जब चाचा विधायक हों तभी बड़े-बड़े क़ानूनी मसले चुटकी में हल हो जाते हैं. इस मामले में तो चाचा प्रधानमंत्री हैं, वो भी फ़ुल मेजॉरटी वाले, काम कैसे नहीं होना था! ख़बर उठी कि दिल्ली में प्रधानमंत्री की भतीजी दमयंती बेन का पर्स ऑटो से उतरते वक़्त दो बाइक सवार ने छीन लिया, उसमें लगभग 56 हज़ार कैश और कुछ ज़रूर कागज़ात मौजूद थे. 

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सिर्फ़ घटना को देखें तो बड़ी बात नज़र नहीं आती, देश और दिल्ली में आए दिन छिनैती होती है, मेरे कई जानने वालों के साथ हो चुकी है, इतने लोगों के साथ हो चुकी हैं कि उनका अपना WhatsApp Group भी हैं, नाम रखा है- लुटा हुआ मुसाफ़िर. ग्रुप में मुझे नहीं जोड़ा क्योंकि मेरे साथ कभी ऐसा घटना नहीं घटी, इस वजह से अपने ही दोस्तों के बीच थोड़ा लेफ़्ट आउट फ़ील करता हूं. ख़ैर बात मेरी समस्या की नहीं हो रही थी, प्रधानमंत्री की भतीजी की हो रही थी. दरअसल समस्या उनकी भी नहीं थी, दिल्ली पुलिस की थी. 

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पता नहीं कितनी बार और ऐसा हुआ कि 700 सौ पुलिस वाले एक पर्स को ढूंढने में लगे जाए और 200 सीसीटीवी फुटेज सिर्फ दो झपट्टा मार चोर के लिए खांगाल दिया जाए और 56 हज़ार की चोरी पुलिस विभाग के लिए इज़्ज़त का सवाल बन जाए. ऐसा क्या बड़ा था इस केस में… ओ हां! ‘प्रधानमंत्री की भतीजी’. 

दोनों चोरों को दिल्ली पुलिस ने बड़ी आसानी से ढूंढ निकाला. दिल्ली पुलिस का कुछ ऐसा बयान आया कि ये तो उनका फ़र्ज था, उन्होंने इस केस को ऐसे डील नहीं किया जैसे ये कोई हाई-प्रोफ़ाइल मामला है. वो हर मामले की जांच के लिए ऐसी ही फौज खड़ी कर देते हैं. इतना सुनना था कि ‘लुटा हुआ मुसाफ़िर’ ग्रुप में दनादन मैसेज आने लगे, सब उस दिन को याद कर रहे थे जब उनके साथ ऐसी कोई घटना हुई थी और उस दिन पुलिस के पास और भी ज़रूरी काम थे जिनमें डिपार्टमेंट जी जान लगाए हुए थे. 

पुलिस वालों की छोड़िए, उनका तो काम था. कई मीडिया हाउस ने आनन फानन में दो इंटर्न लगा कर ‘मोदी की भतीजी’ बीट शुरु कर दिया. मुख्यधारा की मीडिया पल पल की खबर साइट पर अपडेट करने में लगी रही. फिर किसी ने बताया कि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपना बयान वापस ले लिया है तब जा कर दोनों इंटर्न को प्राइम टाइम में मंत्री जी समझदारी पर स्पेशल पैकेज बनाने को कहा गया.