Hindi Diwas: अंग्रेज़ी बड़ी ही इंटरेस्टिंग लैंग्वेज है. काहे कि ज़्यादतर भारतीयों को आती नहीं है, इसलिए हम समझने की भरपूर जिज्ञासा लिए अंग्रेज़ी बोलने वालों को सुनते हैं. मगर अंग्रेज़ी तो ठहरी प्रियंका चोपड़ा, हिंदी मीडियम (Hindi medium) वालों को नसीब ही नहीं. इसलिए हम जैसे लोग अंग्रेज़ी से ख़ुद को एक्स्प्रेस कम डिप्रेस ज़्यादा करते हैं. 

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ऊपर से अगर हिंदी मीडियम के साथ सरकारी स्कूल की मुहर भी थोपड़े पर छपी हो तो फ़ुल तड़प समझो. क्योंकि, ये कॉम्बिनेशन ऐसा है जैसे पनौती सिर्फ़ आपकी क़िस्मत में आई न हो, बल्क़ि चपक के चुम्मा भी ले गई हो. मगर ‘अब पछताए होए क्या वैन बर्ड्स चुग द खेत.’  तो भइया झेल रहे हैं.

मगर आज हिंदी दिवस (Hindi Diwas) के अवसर पर हमने अपनी और अपने जैसे हिंदी मीडियम वालों की भड़ास निकालने का फ़ैसला कर लिया है. काहे कि इन ससुरे नेताओं ने हिंदी मां है बोलकर हम मासूमों को फुसला लिया. ये नहीं बताए कि अंग्रेज़ी वो बाप है, जिसके सामने आते ही पतलून टाइट हो जाती है. मने पिता जी जैसे सार्वजनिक बेज्जती का कार्यक्रम चलाते हैं, वैसे ही अंग्रेजी भी दुनियाभर के आगे इज़्ज़त को उधेड़ कर रख देती है.

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अब रेस्टोरेंट को ही ले लीजिए. जेब में पैसा भले ही हचक के हो मगर जब तक हलक में अंग्रेज़ी गरारा न करे, तब तक कॉन्फ़िडेंस नहीं बनता. थोड़ा-बहुत जो लेकर चलते हैं, वो रेस्टोरेंट में घुसते ही घुस जाता. Domino’s वगैरह में तो हम जैसे लोग कई बार फ़र्जी का बिल बनवा बैठते हैं. काहे कि सामने खड़ी मैडम जो भी लंबा-लंबा बोलती हैं, हम सिर हिला-हिलाकर बिना समझे हामी भरते रहते. बाद में पता चलता है कि 100 रुपये के Pizza पर 300 रुपये की टॉपिंग करवा लिए.

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गर्लफ़्रेंड बनाने में तो हम जैसों को और रुआंसी आती है. क्योंकि, हमारे अंदर एक छिपी हुई चुल्ल है कि भइया गर्लफ़्रेंड तो अंग्रेज़ी मीडियम से ही होनी चाहिए! मगर बने कैसे? बात-चीत की शुरुआत ही उससे इंग्लिश में करनी पड़ती है. सच बता रहे इंडिया-पाकिस्तान मैच में भी इतना प्रेशर नहीं होता, जितना हिंदी मीडियम वाले को ‘Excuse Me’ बोलते वक़्त होता है. अपन भी कई बार फुल कॉन्फिडेंस में ट्राई किए हैं, मगर मुंह से निकला हमेशा ‘एक चूज़ मी’ ही है.

लड़की छोड़ो ऑफ़िस वाले कम चरस जीवन में नहीं बोए हैं. सबसे ज़्यादा सेल्फ़ रेस्पेक्ट की छीछालेदर तो E-mail भेजते व़क्त होती है.

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क्योंकि, बियर पीने के बाद टॉयलेट और ऑफ़िस ज्वॉइन करने के बाद मेल करना ही पड़ता है. टॉयलेट में तो फिर आप पेशाब कर सकते हैं, मगर ये प्राण चूसू मेल अंग्रेज़ी में ही करना पड़ता. ऊपर से ससुरा गूगल ट्रांसलेट की अंग्रेज़ी भी इतनी ख़राब है कि उससे अच्छा ट्रांसलेशन हम ख़ुद कर लेते. मजबूरी में लोगों से पूछ-पूछ कर मेल करते और हर बार बेज़्ज़ती का घूट निगल लेते.

मेल से किसी तरह बचे तो ऑफ़िस मीटिंग में लोग अंग्रेज़ियत के बम फोड़ने लगते. हर किसी के मुंह से कटाकट अंग्रेज़ी ही निकलती है. मन होता बोल दूं भाई हम इत्ते क़ाबिल होते तो काहे यहां आते. मगर उसके लिए भी ‘लिसन गायज़’ कहना पड़ता, इसलिए हम अपना थूथन हिलाते ही नहीं!

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बस हम तो इतनी ही कामना कर सकते हैं कि अपने देश में हिंदी दिवस (Hindi Diwas) एक दिन हिंदी मीडियम वालों के लिए भी शुभ होगा. बाकी, सभी अंग्रेज़ी मीडियम वालों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं!!!