Mother’s Day: मां की ममता, दुलार, त्याग, विश्वास, दुआएं, शक्ति, भक्ति…. इन सब पर कितनी भी बात की जाए कम है. मां के पैरों में जन्नत होती है, ये भी ठीक है. मां अपने बच्चे के लिए सबकुछ करती है, इसमें भी कहीं शक नहीं है.
मगर…. आज हम बात प्यारी मां पर नहीं, बल्क़ि शरारती मां की करने जा रहे.
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जी हां, शायद आपने गौर नहीं किया हो, मगर घर की सबसे शरारती सदस्य हमारी मां ही होती हैं. हम बच्चों की नालायकी को राइट टाइम करने का हुनर उनसे बेहतर कोई नहीं जानता है. घर पर ऐसे-ऐसे मौक़े आते हैं, जब हम बच्चे रो देते हैं और मां के मन में मुस्कुराहटों की झड़ी लग जाती है.
तो आइए बात करते हैं उन मौक़ोंं की जब बच्चे रोते हैं और मां मुस्कुराती हैं- (Mother’s Day)
1. जब बाप के ऑफ़िस से आने का टाइम हो
दिनभर बच्चे घर पर उत्पात मचाते हैं. ये नहीं खाएंगे, वो नहीं खाएंगे. नौटंकी पेला करते हैं. मगर मां सब सह लेती हैं. जानते हो क्यों? क्योंकि, उन्हें अच्छे से मालूम है कि दिनभर भले ही औलाद खाना खाए या न खाए, मगर बाप के ऑफ़िस से लौटने के बाद जूते ज़रूर खाएगी. बस इसी प्रतीक्षा में वो सारा दिन सब्र कर लेती हैं. ऊपर से मासूम पिता को ख़बर तक नहीं लगती कि वो पूरे खेल में विलन हो चुके हैं और श्रीमति पुचकार कर अपनी पिटी औलाद से ‘प्यारी मां, मेरी मां’ टाइप गाने सुन रहीं. (Mother’s Day)
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2. टीचर के सामने जब बच्चा बैठा हो
घर पर बच्चे चाहें जितने उधमी-जंगली होंं, मगर टीचर के आगे एकदम पोलू-भोलू बन जाते. मगर जब माता जी को टीचर के आगे मौक़ा मिलता है, तब देखिए बवाल. ‘अरे इनको तो कितना समझाओ समझता ही नहीं मैडम. कहते हैं ट्यूशन में नेकर नहीं जींस पहनेंगे. स्कूल तब ही जाएंगे, जब चुंबक वाला बॉक्स दिलाओगी. पेंसिल-रबड़ अलग-अलग है, मगर नहीं. इन्हें तो रबड़ वाली ही पेंसिल लेनी है. लंच देकर भेजो, फिर भी दो रुपये पॉकेटमनी चाहिए ही चाहिए.’ अब बताइए मैडम, इस महंगाई के ज़माने में हम बच्चों को पढ़ाएं या इनके नखरे उठाएं?
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मतलब इतनी मेहनत-मशक्क के साथ जो बच्चा टीचर के आगे थोड़ी-बहुत इज़्ज़त जुगाड़ता है, उसकी छीछालेदर माता जी एक घंटे में मचा देती हैं.
3. क्रिकेट मैच के बीच जब लाइट चली जाए
‘अरे बेटा ज़रा सूर्यवंशम लगा दे, देख अभी अमिताभ ‘कोरे-कोरे सपने’ वाला गाना गाएगा.’ कोरे-कोरे? अरे मतलब इंडिया-पाकिस्तान का मैच चल रहा है और उस बीच मां को अमिताभ के ‘कोरे-कोरे सपने’ सुनने हैं. हद है! भाई अपन साफ़ इन्कार कर देते. मगर मां तो मां होती है. भगवान भी उसके कहर से डरता है, तो बिजली विभाग की क्या औकात. भइया, पता नहीं कैसे दैवीय शक्तियों का असर होता है और लाइट कट.
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फिर यही सुनाई पड़ता है, ‘देखा, अमिताभ को लगा देते, तो लाइट नहीं जाती. ये क्रिकेट है ही मनहूस.’ सच बता रहे, ऐसे मौक़े पर मन करता है कि ठाकुर भानुप्रताप से ज़हरीली ख़ीर छीनकर सोनी मैक्स वालों को खिला दूं.
4. जब गर्लफ़्रेंड से ब्रेकअप हो जाए.
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5. बाहर से मंगाया खाना बेस्वाद निकल जाए
हर बच्चे के अंदर बाहर का खाने की खुजली होती है. उस पर Zomato और Swiggy डिस्काउंट ऑफ़र देकर उंगली करना शुरू कर देते. अब क्या कीजिएगा, मंगा लेते हैं बिरयानी-शिरयानी. मगर मां को अपनी खिचड़ी के आगे हमारी बिरयानी रास नहीं आती. ‘अरे भइया बाप दिन-रात गधा-मजदूरी कर रहा और लौंडा अय्याशी. इतनी अच्छी लौकी की सब्जी बनाई है, वो नहीं खानी. इन्हें तो रोज़ बिरयानी चाहिए.’
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मगर मां की मौज तब होती है, जब बाहर का खाना रद्दी निकल जाए. ‘अरे और मंगाओ. घर का तो खाना नहीं है न. बाहर चार दिन पुराना उठाकर तल देते हैं. वो चाव से खाएंगे. अब वही खाओगे. बस अब हमसे मत बोल देना कुछ बनाने को.’
6. जब एक के बाद एक सीरियल आने लगें
आप अपने घर पर चाहें जितना दहाड़ो, मगर मां के सीरियल टाइम पर चूं करने की हिम्मत नहीं जुटा सकते. ऊपर से क़यामत तो तब होती है, जब ससुरे लाइन से एक के बाद एक सीरियल आते हैं. कभी अनुपमा, कभी नागिन. इस दौरान ब्रेक में भी अगर ग़लती से चैनल चेंज हो गया, तो मुंह ही मुंह चप्पल बजा दी जाएगी.
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7. मटन बोलकर परवल परोस देना
ये ख़ुराफ़ात मुझे आज तक समझ नहीं आई. सुबह से मां रात को मटन बनाने की बात करने लगेंगी. हम भी हचक के खाने की उम्मीद में दो की जगह छह बार पॉटी हो लेंगे. मगर रात में थाली में क्या मिलेगा? परवल. जी हां, पनीर नहीं, छोला नहीं, कद्दू भी नहीं. मटन से सीधा परवल.
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अब ऐसे टाइम ख़ुद ऊपर वाला भी अपने हाथ से परवल खिलाने आ जाए, तो भी हम इन्कार कर दें. मगर मम्मी उम्मीद नहीं छोड़ती. बातें तो सुनिए, ‘बेटा बीजा निकाल दिए हैं, बढ़िया भून के बनया है. पता भी नहीं चलेगा परवल खा रहे हो.’ पता नहीं चलेगा? आपको पता नहीं मां कि इस परवल के चक्कर में हमारे कितने अरमान तल-भुन गए.
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