आज दशहरा है, सब सोशल मीडिया पर अपने भीतर के रावण को मारेंगे… जिसे पिछले साल भी मारा था, जान सलामत रही तो अगले साल भी मारेंगे लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा. क्योंकि मेरे भीतर रावण बसता ही नहीं है. राम जी ने अपने माता की इच्छा पर राज्य त्याग कर वनवास चले गए थे, मुझसे मम्मी के कहने पर बाज़ार से धनिया लाने की हिम्मत नहीं होती… इससे इतना क्लियर हो जाता है कि मेरे भीतर राम जी भी डेफ़िनेटली नहीं हैं. फिर मेरे भीतर है कौन? शायद कुंभकरण! 

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मेरी मेरे भीतर के कुंभकरण से अच्छी बनती है, मैं उसे नहीं मारने वाला. हमारी ट्युनिंग बढ़िया है, खाना और सोना बस यही दो ज़रूरतें हैं हमारी. वीकेंड के दिन भीतर के कुंभकरण की शक्तियां बढ़ जाती हैं, 12 घंटे से एक पैसा कम नहीं सोता. बीच में जो भी उठाने की कोशिश करता है वो मेरे कोप से नहीं बचता. ऊपर से सीधे रात में पूरे दिन का खाना एक साथ तत्पश्चात मदिरा का सेवन और फिर से निद्रासन को ओर लौट जाता हूं. 

मेरी और कुंभकरण की समस्याएं भी एक जैसी हैं, सही मौके पर ज़ुबान का फ़िसलना. कुंभकरण ने तपस्या कर के ब्रह्मा को खुश किया, वरदान में ‘इंद्रासन’ मागने वाला था स्लिप ऑफ़ टंग से ‘निद्रासन’ मांग बैठा. खूबसूरत लड़की के सामने मेरी भी ज़ुबान से उल्टी-सीधी बातें निकल जाती हैं, एक बार तो बोल दिया था, ‘तुम ख़ूबसूरत भी हो और टैलेंटेड भी, ऐसा संभोग(संयोग) कम ही होता है!’ … लड़की ने ऐसा भगाया कि आज भी टखने में दर्द उठता है. 

भाई के मामले में भी मेरी किस्मत कुंभकरण जैसी है. वो बेचारा मस्त सो रहा था, रावण ने जबरन उठाया और लड़ने के भेज दिया, बंदा कितना भी बहादुर हो आंख मलता हुआ लड़ने पहुंच जाएगा तो मारा ही जाएगा… पहले थोड़ी प्रेक्टिस करवाते. हाथ खुलता, तब कहीं कुंभकरण भी फ़्रेश मूड के साथ लड़ता. मेरे केस में… अपने टर्न में भी सुबह-सुबह भईया मुझे ही दूध ले आने को भेज देते हैं. आधी नींद में होने की वजह से कई बार मैं दूधवाले की पानी की बाल्टी उठा लाया, बेचारा मम्मी से शिकायत भी नहीं कर पाया!