Maintenance of Internal Security Act (MISA): सन 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) द्वारा देश में लगाया गया आपातकाल (Emergency) भारतीय इतिहास का काला दौर था. आपातकाल कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल में से एक थी जिसका दंश पार्टी आजतक झेल रही है. इस दौरान विपक्ष ने इंदिरा गांधी सरकार के इस फ़ैसले का ज़ोरदार विरोध किया था. लेकिन इंदिरा गांधी ने तब विपक्ष के कई बड़े नेताओं को जेल भेज दिया था. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडिस, लालू यादव, शरद यादव समेत कई राजनेता शामिल थे.

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आख़िर क्या था MISA क़ानून?

आपातकाल (Emergency) के दौरान विरोधियों को जेल भेजने में मीसा क़ानून ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसी क़ानून के तहत इंदिरा गांधी सरकार ने विपक्ष के तमाम नेताओं को जेल भेजा था. MISA यानि Maintenance of Internal Security Act एक ऐसा क़ानून था, जिसने इंदिरा गांधी के आपातकाल के फ़ैसले का विरोध करने वालों की नाक में दम कर रखा था. इस क़ानून को साल 1971 में लागू किया गया था, लेकिन इसका इस्तेमाल आपातकाल के दौरान आवाज़ उठाने वाले कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया था.

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संजय गांधी क्यों तैयार की थी लिस्ट

कहा जाता है कि आपातकाल लागू होते ही इंदिरा गांधी सरकार ने ऐसे लोगों की लिस्ट तैयार की थी जिनकी गिरफ़्तारी सबसे पहले होनी थी. इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी को ये लिस्ट तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. इस लिस्ट में पहला नाम लोकनायक नाम जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई का था. इस दौरान मीसा क़ानून के तहत जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई को सबसे पहले जेल भेजा गया था. ये दोनों दिग्गज नेता 21 महीने तक तक जेल में रहे थे.

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मीसा क़ानून के तहत 1 लाख गिरफ़्तारियां

आपातकाल के दौरान मीसा क़ानून में कई संशोधन भी किए गए थे. इस क़ानून के तहत तब 1 लाख से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया गया था. इस दौरान देशभर की जेलें मीसाबंदियों की वजह से भर गई थीं. कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों को ख़त्म कर मीसा क़ानून के ज़रिए सुरक्षा के नाम पर हज़ारों लोगों को प्रताड़ित किया गया था. इसी क़ानून के तहत विरोधियों से उनकी संपत्ति भी छीनी गई थी.

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कहा जाता है कि आपातकाल (Emergency) के दौरान ‘मीसा क़ानून’ में बदलाव करके इसे इतना कठोर बना दिया गया था कि मीसा बंदियों की कोर्ट-कचहरी में कोई सुनवाई तक नहीं होती थी. कई बंदी तो ऐसे भी थे जो पूरे 21 महीने के आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहे. इन्हीं मीसा बंदियों में से एक लालू प्रसाद यादव भी थे.

इसी क़ानून की वजह से पड़ा लालू की बेटी का नाम

आपातकाल (Emergency) के दौरान बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी कई महीनों तक जेल में रहे थे. इस दौरान साल 1976 में उनकी सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती का जन्म हुआ था. लालू यादव ने इसी क़ानून की वजह से अपनी बेटी का नाम MISA रखा था. मीसा भारती आज आरजेडी की ओर से राज्यसभा सदस्य हैं. जबकि लालू प्रसाद यादव आज कांग्रेस के बेहद क़रीबी माने जाते हैं.

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आपातकाल (Emergency) के दौरान मीसा बंदियों ने जेल में भले ही कई यातनाएं झेलीं, लेकिन इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल करने में इन्हीं क़ैदियों ने अहम भूमिका निभाई थी. अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडिस, लालू यादव, शरद यादव जैसे नेताओं ने जेल से बाहर आते ही इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया.

आख़िरकार मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ और साल 1977 में देश में पहली बार ग़ैर-कांग्रेसी सरकार बनी. इस दौरान सबसे हैरानी की बात ये थी कि इंदिरा गांधी को अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव में करारी हार झेलनी पड़ी थी. इस दौरान कांग्रेस केवल 153 सीटों पर सिमट गई थी. जनता पार्टी सत्ता में आते ही कांग्रेस के इस कुख़्यात क़ानून को हमेशा-हमेशा के लिए हटा दिया.

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मीसा बंदियों को मिलती है पेंशन

मोरारजी देसाई की अगुवाई वाली जनता पार्टी की सरकार के दौरान देश के कई ग़ैर-कांग्रेसी राज्यों ने मीसा बंदियों को पेंशन देने का काम भी किया था. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकारों भी मीसा बंदियों को 15 हज़ार रुपये की पेंशन दे चुकी हैं. साल 2014 में राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने 800 मीसा बंदियों को 12 हज़ार रुपये प्रति माह की पेंशन देने का फ़ैसला किया था.

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