वो भी क्या सुहाने दिन थे! जहां ख़बर मिलती थी कि फलाने ATM से पैसे निकल रहे हैं, लोग भागे-भागे जाते थे, इससे समाज ने एक दिशा में दौड़ना सीखा. अधिकांश लोग एक बार में एक ही ATM से पैसे निकालते थे, इससे लोगों ने ईमानदारी सीखी. निश्चित राशी निकालने की छूट थी, इससे लोगों ने संयम सीखा. ग़रीब इंसान अमीरों के पैसे अपने अकाउंट में छिपा रहे थे, इससे सुख-दुख में साथ खड़ा होना सीखा. नोटबंदी के ऐसे कई फ़ायदे में पूरे दिन चौराहे पर खड़े हो कर गिना सकता हूं, लेकिन कुछ बेवकुफ़ इस फ़ैसले के आर्थिक मायने को तलाशते हैं. भारत एक वेल्फ़ेयर स्टेट है, यहां सरकार समाज की भलाई के लिए फ़ैसले लेती है और सभी भलाई का काम पैसों से नहीं जुड़े होते. 

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नोटबंदी ने इकोनॉमिक्स के फ्रंट पर भी फ़ायदा पुहंचाया है, लेकिन ये अर्थव्यवस्था की बाते हैं, आप हम समझ नहीं पाएंगे. ज़्यादा से ज़्याद आप ये समझ सकते हैं कि नए नोट के डिज़ाइन बड़े कूल से हैं, छोटे-छोटे क्यूट से लगते हैं, गांधी जी इन नोटों में पहले से ज़्यादा खुश दिखते हैं. 

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देश के लोग हर दिन एक थ्रिल के साथ उठते थे. पता नहीं आज सरकार कितने पैसे निकालने-जमा करने की अनुमती देगी. पहली बार लोग शादी के कार्ड दिखा कर बैंक से पैसे निकाल पा रहे था, ऐसा कभी नहीं हुआ था. बिग बज़ार वाले पैसे बांट रहे थे. सरकार नया नोट लॉंच कर चुकी थी, लेकिन वो ATM के केलिबर के साइज़ की नहीं थी. सरकार अपने हर फ़ैसले से जनता को चौंका रही थी. 

सब ठीक-ठाक ही था, बस सरकार की एक लॉजिक मुझे समझ नहीं आई. उनका मानना था कि बड़े नोटों से भ्रष्टाचार ज़्यादा होता है. मतलब भ्रष्टाचारियों के पास पैसे रखने की जगह नहीं होती! क्या सबके पास घूस के पैसों को रखने के लिए लिमिटेड जगह होती है? खैर, जब बड़े नोट से ज़्यादा भ्रष्टाचार होता है तो सरकार ने तो बंद किए नोट से भी बड़ा नोट तैयार कर दिया. अब ये भी ख़बर आ रही है कि उसे भी बंद करने वाले हैं, धीरे-धीरे वो मार्केट से ख़त्म भी होते जा रहे है. 

और जैसा की प्रधानमंत्री ने वादा किया था कि नोटबंदी से आतंकवाद, नक्सलवाद, कालाधन आदी ख़त्म हो जाएगा तो वो ख़त्म हो ही चुका है. अगर आपको ऐसा नहीं लग रहा तो आपको प्रधानमंत्री की बातों पर भरोसा नहीं है और जिसे प्रधानमंत्री पर भरोसा नहीं उसे देश पर भरोसा नहीं और जिसे देश पर भरोसा नहीं… उसे पता है न कहां भेजा जाता है! नहीं पता है, कहां पता है.