एक सप्ताह पहले चेन्नई के KK Nagar RTO अधिकारी ने एक लड़की को ड्राइविंग टेस्ट देने से इसलिए रोक दिया क्योंकि उस ने लड़की जींस और स्लीवलेस टॉप पहना था. आर.टी.ओ अधिकारी का कहना था कि ये कपड़े ‘अनुपयुक्त’ हैं, लड़की लाइसेंस पाने का मौका नहीं गंवाना चाहती थी, इसलिए कपड़े बदल कर टेस्ट ड्राइव देने आ गई. इस घटना से दस दिन पहले की बात है, एक अन्य लड़की बताती है, उसी आर.टी.ओ के अधिकारियों ने उसके कपड़े भी बदलवा दिए थे, इस लड़की ने कैप्री पहने हुई थी. पता नहीं आपको ये बात कैसी लगी, लेकिन मुझे तो हंसी आ गई. अब तक लोग इज्ज़त और चरित्र को कपड़ों से जोड़ते थे, अब ड्राइविंग स्किल्स से भी जोड़ने लगे हैं. 

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सड़क पर गाड़ी चलाने के लिए ड्राइविंग के अलावा भी कुछ हुनर की ज़रूरत पड़ती है. जैसे उन लड़कियों को अगर घूस देने का तरीका पता होता, तो उन्हें कपड़े बदलने की ज़रूरत नहीं पड़ती और न ही ड्राइविंग टेस्ट देने की, इस वजह से भी उन लड़कियों को ड्राइविंग लाइसेंस नहीं देनी चाहिए. अब कल को वो किसी चौराहे पर पकड़ी गईं तब तो चालान देने भर जाएगीं, जहां घूस दे कर काम चलाया जा सकता है. 

कुछ गालियां भी सीखनी पड़ेंगी… लड़कियां लड़कों की रफ़्तार में गाली नहीं दे पातीं, सड़क पर कहीं गाड़ी कहीं भिड़ा दी, तो हालात को काबू में रखने के लिए और हिंसा को टालने के लिए गाली देना और ‘देख लेने’ का जज़्बा होना चाहिए. 

ये कहीं लिखा तो नहीं होगा लेकिन आप गौर करेंगे तो पाएंगे पुरुषों ने जितने भी एक्सिडेंट किए होंगे उनमें उन्होंने जींस या पैंट पहन रखा होगा. जब सबसे ज़्यादा एक्सिडेंट इन कपड़ों में होते हैं और पुरुष इन्हीं कपड़ों में ड्राइविंग टेस्ट भी देते हैं, तब सबसे पहले इनके कपड़े बदलवाने चाहिए. पैंट और जींस की जगह धोती पहनवाओं और दक्षिण भारत में लुंगी. चाहे बाइक ही क्यों न चलानी हो! 

 आर.टी.ओ अधिकारी की लड़कियों की कपड़ों से जुड़ी चिंता जायज़ थी. जींस अक्सर टाइट होते हैं, गाड़ी चलाने वक़्त उससे पैरों के मूवमेंट बाधित होते हैं और स्लीवलेस टॉप पहनने से गाड़ी की AC से हाथों में कंपकपी होने लगती है, जिससे स्टेयरिंग के डगमागने के ख़तरा भी रहता है. अब आप कहिएगा कि मैं क्या बकवास कर रहा हूं, मतलब बक़वास करने का हक़ सिर्फ़ आर.टी.ओ के पास है? लोग हर दूसरे दिन कहीं न कहीं जींस बैन कर देते हैं, वो बकवास तो मेरी बकवास के सामने कुछ भी नहीं है.