देश की गायों में नाराज़गी है. आए दिन अपने बारे में अनाप-शनाप बातें सुनकर गायों का ग़ुस्सा भड़क उठा है. इत्ता माइंड उनका ख़राब हो गया है कि सड़कों पर गों-गों कर लोगों को गरिया रही हैं. 

दरअसल, हुआ यूं कि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फ़ैल गया. अब माल फ़्री का था, तो हम भारतीय कहां पीछे रहने वाले थे. हम भी अपने हिस्से का ले आए. लेकिन इस चक्कर में बेचारी गाय फंस गईं. कोई ससुरा कह दीहिस कि गोमूत्र और गोबर से कोरोना का इलाज होत है. पता चला कि बड़े-बड़े नेता भी मजे से गोमूत्र पी रहें हैं और गोबर चुपड़े घूम रहे. बाकायदा गोमूत्र इवेंट ऑर्गनाइज़ हो रहे हैं. 

बस फिर क्या? कालाबाज़ारियों तक ख़बर पहुंच गई. अगले ही दिन गोमूत्र और गोबर के दाम आसमान पर पहुंच गए. जिस गोबर पर लोग रोज़ाना केक काटते निकलते थे, उसकी बाज़ार में शॉर्टेज हो गई. गोमूत्र और गोबर 500 रुपये में बिकने लगा. 

जब गायों को ये पता चला तो बवाल कट गया. मामला इत्ता बढ़ गया कि ‘गो गरिमा अधिकार संरक्षण समिति’तक बात पहुंच गई. डिसाइड हुआ कि इस समस्या से निपटने के लिए एक मीटिंग रखी जाए. सभी गायों को मीटिंग में शामिल होने का आदेश हुआ. 

वरिष्ठ गोमाता ने मीटिंग शुरू की. देखिये आज हम गायों पर एक बड़ा संकट आन पड़ा है. कोई कोरोना नाम का वायरस है, जिसने इन इंसानों की ऐसी-तैसी करी हुई है. ऐसे वक़्त में भी ये इंसान अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहे. यही वजह है कि हमने आप सभी गोमाताओं को ‘आधुनिक भारत में गायों की दशा और भविष्य की चुनौतियों’ पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया है. 

तो भई देखिये हमारे गोमूत्र और गोबर को ये इंसान 500 रुपये में बेच रहे हैं. लेकिन हमें इसका क्या फ़ायदा हो रहा है? हमें तो वही सूखी घास नसीब है. इत्ता जोर लगा के गोबर करते. दाम भी बढ़ गए लेकिन हमारी मजदूरी वही की वही. खुलेआम शोषण हो रहा है. ऐसे में अब हमारे पास आख़िरी ‘चारा’ आंदोलन का ही बचता है. आप सबकी क्या राय है? 

सबसे पहले राय देने ‘युवा गोशाला क्रांतिकारी मोर्चे’ की अध्यक्ष सामने आईं. देखिये हमारे पास एक ही रास्ता है. और वो है सीधी लड़ाई का. हम इन इंसानों का ज़ुल्म और नहीं सहेंगे. अगर ये हमारा गोबर चाहते हैं तो हम देंगे लेकिन इतना कि पूरी सड़कें गोबर से लबालब भर जाएं. और फिर उसी गोबर पर लिख देंगे क्रांति. 

बताओ हमारे नाम पर ये लोग टैक्स की वसूली करते. कहते हैं हमें पक्का मकान बनाकर देंगे. लेकिन होता क्या है. मकान तो मिलता नहीं, मारे अलग जाते. ऊपर से अब हमारे मूत्र और गोबर से भी कमाई कर रहे. लेकिन आज भी हमारे हाथ कुछ नहीं लग रहा. ऐसे में सीधी लड़ाई ही एकमात्र रास्ता है. दंगाईयों की फ़ेवरेट शिकार रोडवेज बस पर हमें भी अपना पिछवाड़ा आजमाना चाहिए. दे गोबर, दे गोबर चक्काजाम कर देंगे. 

इतने में ही ‘राष्ट्रवादी गोमाता मंडल’ की प्रमुख ने एतराज़ जता दिया. कहने लगी हम इस वामपंथी सोच से कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे. लड़ाई तो जीतेंगे नहीं, ऊपर से हम अपना एकलौता अधिकार भी गंवा बैठेंगे. अभी कम से कम माता तो कहलाते हैं. मगर ये वामपंथी तो धर्म को अफ़ीम मानते. हमारे मूत्र को देसी ठर्रा और गोबर को झंडू बाम का नशा बताकर बैन करा दें तो? 

हमें तो चाहिए कि हम अपनी गोमूत्र और गोबर की क्वालिटी और उत्पादन पर ध्यान दें. दरअसल, हो ये रहा है कि कुछ विदेशी गाय हमारे बीच घुस आई हैं. उनकी वजह से गोबर और गोमूत्र ज़्यादा हो रहा है. ऐसे में हमें क्रोनोलॉजी फ़ॉलो करनी पड़ेगी. सबसे पहले तो हम विदेशी गायों की पहचान करेंगे. फिर हम उनको यहां से भगाएंगे. फिर हम गोबर और गोमूत्र का उत्पादन कंट्रोल करेंगे. फिर कहीं जाकर हम सही मायने में अपना अधिकार हासिल कर पाएंगे. 

दोनों की बातें सुनने के बाद ‘सेक्युलर काउ एसोसिएशन’ की प्रेसिडेंड नाराज़ हो गईं. बोलीं मुझे तो लगता है तुम लोग गाय नहीं, बैल हो. ये मूर्खतापूर्ण बहस है. अव्वल तो ये कि हमने न खुद का गोबर कभी चखा है न खुद का मूत्र कभी पिया. तो ये दावा कि इससे बीमारी ठीक होती है, हम नहीं कर सकते. दूसरी बात, ये कोरोना इत्ता जालिम है कि इस मुए ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा. आज हमारी हालत मुर्गियों से कम बदत्तर नहीं है. 

फिर इन इंसानों की बातों का क्या? ये ससुरे आज कह रहें कि गोमूत्र से कोरोना का इलाज होता है. और यही कल कह रहे थे कि हमारे दूध में सोना होता है. हम कहे हमारे दूध में सोने की मिलावट? हे राम! ये नहीं सहन होता. हमने कहा भइया अगर हमारे दूध में सोना होता तो काहे हम बिना चारे के अपनी जान गंवा रहे होते? अब तक तो हमने प्रधानमंत्री की स्वर्ण मुद्रीकरण योजना का लाभ उठा लिया होता. 

अभी कल की ही बात है. एक इंसान मेरे पीछे खड़े होकर जबरदस्ती गोबर करने को कहने लगा. बताओ बेशर्मी की भी हद होती है? तुम लोगों को क्या बताई बहिन बड़ा अजीब लग रहा था. हमाए तो उतरी ही नहीं. मन हुआ कह देई कि काहे हमार गोबर चाही, जब तुम लोगन का दिमाग मा ही इत्ता भरा.