प्रिय मित्र,

नमस्कार, आज बहुत भारी मन से मैं ये लिख रहा हूं. अगर आज तुम मेरे सामने होते, तो मैं तुम्हें भरत-मिलाप वाला Hug कर लेता. आज मैंने उस भयानक मंज़र को देखा है, जिससे तुम मुझे हमेशा बचाते रहे है. यू टर्न लेकर सीधा पॉइंट पर आता हूं… चार्जिंग पॉइंट पर.

दरअसल मैं सिर्फ़ अपनी बात नहीं कहूंगा, मैं उन तमाम कामचोरों की और से बोलूंगा. हम वो लोग हैं, जो जब कॉलेज में थे तब बैग में Deo ज़रूर रखते थे, ऑफ़िस जाना शुरू किया, तब कभी न काम आने वाला नोटपैड रखना शुरू कर दिया, लेकिन कभी भी हमारे बैग में फ़ोन चार्जर को जगह नहीं मिली.

कॉलेज में पतली पिन के चार्जर के लिए दर-दर भटकते थे, आज C टाइप के लिए मरते हैं. मगर मजाल है जो हम कभी चार्जर साथ लेकर चलें. और हम ऐसे क्यों हैं? क्योंकि हमारे ज़िंदगी में आप जैसे परमात्मा रहते हैं, जो इंसान की शक्ल में फ़रिश्ता हैं.

आप वो लोग हैं, जो बैग पैक करते वक़्त तब भी फ़ोन चार्जर रख लेते हैं, जब आपके पास पूरा Charged फ़ोन और पावर बैंक रहता है. इतना कष्ट आप सिर्फ़ इसलिए उठाते हैं कि किसी को ज़रूरत पड़ जाएगी.

आपकी इस मासूमियत का हमने फ़ायदा उठाना शुरू कर दिया. स्कूल के दिनों हमें दूसरों की बोतल से पानी पीने की आदत थी, अब हमारी नज़रें चार्जरों पर भी पड़ने लगी.

मेरी ज़िंदगी में तुम्हारी एहमियत का एहसास मुझे आज हुआ, जब नोटिफ़िकेशन भेज-भेज कर जब मेरा फ़ोन त्राहिमाम-त्राहिमाम चिल्ला रहा था और मेरे आस-पास कोई मसीहा नहीं था, तब मैंने अपने हाथ में अपने फ़ोन को तिल-तिल करके मरते हुए देखा था.

ऐसा एहसास था मानो PUBG में मुझे गोली लगी हो और कोई रिवाईव करने वाला मौजूद न हो. मेरे फ़ोन का मरना तय था. मैंने लाख जतन किए. ब्राइटनेस कम की, नेट ऑफ़ कर दिया, उसे पावर सेवर मोड पर भी डाल दिया. बावजूद इसके मेरे आख़ों के सामने वो ऑफ़ हो गया.

तब मुझे तुम्हारी बेहद आई और बेहिसाब आई… तुम होते तो आज ऐसा न होता. फिर भी सबक के लिए ठोकर की ज़रूरत पड़ती है.

शुक्रिया मेरे दोस्त, आज तुमने मुझे चार्जर की एहमियत समझा दी.

तुम्हारा,

चार्जरखोर