हर भारतीय को अपने देश के सिस्टम पर अंधा भरोसा है. हमें पूरा विश्वास है कि जो चालान के नए दर लागू हुए हैं, उससे सिर्फ़ ट्रैफ़िक हवलदारों की जेबें भरेंगी. जेब जब लबालब भर जाएंगी तब कुछ सिक्के देश की तिजोरी में जा गिरेंगे. वो भी इस मात्रा में होगी कि उससे देश की GDP सुधर जाएगी!

नए ट्रैफ़िक एक्ट के तहत जुर्माना 100 गुना तक बढ़ा दिया गया है. इसमें 25000 हज़ार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. अब आलम ऐसा होगा कि बैंक लूट कर भागता डकैत भी सिग्नल तोड़ने की हिम्मत नहीं करेगा. अभी जैसी बैंकों की हालत है, वहां से लूटे पैसे सिर्फ़ चार सिग्नल जंप करने में ही निकल जाएंगे और अगर डकैतों ने ट्रिपलिंग कर रखी हो, तब तो चालान भरने से बेहतर वो एनकाउंटर में मारा जाना पसंद करेंगे.
इतने भारी भरकम चालान लागू करने के पीछे सरकार का तर्क है कि इससे सड़क दुर्घटना में कमी आएगी, लोग नियमों का पालन करेंगे और हादसे कम होंगे. बेहतरीन तर्क है और तार्किक भी है.
लेकिन सरकार ने सड़क दुर्घटना कम करने का सबसे आसान रास्ता चुना है, वो उन रास्तों पर नहीं गई जहां असल गड्ढे हैं. यहां सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढे में सड़क पता नहीं चलता, ये जोक अब मुहावरा बन चुका है. अच्छी सड़क बन जाए तो सरकारें ऐसे प्रदर्शन करती हैं जैसे एहसान कर दिया है. उसपर फ़ाइटर प्लेन उड़ाए जाते हैं.

लोगों से नियमों का पालन करवाना है तो सबसे पहले उन्हें नियम के मुताबिक ड्राइविंग लाइसेंस मिलने चाहिए. इस देश के सभी RTO में जादूगर बैठते हैं. अगले ने टू-व्हीलर का टेस्ट भी नहीं दिया और उसे फ़ोर-व्हीलर चलाने का लाइसेंस मिल जाता है. ये जादूगरी आप किसी भी RTO ऑफ़िस में हज़ार पांच सौ अतिरिक्त भुगतान कर देख सकते हैं.
अगर कोई नाबालिग गाड़ी चला रहा हो, तब बच्चे के अभिभावक से 25 हज़ार रुपये का जुर्माना वसूला जाएग. अधिकतर केस में बच्चे के पकड़े जाने पर मां-बाप चालान भरने के बजाए बच्चे को डिसओन करना चुनेंगे. ‘हम दूसरा पैदा कर लेंगे, आप इसे रख लो!’

एक नए किस्म के चालान को भी इंट्रोड्यूस किया गया है. पहले इंमरजेंसी वाहन जैसे- एम्बुलेंस, अग्निशामक दल की गाड़ियों को रास्ता देना एक नैतिक कर्तव्य हुआ करता था. अब पास न देने पर दस हज़ार फ़ाइन वसूला जाएगा. जनता के लिए ऐसे नियम बनाने से पहले सरकार को अपने गिरेबान में झांक कर सोचना चाहिए कि क्या उसने जनता को इतनी चौड़ी सड़कें बना कर दी हैं जहां दो गाड़ियां आजू-बाजू हो जाएं तो बीच से तीसरी गाड़ी आसानी से निकल जाए.
नए नियम को देखने के बाद आपको मेरी ओर से यही सलाह होगी कि अपनी गाड़ी को तभी सड़क पर उतारें जब साथ में एक वक़ील हो. एक भी नियम टूटा तो कोर्ट-कचहरी और ज़मीन जायदाद का मामला बन जाएगा.