Samurai Warriors: दुनिया के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं की बात हो और जापान (Japan) के समुराई योद्धाओं Samurai Warriors) का ज़िक्र न हो ऐसा भला कैसे हो सकता है. आज भी ‘समुराई योद्धाओं’ को इतिहास के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में गिना जाता है. जापान के इन ‘समुराई योद्धाओं’ को सालों की तपस्या के बाद ये उपाधि मिलती थी. मतलब ये कि जापान में 12वीं सदी से लेकर से लेकर 19वीं सदी के बीच ‘समुराई योद्धा’ बनना बेहद मुश्किल काम था. अगर कोई बन भी गया तो किसी जंग में हार मिलने पर उनके लिए आम लोगों की तरह ज़िंदगी जीना सबसे मुश्किल काम होता था.
जापान (Japan) के समुराई योद्धाओं Samurai Warriors) की युद्ध कौशल क्षमता सबसे अलग थी. उन्हें अमर माना जाता था, लेकिन 19वीं शताब्दी के आते-आते उनका अंत हो गया था. जापानी ‘समुराई योद्धा’ अपराजेय माने जाते थे. लेकिन इनसे जुड़ा हाराकिरी (Hara-Kiri) शब्द इनकी ज़िंदगी का सबसे अहम पड़ाव माना जाता था. आज हम आपको इसी ‘हाराकिरी’ शब्द का मतलब बताने जा रहे हैं.
ये वो शब्द है जिसमें दुनिया के सबसे महान योद्धाओं की शहादत छिपी है. जापान में Seppuku को Hara-Kiri भी कहा जाता है. ये अपने देशवासियों के लिए एक ऐसी शहादत है जो सिर्फ़ सिर्फ़ ‘समुराई योद्धा’ ही कर सकते थे. ये शब्द ‘समुरई योद्धाओं’ पर इसलिए भी फ़िट बैठती है क्योंकि युद्ध में हारने वाला योद्धा इस पारम्परिक रीति-रिवाज के तहत अपनी शहादत देता था.
जापान के समुराई योद्धा रणक्षेत्र में शहीद होना पसंद करते थे, लेकिन हारना नहीं. असल में ‘समुराई’ वो योद्धा थे जिनके लिए ‘जीत’ और ‘सम्मान’ ही सब कुछ होता था. ये अपमानित होने से बेहतर ‘आत्महत्या’ करके ख़ुद को ‘शहीद’ मानना बेहतर समझते थे, जिसे वो ‘हाराकिरी’ कहते थे. जापान में आज भी ‘हाराकिरी’ को सम्मान की नज़रों से देखा जाता है. लेकिन दुनिया के अन्य देशों में इसे ‘आत्महत्या’ कहा जाता है.
18वीं सदी में अगर कोई ‘समुरई योद्धा’ जंग हार जाता था तो उसे क़ैद नहीं होती थी, बल्कि उसे सम्मानजनक रूप से मरने का मौका दिया जाता था. ऐसी स्थिति में सेप्पुकू (Seppukku) नाम की रस्म के तहत उन्हे अपने हाथों से अपनी अंतड़ियों को चीरकर शरीर से अलग कर देना होता था. ताकि वो सम्मान के साथ मौत को गले लगा सके.
दरअसल, इंसान के शरीर में ‘हारा नाभि’ के ठीक नीचे एक स्थान है जहां आत्मा का निवास माना जाता है. भारतीय ग्रंथों में इसे ‘ब्रह्मरंध्र’ कहा गया है. ‘समुराई योद्धा’ पराजय से पहले वहां खंजर मार कर ख़ुद को शहीद कर लेते हैं. जापान में ऐसे योद्धा जो ‘हाराकिरी’ को अपनाते थे, हार के बावजूद उन्हें काफ़ी सम्मान दिया जाता था और विधिपूर्वक उनका अंतिम संस्कार भी होता था.
जापान में एडो पीरियड (1603-1867) के दौरान समुराई (बुशी) की शुरुआत हुई थी. इसे देश में सबसे ऊंचे तबके में गिना जाता था. समुराई योद्धाओं ने धनुष और तीर, भाले और बंदूकें जैसे कई हथियारों का इस्तेमाल किया, लेकिन उनका मुख्य हथियार और प्रतीक तलवार थी.