1947 में जब भारत का विभाजन हुआ, तो सिर्फ़ देश नहीं बंटे बल्कि बरसों से साथ रहने वाले लोग भी अलग हो गए. जो पड़ोसी कभी दुख-दर्द का साथी था, वो अचानक दुश्मन बन गया. सड़कों पर मौत का नंगा नाच आम बात हो गई. चौराहे ख़ून, लाशों, चीखों और दर्द से जाम हो गए. लोगों का आज तबाह हो रहा था और नेता देश का भविष्य तय कर रहे थे. 

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मगर इस बीच कुछ ऐसे नेता भी थे, जो इंसानों की मर चुकी इंसानियत को झकझोर कर ज़िंदा करने की कोशिश में लगे थे. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) भी उनमें से एक थे. हालांकि, एक दिन ऐसा भी आया था, जब नेहरू अपना आपा खो बैठे थे. वो दंगाइयों की लूट-पाट और ख़ूनी ख़ेल से इस कदर ग़ुस्सा गए कि उन्होंने अपनी पिस्टल तक निकाल ली थी. आज हम आपको उसी दिन का क़िस्सा बताने जा रहे हैं, जब जब दंगाइयों से लड़ने के लिए नेहरू अपनी पिस्टल लेकर बाहर आ गए थे. 

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दिल्ली के कनॉट प्लेस पर चल रही थी लूटपाट

एक दिन जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) को ख़बर मिली कि दिल्ली के कनॉट प्लेस में मुसलमानों की दुकानें लूटी जा रही हैं. नेहरू को जैसी ही ये बात पता चली वो घटना स्थल पर पहुंच गए. मगर उन्हें ये देख कर ग़ुस्सा आया कि पुलिस वहां तमाशबीन बनी खड़ी है. 

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जब नेहरू ने देखा कि ये पुलिसवाले दंगाइयों को रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहे, तो उन्होंने पुलिसवाले का डंडा छीन लिया ख़ुद उसे लेकर दंगाइयों को दौड़ाने लगे. मगर ये कोई एक बार की बात नहीं थी. नेहरू के ये तेवर कई बार लोगों के सामने आए थे.

दंगाइयों को गोली से उड़ा दूंगा

कई देशों में भारत के राजदूत रहे बदरुद्दीन तैयबजी ने एक घटना का अपनी किताब ‘Memoirs of an Egotist’ में ज़िक्र किया है. उन्होंने बताया कि एक रात जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के पास वो पहुंचे. उन्होंने बताया कि शरणार्थी शिविर पहुंचने की कोशिश कर रहे मुसलमानों को मिंटो ब्रिज के आस-पास मारा जा रहा है. 

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नेहरू उनकी बात को सुन रहे थे, और तब ही वो अचानक से गु़स्सा गए. वो वहां से उठकर सीढ़ियां चढ़ते हुए ऊपर चले गए. बदरुद्दीन को कुछ समझ नहीं आया कि नेहरू एकाएक उठकर क्यों चले गए. मगर थोड़ी ही देर में उन्हें जो मालूम पड़ा, वो चौंकाने वाला था.

दरअसर, नेहरू जब वापस आए तो खाली हाथ नहीं थे. उनके हाथ में अपने पिता मोतीलाल नेहरू की पुरानी पिस्टल थी, जिस पर धूल देख कर मालूम पड़ रहा था कि ये सालों से नहीं चली. बदरुद्दीन ने उनसे पूछा कि ये क्या कर रहे हैं आप? तो नेहरू ने कहा कि वो खराब सा कुर्ता पहनकर मिंटो ब्रिज चलेंगे. दंगाइयों को लगेगा कि वो एक मुसलमान हैं, जो भागने की कोशिश कर रहा है. और जब वो मारने आएंगे, तो उन्हें गोली से उड़ा दूंगा. 

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एक प्रधानमंत्री के मुंह से इस तरह की बात सुनना वाक़ई चौंकाने वाला था. हालांकि, बदरुद्दीन ने बड़ी मुश्किल से समझाया कि इस तरह की घटनाओं से निपटने के बहुत से दूसरे तरीके हैं, वो ये सब न करें.

बता दें, नेहरू के इस तरह के तेवरों के चलते ही माउंटबेटन को उनकी सुरक्षा का डर लगा रहता था. यही वजह है कि उन्होंने नेहरू की निगरानी के लिए कुछ सैनिक भी लगा रखे थे.