राजनैतिक धोखा बुरा तो होता है लेकिन सबसे बुरा नहीं होता, सबसे बुरा होता है रात को जिस ख़बर के साथ अख़बार छापो और सुबह मामला उससे बिल्कुल उलट निकल जाए. 

महाराष्ट्र चुनाव परिणाम आने के बाद से ही लोग हर रोज़ नई राजनैतिक दावपेंच देख रहे थे. जब साफ़-साफ़ लग रहा था कि भाजपा और शिवसेना वापस सत्ता में आ रही है तभी शिवसेना ने मुख्यमंत्री की कुर्सी मांग सबको चौंका दिया. 

बाद में शिवसेना-NCP-कांग्रेस के बीच संभावना तलाशी जा रही थी, राष्ट्रपति शासन घोषित किया जा चुका था, फिर भी पर्दे के पीछे बातचीत चल रही थी. ऐसा लगा कि बात पक्की हो गई, बस अगले सुबह ऐलान होना बाकी है. अख़बार ने सुत्रों के हवाले से अपनी हेडलाइन लगा दी और निश्चिंत हो गए. 

लगभग तमाम अख़बारों की हेडलाइन यही दावा कर रही है कि उद्धव ठाकरे राज्य के मुख्यमंत्री होंगे. शिवसेना को NCP का समर्थन मिल गया है. अख़बारों में बहुत देर होने पर भी 2 बज़े तक यह तय हो जाता है कि अगले दिन की हेडिंग क्या होगी, क्योंकि उसे छापने और शहर के कोने-कोने तक पहुंचाने में भी समय लगता है. अख़बारों ने अपने हिसाब से ही काम किया. 

जब मशीनों में अख़बार के पन्ने छप रहे थे, तब राजनीति का पहिया भी घूम रहा था और दोनों अलग दिशा में आगे बढ़ रहे थे. आख़िर में अख़बारों के हेडलाइन कहीं और पहुंचे और राजनीति ने सुबह-सुबह अलग तस्वीर पेश की, दोनों एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत थी. 

महाराष्ट्र की राजनीति में इस तारीख़ को जैसे भी याद किया जाएगा, प्रिंट मीडिया इसे एक सबक की तौर पर ही याद रखेगी.