सीढ़ियां कई तरह की होती हैं. जैसे- घुमावदार, खड़ी, खुद से चलने वाली. लेकिन सब का एक ही काम होता है, ऊपर से नीचे जाने का और नीचे से ऊपर आने का. लेकिन कुछ दिमाग वालों ने ऐसी सीढ़ियां बनाई हैं, जो देखने में तो बड़ी अच्छी लगती हैं, मगर हैं किसी काम की नहीं.

इन सीढ़ियों पर किसी शराबी का चलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकीन है.

ज़रा धीरे चलना नाज़ुक है.

बचने का कोई रास्ता ही नहीं, जिधर से जाओ सीढ़ियां मिलेंगी ही.

क्या गंदा मज़ाक है ये!

मंज़िल से बस चार कदम का फ़ासला.

आगे से रास्ता बंद है.

एस्कलेटर लगाने का बजट कम पड़ गया होगा.

ये अंतिम सीढ़ी की क्या ज़रूरत थी.

इन सीढ़ियों ने कॉलेज में काफ़ी क्लास छुड़वाए हैं.

सस्ती इंजीनियरिंग का नमूना.

देखने के लिए दो रास्ते हैं, मगर काम सिर्फ़ एक ही आ सकता है.

कभी ऊपर कभी नीचे, ये क्या लगा रखा है!?

कुछ कदम की मेहनत तो करनी ही पड़ेगी.

ये क्यों बनाया? न सीढ़ी की ज़रूरत थी, न ही पुल की.

ये रास्ता कहीं से कहीं को नहीं जाता.

ये पूरे कॉलेज का आधा हिस्सा है.

थोड़ा एडजस्ट तो करना ही पड़ेगा.

साढ़े सात मंज़िल पर कोई रहता है?

क्या है ये, क्यों है ये?

यकीन मानिए ये गेट नहीं है.