क़ुतुब मीनार (Qutub Minar) भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में से एक है. इसे क़ुतुब उद-दीन ऐबक, इल्तुतमिश, फ़िरोज़ शाह तुगलक, शेर शाह सूरी और सिकंदर लोदी ने अपने-अपने शासनकाल में बनवाया था. दिल्ली के सेठ सराय (महरौली) में स्थित क़ुतुब मीनार यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. भारत समेत दुनियाभर से हर साल क़रीब 30 से 40 लाख पर्यटक क़ुतुब मीनार देखने आते हैं.

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आज पर्यटकों को केवल बाहर से ही क़ुतुब मीनार (Qutub Minar) का दीदार करना पड़ता है, मीनार के अंदर जाने की इजाज़त नहीं है. लेकिन पहले ऐसा नहीं था. क़रीब 42 साल पहले पर्यटकों को मुख्य मीनार के अंदर जाने की परमिशन थी, लेकिन एक दर्दनाक हादसे ने क़ुतुब मीनार के अंदर जाने वाले दरवाज़े को हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिये.

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Qutub Minar Tragedy

बात 4 दिसंबर, 1981 की है. शुक्रवार के दिन क़ुतुब मीनार पर्यटकों से खचाखच भरा था. मीनार के दरवाज़े पर अंदर जाने की कोशिश में भीड़ लगी हुई थी. सुबह के क़रीब 11.30 बजे अचानक मीनार के अंदर की लाइटें बंद हो गईं. इस दौरान 500 से अधिक लोग मीनार के अंदर थे. हालांकि, मीनार में हवा और रोशनी के लिए नियमित अंतराल पर बड़े छिद्र बने हुए थे, लेकिन डर की वजह से पर्यटक सुरक्षित जगह की तलाश में खिड़कियों के पास जाकर खड़े हो गए, जिसकी वजह से मीनार के अंदर आने वाली रौशनी बंद हो गयी और अंदर अंधेरा छा गया.

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इसी बीच किसी ने क़ुतुब मीनार गिरने की अफ़वाह फ़ैला दी, जिससे वहां अफ़रा-तफ़री मच गई. मीनार के मुख्य गेट पर तब स्टील के भारी दरवाज़े हुआ करते थे, जो अंदर की ओर खुलते थे. लेकिन जैसे ही अंदर लोगों की संख्या बढ़ी चौकीदार ने दरवाज़े बंद कर दिये. जब सैकड़ों लोगों ने एक साथ बाहर निकलने की कोशिश की, तो दरवाज़े चौखट से चिपक गये. ऐसे में बचावकर्मी गेट के पीछे लोगों की भारी भीड़ के कारण अंदर प्रवेश ही नहीं कर सके. बाहर निकलने की कोशिश में भगदड़ मची और कुछ ही मिनटों में दर्जनों लोग अंधेरे में मृत और घायल पड़े थे.

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सौभाग्य से मरम्मत करने के लिए क़ुतुब मीनार के पीछे एक मचान बनाया गया था. इसके बाद बचावकर्मी इसी मचान से अंदर घुसे और 1 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद सैकड़ों लोगों की जान बचाई और कई शवों को बाहर निकाला. लेकिन जब तक पुलिस और फ़ायर ब्रिगेड पहुंची, तब तक मृतकों को कुतुब लॉन में रख दिया गया था और घायलों को एम्स और सफ़दरजंग अस्पताल ले जाया गया. दोपहर 3.30 बजे तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने लोकसभा को सूचित किया कि क़ुतुब मीनार हादसे में 45 लोगों की मौत हुई है और 21 लोग घायल हो हुए हैं.

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किस वजह से मची थी भगदड़?

इस घटना के दौरान जीवित बचे लोगों का कहना था कि, कुछ उपद्रवी लड़कों के एक समूह ने अंधेरे में महिला पर्यटकों के साथ दुर्व्यवहार किया था और जब उन महिलाओं ने नीचे की ओर भागने की कोशिश की तो वहां भगदड़ मच गई. हालांकि, दिल्ली पुलिस ने छेड़छाड़ की शिकायत से इंकार किया था, लेकिन उस वक़्त की न्यूज़ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि न्यूज़ीलैंड के दो पर्यटकों ‘जैकी और मैरी’ ने आरोप लगाया था कि उनके साथ छेड़छाड़ की गई थी. इस मामले की जांच में ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश जगदीश चंद्र की जांच रिपोर्ट में भी विदेशी महिला पर्यटक के उत्पीड़न का जिक्र किया गया था.

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इस मामले में दिल्ली नगर निगम ने कहा था कि 4 दिसंबर, 1981 की सुबह 10.50 बजे से दोपहर 12.30 बजे के बीच मीनार में कोई बिजली कटौती नहीं हुई थी. सुबह 9.15 बजे एक ट्रक बिजली के खंभे से टकरा गया था, जिससे बिजली गुल हो गई थी, सुबह 10.50 बजे आपूर्ति बहाल कर दी गई. लेकिन चंद्रा आयोग की रिपोर्ट में बिजली की विफलता को त्रासदी के प्रमुख कारणों में से एक माना गया और इसके लिए दिल्ली विद्युत आपूर्ति उपक्रम (DESU) को ज़िम्मेदार ठहराया गया. इसके अलावा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को भी ख़राब व्यवस्था के लिए समान रूप से दोषी ठहराया गया.

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आख़िर जांच रिपोर्ट में क्या नतीजा निकला

जांच आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि भगदड़ तब मची थी जब एक लड़की, जो की न्यूज़ीलैंड के पर्यटकों में से नहीं थी. वो मीनार के 8वें वेंटिलेटर के पास फिसल गई थी. इस दौरान कुछ लड़कों ने झूठा अलार्म बजा दिया कि ‘कुतुब मीनार गिर रहा है… नीचे जाओ, नीचे जाओ”.

‘क़ुतुब मीनार’ अफ़गानिस्तान में स्थित ‘जाम की मीनार’ से प्रेरित है.