंड का दान

इस दौरान मद्रास के व्यापारी, कुलीन वर्ग व यूरोपीय लोगों ने चंदा इकट्ठा करने के लिए लंदन में ब्रिटेन सरकार से गुहार लगाई व स्थानीय स्तर पर भोजनशालाओ को शुरू किया गया. हालांकि, कुछ यूरोपीय लोगों ने दान भी दिए और जब लंदन सरकार ने भारत में ब्रिटिश सरकार के सर्वेसर्वा लिटन को इस मामले में फटकार लगाई तो लिटन ने बेमन से ही सही 10,000 पौंड का दान दिया और दान परम्परा को निरर्थक घोसित किया मद्रास गवर्नर को इस बाबत फटकार लगाई व ऐसे फिजूल कार्यों में पड़ने से बचने को कहा. लेकिन इसी फिजूलखर्ची का उदाहरण 1877 में भव्य दिल्ली दरबार लगा कर किया गया. (The Great Madras Famine)

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अंग्रेज़ों की ख़राब नीतियों का शिकार हुये

भारत में अंग्रेज़ों के आगमन से पहले ‘अकाल’ कोई नियमित आपदा नहीं थी और जब क़भी हुई भी तो तत्कालीन राजाओं ने दान, निर्माण कार्यों व समय रहते अनाज उपलब्ध करवा इसका प्रभाव कम रखने का भरसक प्रयास किया, लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में 1865-1947 तक कुल 31 भीषण अकाल पड़े. जिसमे 8.5 करोड़ भारतीयों ने अपनी जान गवाई. सन 1877 में मद्रास अकाल ने दक्षिण भारत व दक्षिण पश्चिम भारत के बड़े क्षेत्र मद्रास प्रेसिडेंसी, मैसूर ,हैदराबाद को प्रभावित किया. इस दौरान लगभग 50 लाख से 1 करोड़ लोगों को जान गवानी पड़ी. ये अकाल भी पूर्ववर्ती अकाल की भांति सूखा ,फसल खराबी व ब्रिटिश निर्यात नीतियों, नगदी फसलिकरण का परिणाम थी. जंहा सजग प्रयासों द्वारा अकाल की भयावहता को कम किया जा सकता था, परंतु ब्रिटिश शासकों ने अपने आर्थिक नीतियों ने इसे और बदतर बनाने का ही काम किया. 

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ब्रिटिश सरकार की नाकामी से सभी प्रयास अपर्याप्त रहे और मद्रास प्रेसिडेंसी को भीषण अकाल झेलना पड़ा. इस दौरान न केवल क़रीब 1 करोड़ लोगों की मौत हुई, बल्कि वेश्यावृत्ति, बाल व्यापार, भूखमरी ने भी मद्रास प्रेसिडेंसी को झकझोर करके रख दिया था. इसके बाद 1880 में ‘अकाल आयोग’ स्थापित किया गया व ‘अकाल सहिंता’ जारी की गई जिसने अकाल होने से पूर्व रोकने के उपाय सुझाये किन्तु फिर भी स्थिति कमोबेश वही रही क्योंकि आर्थिक नीतियों में कोई बड़े स्तर पर बदलाव ब्रिटिश रहनुमाओ को मंज़ूर न था और हिंदुस्तान अकाल के दंश भविष्य में भी झेलता रहा. 

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