Types of Indian Voters: भारतीयों को लोकतंत्र एक ही दिन नसीब होता है. वो है चुनावी दिन. काहे कि इसी दिन उसे तंत्र को उंगली करने का मौक़ा मिलता है. नेता भी अपनी छाती पर लोगों का तांडव झेलने को तैयार रहते हैं. हो भी क्यों न. पांच साल से मूर्ख बन रही भोली-भुलक्कड़ जनता को इतना तो हक है ही.

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यही वजह है कि चुनावी दिन ऐसा लगता है, मानो भारत में दास प्रथा वापस लौट आई है. मतलब नेता इस कदर सेवक पोज़ीशन में आ जाते हैं कि अगर गली क्रिकेट खेलते किसी बच्चे की बॉल नाली में चली जाए, तो वो झट से अपना मुंह डालकर निकाल लाएं. आप भले ही कहिए, ‘नेता जी छी छी. नाली का काला पानी बॉल पर लिपटा है. निकालिए मुंह से.’ तो वो कहेंगे, ‘नहीं मालिक, ये तो काला जाम है, और…. नेता को स्वीट पसंद है’

ख़ैर, आज बात नेताओं की नहीं, बल्क़ि इस पंचवर्षीय योजना का एक ही दिन में लाभ उठाने वाले वोटर्स की करेंगे. क्योंकि वोटर्स मतलब सिर्फ़ वोटर नहीं होता, बल्कि ये तो बड़ी वैरायटी वाली चीज़ है. किस्म-किस्म के वोटर अपने भारत में पाए जाते हैं. कुछ हमारी निगाह पर भी चढ़ें है. उम्मीद है कि आप भी इनसे रिलेट कर पाएंगे. (Types of Indian Voters)

तो आइए नज़र डालते हैं भारतीय वोटरों के प्रकार पर (Types of Indian Voters)-

1. परपंची वोटर

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ये वो वोटर होते हैं, जो गुप्तदान को पीकदान बनाने पर आमादा रहते हैं. मतलब जगह-जगह घूमकर ये बताते-पूछते मिल जाएंगे कि इन्होंने किसको वोट दिया और दूसरे ने किसे. अगर परपंच का ये पैंतरा जमा नहीं, तो कान दूसरी ओर से पकड़ कर पूछेंगे, ‘किसकी बना रहे सरकार मिश्रा जी, अबकी पंजा लड़ाएंगे कि नहीं या फिर चड्ढी पहनकर फूल खिला आए?’

2. चुप्पा वोटर 

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इन वोटरों का एक ही मंत्र है, ‘देंगे उसी को मगर बताएंगे नहीं किसी को.’  ये बेचारे परपंची वोटरों से सबसे ज़्यादा परेशान रहते हैं. मतलब वोट देकर निकले नहीं कि धर लिए गए. ‘इधर आओ गुप्ता, सुने हैं हाथी पादे पूं-पूंं. हैं, सही सुने हैं. अरे बता भी दो मेरे गुप्त ज्ञानी.?’ मगर चुप्पा वोटर तो चुप्पा ही होता है, ‘अजी नहीं, हम तो बस 13 नंबर का बटन दबा दिए, देखें भी नहीं कौन है.’  अब इस गुप्त ज्ञान से तो परपंची भी घायल हो जाता है, काहे कि चुनाव में ससुरे कैंडिडेट ही 11 थे.

3. एक्स्ट्रा शालीन वोटर 

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ऐसे वोटर फर्ज़ी ही अपने कंधे पर लोकतंत्र का भार लादकर घूमते हैं. इन्हें लगता है कि ये वोट देने न आते, तो संविधान निर्माताओं की आत्मा कड़कड़ाने लगती. ‘भई लोकतंत्र का महापर्व है चुनाव, तो हम भी आहूति देने आ गए. देखिए, फेफड़े हमारे फड़फड़ा रहे हैं, दो कदम नहीं चला जाता. मगर राष्ट्र प्रथम है, तो बस उसे आगे बढ़ाने आ गए.’ (Types of Indian Voters)

4. चिहाड़ी वोटर 

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ऐसे वोटरों का बस एक ही काम है कि चुनावी इंतज़ामों का दिनभर पोस्टमार्टम करते रहो. इनकी उंगली पर चुनावी स्याही लगती नहीं कि ये उसे मिटाने के तरीकों पर ज्ञान पेलना शुरू कर देते. EVM की फ़ुल फ़ॉर्म ही इन्होंने ‘ई वोट मारेगी’ मशीन रख दी है. हारा हुआ नेता एक बार को मान ले कि चुनाव निष्पक्ष हुआ है, लेकिन इन्हें यक़ीन दिलाना नामुमकिन है.

5. नॉस्टैलजिक वोटर 

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ये वोटर अपने ज़माने की रौनक तलाशने में मरे जा रहे. मतलब एक अलग ही लेवल के नॉस्टैलजिया के शिकार हैं. ‘अरे हमार बकत मा का पिपरेसन होत रहै. तब चुनाव, चुनाव लागत रहै. हियां चौराहे-चौराहे चुनावी झालरें झलझलावत रहैं. और हुंआ, पुच्चन हलवाई की पूड़ियां बंटत रहैं… और अब देखी इन नासपीटन का, लगत है कहीं चुनाव में न किसी के मरे मा जा रहे. एकदम ही मनहूसित के मारे’

6. सरकार बना/गिरा देने वाला वोटर 

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इन वोटर्स को उंगली करना सबसे बड़ा क्रांतिकारी काम लगता है. ये वोट देकर निकलते ही दो बातों में सिर्फ़ एक बात कहते सुने जाएंगे. ‘देखिएगा भइया, गिरा दिए हैं सरकार या अब की इसी चौराहे से निकलवाएंगे नेता.’ मतलब इन ससुरों को लगता है कि पूरी देश की आबादी फालतू वोट डाल रही है. डिसीज़न तो तब ही फ़ाइनल होगा जब छब्बन मियां अपनी क्रांतिकारी उंगली से बटन दबाएंगे.

7. कार्यकर्ता वोटर 

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भेड़ की खाल में भेड़िया वाली बकैती सुनी ही होगी. ये वैसा ही हिसाब है. ये वोटर कम पार्टी कार्यकर्ता ज़्यादा होते हैं. ये वोट देने से ज़्यादा दिलवाने पर यक़ीन करता है. आपकी पर्ची न आए, इनसे संपर्क करो. आपका किस बूथ में वोट पड़ा है, यही आपको दौड़-दौड़कर बताएंगे. आपके भोलपन की कसम खाकर बता रहा हूं कि अगर आप चुनाव के वक़्त बवासीर से परेशान हों, तो ये व्यक्ति आपको मरहम तक लगाने आ जाएगा. बस आपको इतना दिलासा देना होगा कि आप इसी के कहने पर वोट दे रहे.

8. ईगो का मारा वोटर

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ये जीजा जी, फूफा जी टाइप वोटर होते हैं. नाराज़गी में पीएचडी होल्डर. अगर नेता जी इनके महल्ले मे आए और इनके घर आकर नहीं मिले, तो बस ये नाराज़. फिर ये वोट न देने की पूरी ‘कोशिश’ करेंगे. ऐसे लोगों को मनाने के लिए तो कार्यकर्ता वोटर अपनी पूरी जान लगा देते हैं. ‘अरे लड्डन मियां, कैसी बात करते हो. अभी-अभी नेता जी से फ़ोन पर बात हुई. पूछे हैं कि अपना लड्डन वोट दिया कि नहीं? और तुम यार… ये खाओ कमलापसंद और जाकर विपक्षियों की लाल करो.’

9. परेशान वोटर

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चुनाव के दिन नेताओं से ज़्यादा परेशान इस टाइप के वोटर ही होते हैं. इन्हें हर बात परेशान करती है. वोटर कार्ड में इनकी फ़ोटू काली क्यों आई? वोट की लंबी लाइन क्यों लगी है? हमें वोट की जगह वीटो काहे नहीं दिए? मतलब हर अनाप-शनाप चिंता ये अपने कलेजे में ठूसे बैठते हैं. इनकी सबसे बड़ी तकलीफ़ होती है कि काहे शराब की दुकान बंद है? इनका बस यही सवाल रहता है कि ‘पूरे पांच साल जब हमारे होश उड़े रहे, तो फिर एक दिन हमें होश में क्यों ला रहे. और फिर होश में आ भी गए, तो कौन सा चौचक नेता ऑप्शन में दिये हो, जिसे चुनकर हमें चूना नहीं लगेगा?’ 

10. सिटियाबाज़ वोटर

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दिस टाइप ऑफ़ वोटर आर माई फ़ेवरेट. क्योंकि, ये वोट नहीं, दिल देने जाते हैं. ये सुबह से पोलिंंग बूथ के बाहर ही खड़े रहते, मगर तब तक अंदर नहीं जाते, जब तक इनके महल्ले की हिरणी कुलांचे मारते वोट देने नहीं आ जाती. बस जैसे ही वो आई, ये भी उसके पीछे खड़े हो जाते. हाथ में वोटिंग पर्ची की जगह अपने मोबाइल नंबर की पर्ची थामे रहते हैं कि मौक़ा मिले और तीन शब्दों के साथ अपना 10 नंबरी पना उन तक पहुंचा दें. इस बात से बेखबर कि वो यहां लखैरा आशिक़ नहीं, बल्कि लंपट सरकार चुनने आई है. (Types of Indian Voters)

तो ये थे हमारी नज़रों में चढ़े भारतीय वोटरों के प्रकार (Types of Indian Voters). क्या आप भी ख़ुद को इनमें से किसी एक टाइप का पाते हैं? अगर हां, तो कमंट बॉक्स में बताएं. अगर नहीं, तो भी अपना टाइप लिख दीजिए. हम पढ़ लेंगे. नेताओं की कसम!