भारतीय सबसे अलग हैं. यह बात को मैं राष्ट्रवाद में बह कर नहीं बोल रहा, ये वास्तविकता है. जहां लोकतांत्रिक देश की जनता सड़कों पर उतर कर सरकार से अपने हक़ के लिए लड़ती है. भारत में लोग अपने संवैधानिक अधिकार सरकार को तौफ़े में पेश करती जा रही है. आधार कार्ड के नाम पर निजता का अधिकार गया, पिछली सरकार से लड़कर हासिल की गई सूचना के अधिकार को भी गंवा बैठें. अब शिक्षा पर तलवार लटक रही है.
जहां सरकार की ओर से शिक्षा पूरी तरह मुफ़्त होनी चाहिए, वहां हम चाहते हैं कि सरकार हमसे शिक्षा के लिए और पैसे वसूल करे. भाजपा के बदौलत विवादों में रहने वाला JNU, फिर से विवाद में है. कॉलेज प्रशासन द्वारा हॉस्टल, खाना, बिजली, आदि की फ़ीस कई गुना बढ़ा दी गई. इसके विरोध में छात्र विरोध प्रदर्शन करने लगे, उनपर लाठीचार्ज भी की गई.
इस विरोध-प्रदर्शन का विरोध करने वालों का कहना है कि 300-400 रुपये बढ़ा देने का विरोध नहीं करना चाहिए, JNU के बच्चे जनता के टैक्स के पैसों से 25-30 साल की उम्र तक मुफ़्त में कॉलेज हॉस्टल में पड़े रहते हैं, इसलिए फ़ीस बढ़ाना ज़रूरी है. होना ये चाहिए था कि JNU की आड़ में सभी सरकारी कॉलेज की फ़ीस JNU के स्तर तक कम करने की मांग उठती, हम बढ़े हुए फ़ीस को जस्टिफ़ाइ कर रहे हैं.
Here is a detailed breakdown for anyone who needs to understand the issue of fee revision in JNU! #FeesMustFall #JNUFreeForAll #JNUHostelRent pic.twitter.com/60VOYYD7h7
— Pinjra Tod (@PinjraTod) November 12, 2019
जिन्हें टैक्स के पैसे बर्बाद होने की चिंता है, उन्हें मंत्रियों के रहन-सहन पर होने वाले ख़र्च का भी हिसाब लगाना चाहिए, अभी कुछ दिनों पहले ही गुजरात के मुख्यमंत्री के लिए 191 करोड़ का प्राइवेट जेट ख़रीदा गया, JNU का सालाना बजट 200 करोड़ का है.
उम्र की बात करें तो JNU को गरियाने से पहले हमारी शिक्षा व्यस्था को देखना चाहिए. अगर मान कर चलें कि बच्चे ने 5 साल की उम्र से पढ़ाई शुरू की होगी तब भी मास्टर्स करते-करते छात्र की उम्र 22-23 साल तक हो जाती है, वो भी तब जब बीच में कभी पढ़ाई छूटी न हो. JNU में मुख्यत: रिसर्च की पढ़ाई होती है जिसके लिए 5 साल लगते हैं. अगर आपको 28 साल की उम्र तक पढ़ते हुए बच्चे पसंद नहीं तो JNU से पहले आपको शिक्षा व्यवस्था बदलने के लिए आवाज़ उठानी चाहिए.
कुछ तो ऐसे भी हैं, जिन्हें सिर्फ़ JNU के नाम से चिढ़ है. उसे ‘देशद्रोहियों का अड्डा’, ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ नाम दे रखा है… ये बड़े गंभीर आरोप हैं और अब-तक साबित भी नहीं हुए हैं और अगर मान भी लें कि ये सच है तो जिन छात्रों ने ऐसा कुछ किया भी होगा वो पास हो कर अब-तक कॉलेजे से निकल गए हैं और हम उनके पीछे एक सरकारी संस्थान को देश विरोधी साबित करने पर तुले हुए हैं, वो भी उस कॉलेज को जिसे भारत सरकार ख़ुद अपनी सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय की सूची में पहले नंबर पर रखती है.