Change The Names Of Mughal Rulers: नेताओं की पॉलिटिक्स (Politics) परिवर्तन प्रेमी होती है. इसलिए वो कभी पार्टी बदलते हैं तो कभी जनता. देश बदलने जैसे अव्यवहारिक काम वो चुनावी पत्रों में लिख छोड़ते हैं. ताकि कभी हड़प्पा की तरह हमारी सभ्यता की भी ख़ुदाई हो तो मालूम पड़े कि हम कितने बड़े-बड़े काम करने वाले थे, मगर वो पेंडिंग रह गए.

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मगर नेताओं से जितना हो सकता है, वो कर ही देते. यही वजह है कि जो ट्रेनें कभी ‘इलाहाबाद’ में रूकती थीं, वो अब संगम में डुबकी लगा कर ‘प्रयागराज’ को जाती हैं. ‘सेक्युलर’ को ‘सटकेला’ सब मान ही चुके हैं. ‘मुगल गार्डन’ भी ताज़ा-ताज़ा ‘अमृत उद्यान’ हो गया है.

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अब वो दिन दूर नहीं, जब ‘मुगलिया सल्तनत’ का नाम बदलकर ‘पगलिया सल्तनत’ कर दिया जाएगा. बस बचकाना सवाल मत पूछिएगा कि इससे देश को क्या फ़ायदा होगा. क्योंकि, दुश्मनी फ़ायदा-नुक़सान देख कर नहीं होती और जनता का नेता से बड़ा दुश्मन तो कोई दूसरा होता भी नहीं. ऐसा हम नहीं कहते, बल्क़ि बॉलीवुडिया रिसर्च में ये साबित हुआ है.

बस तकलीफ़ इत्ती है कि ये मुगलिया नाम बदलते-बदलते तो बहुत टाइम लग रहा है. ऐसे में हमने सोचा अगर अपन डायरेक्ट ही मुगल शासकों के नाम बदल डालें तो कैसा रहेगा?

तो बस कुछ प्रमुख मुगल शासकों के नाम हमने ‘नाम बदल दो, निज़ाम बदल दो’ मशीन में डाले हैं.

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Change The Names Of Mughal Rulers

मसलन, ‘बाबर’ का नाम बदलना हो तो ‘बबलू’ से बेहतर कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है. बबलू नाम हर गली-मोहल्ले में नचियाता घूमता है. वैसे ही जैसे कभी बाबर फ़रगना से नाचता भारत आया था. साथ ही, अक्सर बबलू नाम के लौंडे टिपियाए भी बहुत जाते हैं, बस ध्यान रहे कि वो बबलू मिर्ज़ापुर वाला न निकले.

वहीं, ‘हुमांयू’ का नाम ‘हनुमान प्रसाद’ कर देंगे तो बाबर की आत्मा भी कब्र में कंपकंपा उठेगी. पता तो चले उसको कि हमने सिर्फ़ राम मंदिर नहीं बनाया, बल्क़ि उसके लौंडे का नामकरण भी हनुमान जी पर कर दिया है.

‘अकबर’ मियां का भी नाम बदल कर ‘आशाराम’ कर दो. अभी वाले जेल में हैं, इससे दिलासा रहेगा कि मुगल काल में सज़ा नहीं दे पाए तो क्या, लो अब पूरा होगा बदला.

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जहांगीर’ को भी छोड़ने का नहीं. बहुत शराब पीता था ससुरा. इसको तो ‘जगजीवन’ नाम देकर बिहार भेजेंगे. पी नकली शराब और कटवा ऊपर का टिकट. नीतीश बाबू के राज में तो इसे मुआवज़ा भी नहीं मिलेगा.

‘शाहजहां’ की रंगबाज़ी भी निकालनी है. इसके लिए ‘शंभूनाथ’ नाम एकदम परफ़ेक्ट रहेगा. तेजोमहल में शिव मंदिर की जगह ताजमहल बनाकर चौड़िया रहा था. अब पता चलेगा.

अब सबको लपेटे में ले ही लिया तो ‘औरंगज़ेब’ को भी कहां छोड़ेंगे. ऐसा करते हैं इसका नाम ‘बजरंग देव’ कर देते हैं. काहे कि जैसे बजरंग बली अमर हैं, वैसे ही औरंगज़ेब का टॉपिक भी हमारे देश में कभी ख़त्म नहीं होने वाला.

तो लो भइया, मुगलिया लेथन जितनी समेट सकते थे, उतनी समेट दी. बाकी आप लोगों के मन में भी कुछ नाम हों तो प्राण घोटू पॉलिटिक्स के हित में कमेंट बॉक्स को भर दें.

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