Happy Holi: दुनिया होली को भले ही रंगों का त्योहार माने, मगर हमारे लिए ये दिन फुल रंगबाज़ी का होता है. मतलब जितना बवाल काटना है, काट लो. क्योंकि, ‘बुरा न मानो होली है’ वाला रामबाण फ़ॉर्मूला हमारे जैसों के लिए बहुत पहले ईज़ात हो गया था. 

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तो बस होली आते ही हम एक अलग एक्साइटमेंट से दुनियाभर में नचियाते घूमते हैं. पूरे टाइम हमारा थूथन ‘बोलो सारा रारा…’ के मोड पर हिलता रहता है.

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मगर हर बार हमारी ये उधम-चौकड़ी हम भर ही भारी पड़ती है. काहे कि जो होली एक्साइटमेंट से शुरू होती है, उसे हमारा होलियारापन लूज़ मोशन पर जाकर ख़त्म करता है. वो कैसे? यही तो बताने आए हैं गुरू.

ये हैं वो 7 रंगबाज़ियां, जिनके चलते अपनी हर Holi एक्साइटमेंट से शुरू होती है और लूज़ मोशन पर ख़त्म-

1. छुट्टी की दरकार

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मार्च का महीना आते ही अपने जैसे दिहाड़ी मज़दूरों की आंखें बाद में, कैलेंडर पहले खुलता है. समझ ही नहीं आता कि कितने जन्मों की छुट्टी मांग लूं. मगर मालिकों से दो ही चीज़ें तो झेली नहीं जातीं. पहला, हमारे जैसे लौंडों के मुंह पर ख़ुशी और दूसरा, उसी सड़ियल मुंह पर चिपके होंठों से निकलने वाली छुट्टी. 

2. स्टॉक का जुगाड़

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हम भले ही लेट-लतीफ़ी के लिए गाली खाते फिरते हों, मगर होली (Holi) पर स्टॉक जुगाड़ने में हमसे पंचुअल कोई नहीं है. मतलब, बाप हमारे देख लें, तो दुख में हमें घर से ही नहीं, देश से भी निकाल बैठें. महीनेभर से यही प्लानिंग चलती है कि बियर और व्हिस्की का अनुपात क्या होना चाहिए. चार पर एक या फिर छह पर दो या फिर सीधा बियर के आधे दाम पर सब व्हिस्की ही ले लो?

3. रंग-बिरंगा त्योहार

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होली रंग-बिरंगा त्योहार है, ये ग़लतफ़हमी हमारी होली के दिन ही दूर होती है. क्योंकि, सतरंगी के नाम पर मुंह काला-नीला और गुलाबी नज़र आता है. ये तीन रंग मिलकर हमारे चेहरे पर ऐसा निखार बिखेरते हैं कि हमारी सूरत देख मोहल्ले का चितकबरा कुत्ता भी शरमा जाता है.  

4. नशे का खुमार

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मैं दुनियाभर के वैज्ञानिकों को चैलेंज देता हूं कि कोई होली पर चढ़ने वाली खुमारी के रहस्य का पता लगाकर दिखाए. क्योंकि, चाहें स्टॉक गटकाए हो या एकदम सादे मुंह होली निपटाए हो, कोई फ़र्क नहीं पड़ता. होली के दिन पता नहीं कौन सा नशा हवाओं में उड़ता है कि आप बिना पिए ही डेढ़ क्वाटर डाउन नज़र आते हैं. और अगर ग़लती से पी लिए, फिर तो आप मोहल्ले के हर गाय-कुत्ते के गले मिल-मिलकर होली की बधाई देते नज़र आते हैं. 

5. साबूदाने के पापड़ फ़ेल

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होली पर शरीर का ऐसा कोई छोर नहीं होता, जहां घुसेड़-घुसेड़ कर रंग न लगाया जाए. ससुरे दांत तक में रंग का मंजन कर देते. चेहरा तो एकदम चबूतरा समझ कर रंंगते हैं. फिर जब छुड़ाने बैठो न, इतना दानेदार मुंह होता है कि पूछिए मत. मतलब इतने दाने साबूदाने के पापड़ में नहीं होते, जितने रंग खेलने के बाद चेहरे पर निकल आते हैं.

6. दर्द शरीर के आर-पार

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होली के बाद आदमी थकावट में ऐसा झूमता है कि बिस्तर पर आप लेटते नहीं, बल्कि वो ख़ुद-ब-ख़ुद आपको अपनी गोद में ले बैठता है. कमर-पीठी सब ऐंठ जाती है. पूरा शरीर ऐसा कड़कड़ाता है कि मेडिकल स्टोर से पेन किलर लाने को आत्मा ख़ुद ही जिस्म छोड़कर निकल पड़ती है.

7. गुजिया-पापड़ से पेट में भूचाल

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अगर आप सोचते हैं कि सुनामी समुद्र में ही आती है, तो आप ग़लत हैं. होली के बाद कई लोगों के बाथरूम में भी इसका कहर सुना जा सकता है. इसके पीछे ज़िम्मेदार है कि गुजिया-पापड़, जो ऐसा पेट में भूचाल पैदा करते हैं कि पेट में 24 घंटे कबूतरों के गुटर-गूं टाइप आवाज़ सुनाई देती रहती. 

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तो ये थीं वो ख़ुराफ़ाती वजहें, जिनके चलते अपनी होली (Holi) एक्साइमेंट से शुरू होकर लूज़ मोशन पर ख़त्म होती है. आपके साथ भी ऐसा होता है, तो हमें कमंट बॉक्स में अपने क़िस्से शेयर करें.