छोटे शहरों में टेम्पो इंधन से नहीं दर्द से चलते हैं. टोम्पो के पीछे जितनी दर्दनाक शायरी लिखी होगी, उसका माइलेज उतना बढ़िया होगा. इसके शायर भी आम नहीं होते, क्या ग़ालिब क्या मीर, टेम्पो शायरी के सामने बड़े-बड़े उस्ताद पानी भरते हैं. अब इस शेर पर ही ग़ौर फ़रमाइएगा- 

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हम हैं राही प्यार के, आते हैं सवारी उतार के! …उफ़्फ ये शायरी कितने स्तर पर बातें करती हैं! ये फ़लसफ़ा इंसानी भाव को बिना किसी लाग लपेट के आसान शब्दों में पेश करता है. इसमें ज़िंदगी का सार है. 

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जो कुछ शायरी से छूट जाता है, उसकी कमी अल्ताफ़ राजा, दलेर मेंहदी, कुमार सानू, अगम कुमार निगम के गाने से पूरी की जाती है. इनके गानों के प्लेलिस्ट कुछ ऐसे होते हैं, जिसके शुरुआत में तो आप इरिटेट होतें और थोड़ी देर बाद ख़ुद भी ऑटो के ताल पर झूमने लगते हैं. आखिरी में जब डीजे राकेश, होशंगाबाद, 8887332XXX वाले का रिमिक्स गाना बजता है तब तो जनता कपड़े फाड़ कर नाचती है. ख़ैर, बदलते वक़्त के साथ पंजाबी गाने क्लब से निकल कर ऑटो तक पहुंच चुके हैं, अब सूद के पैसों से ख़रीदे गए टेम्पो में गाना बजता है- कुड़ी केंदी पहले जेगुआर ले लो, फेर जेड़ा मर्जी प्यार ले लो. 

What’s Up Life

इनका टेम्पो छोटा होता लेकिन दिल बड़ा. ये किसी सवारी को न नहीं कह पातें, किसी ने पूछ लिया, ‘एक सीट खाली है?’. सामने से ड्राइवर अपनी सीट दे देता है, ‘भाई आप मेरी जगह बैठ जाइए, आपको ज़रूरी काम से जाना है, मेरा क्या! मैं तो रोज़ इसी सड़क पर घूमता रहता हूं!’ भीतर एक-एक सवारी ऑटो के एक-एक नट को पकड़ कर बैठ होते हैं. जहां गाड़ी किसी स्पीड ब्रेकर पर कूदती है, सब सूखे पत्ते की तरह बिखर जाते हैं. 

ऑटो की दुनिया में कुछ अघोषित नियम चलते हैं. जो कहीं लिखे तो नहीं गए लेकिन मानते सब हैं. ऑटो में मीटर इसलिए होता है, क्योंकि वो वहां होते है, मीटर भाड़े में किसी प्रकार कि दख़लअंदाज़ी नहीं करता. शेयरिंग ऑटो है, पीछे सिर्फ़ पुरुष सवारी बैठे हैं और किसी महिला ने ऑटो रुकवाया तो किनारे बैठा पुरुष सवारी बिना किसी सिग्नल के चुपचाप लड़की के लिए अपनी सीट छोड़कर आगे ड्राइवर के पास बैठ जाता है. बुकिंग ऑटो वाले सिर्फ़ पैसे के लिए कहीं नहीं चले जाते हैं, उन्हें मनाना पड़ता है, उनको यकीन दिलाना होता है कि वापसी में सवारी मिल जाएगी, उल्टा नहीं पड़ता.