हमारा बचपन लोगों ​को जितना मासूम दिखता है, उतना शायद होता नहीं है. बढ़ती उम्र के साथ हर बच्चे के अंदर का शातिर दिमाग चलने लगता है. जब जिज्ञासा, इच्छा और डर एक साथ ज़िन्दगी में आते हैं, तब चलती है ऐसी शातिर बुद्धी. हमने घर वालों से डर कर या शर्मा कर कई ऐसे काम चोरी-छिपे करे हैं, जो हम कभी नहीं चाहते थे कि वो पापा-मम्मी को पता चलें.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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