मेरा कहना ये नहीं है कि सरकार ई-सिगरेट से बैन हटा दे. मेरा बस ये सवाल है कि ई-सिगरेट ही क्यों? सरकार ने अपने सीधे से मासूम तर्क में कहा कि ई-सिगरेट युवाओं के लिए ख़तरनाक होता है, इसके विज्ञापन युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, ये देखने में कूल लगता है और निर्मताओं द्वारा ऐसे पेश किया जाता है जैसे इससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर नहीं पड़ता.
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मतलब अगर किसी युवा(18+) को ई-सिगरेट की लत होगी तो डॉक्टर साहेब कहेंगे, ‘ये क्या हानिकारक वस्तु का सेवन कर रहे हो, इससे तुम्हें कैंसर हो सकता है. ये लो मिंट फ़्लेवर सिगरेट छल्ले बनाओ और कूल दिखने की कोशिश मत करना, वरना हानिकारक हो जाएगा.’
जिस लॉजिक से सरकार ने ई-सिगरेट को बैन किया, वही लॉजिक सिगरेट पर क्यों नहीं लगाती! दावे के साथ कह सकता हूं अधिकांश युवा सिगरेट की शुरुआत कूल देखने के लिए ही करते हैं, बाद में ऐसी लत लगती है कि सुबह की प्रेशर भी बिना सिगरेट के नहीं बनता. शोध के अनुसार लंबे समय तक ई-सिगरेट पर स्वास्थ का क्या असर पड़ता इसकी ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है. सिगरेट के बारे में सबको पक्के से पता है कि इससे मौत हो जानी है, मुकेश हराने की हुई थी(सॉरी उसकी तो तंबाकू से हुई थी).
सिगरेट की तरह ई-सिगरेट के विज्ञापन पर भी रोक लगाई जा सकती थी. उसके सेवन के ऊपर भी उम्र सीमा तय कर दी जा सकती थी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि जब बैन वाली मीटिंग चल रही होगी तो तब ये बात ये ज़रूर निकली होगी कि सिगरेट के ऊपर भी बैन लगा देना चाहिए. फिर किसी बड़े अधिकारी ने कहा होगा कि इस विषय पर हम ‘सुट्टा ब्रेक’ के बाद चर्चा करेंगे!