Air Purifier तो ख़ूब ही लगात हैं, Pollution डायन खाए जात है.
सर में दर्द और सीने में धुआं लेकर आर्टिकल लिख रहा ये इंसान अब घर में भी मास्क लगाने को मजबूर है. बगल में गाना बज रहा है- अभी ज़िंदा हूं तो जी लेने दो…
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हवा का हाल इतना बुरा है कि चारों तरफ़ धुआं ही धुआं है. सारे मीटर-वीटर आख़िरी सीमा रेखा तक पहुंच गए हैं. दिल्ली की भरी दोपहरी में घनी धुंध के बीच मैं साफ़ हवा के लिए बलिदान देने को तैयार हूं. चाहे मुझे तुम सुलभ शौचालय के पास बैठा दो, मगर वो गंध भी दिल्ली वाली स्मॉग से लाख गुना बेहतर होगी.
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इसी गरज से मैंने कुछ और दिल्ली वासियों से पूछ लिया कि अभी इस स्मॉग में सांस लेने के बजाए वो किस चीज़ को सूंधना ज़्यादा पसंद करेंगे.
1. लाओ मुझे मेरा मोज़ा दो.
जी हां, ये गंदे मोज़े किसी की मिर्गी ठीक करने के काम में आते हैं. मगर मुझे ये भी मंज़ूर हैं. इनको सूंघने से कम से कम मेरी आंखें तो नहीं जलेंगी. स्मॉग से बेहतर है गंदे मोज़ों की गंध में सांस लेना. कहां है मेरा 1 सप्ताह पुराना मोज़ा?
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2. Chloroform सूंघना मंज़ूर है मगर ये मुआ स्मॉग नहीं
मुझे Chlorofoam सूंघकर बेहोश होना मंज़ूर है, ये दिल्ली का प्रदूषण नहीं! काहे? काहे कि होश में रहकर धुआं में रहने से तो अच्छा है न.
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3. किसी के पसीने से आती हुई ‘ज़हरीली’ बदबू भी झेल जायंगे
अब पसीने वाली ‘ख़तरनाक’ गंध का क्या है, नाक में असर करता है, फेफड़ों में नहीं! सह लेंगे थोड़ा सा.
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4. मूली के पराठे खाने के बाद होने वाले ‘Bum-विस्फोट’ में भी सांस ले लेंगे
अब उन ‘हवाओं’ में बस सुगंध का ही तो आभाव रहता है. जबकि आजकल दिल्ली ही हवाओं में धुआं, धूल और ज़हरीली गैसों की भरमार है. ऐसे में मूली के पराठे खाने के बाद निकलने वाले फ़ार्ट में भी सांस लेना बेहतर है, बाहर जा के सांस लेने से.
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5. उल्टी की गंध हंसी-ख़ुशी सह लूंगी मगर दिल्ली के Pollution की नहीं
उल्टी हो जाए तो साफ़ करने में नानी याद आ जाती है. ओह्ह, हाऊ डिसगस्टिंग! मगर मैं दिल्ली के Pollution में सांस लेने से अच्छा उल्टी की गंध में सांस लेना चुनूंगी.
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6. जय हो हफ़्ते भर की बासी दाल
खाना ख़राब हो जाए तो नाक बंद करके फेंकना पड़ता है. लेकिन अभी की हवा में सांस लेने से अच्छा है मैं उस सात दिन की बासी दाल में अपनी नाक दे के रखूं.
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7. सुलभ शौचालय से आने वाली गंध भी है मंज़ूर
ट्रेन में शौचालय के पास वाली सीट का खौफ़ हो या पब्लिक टॉयलेट में जाने का डर, मैं सबको पार कर जाऊंगा. क्यों? क्योंकि दिल्ली के प्रदूषण में सांस लेने से बेहतर है शौचालय के दुर्गंध में सांस लेना.
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आइये साथ में गम बांटते हैं.