देखो सच कहूं तो भइया दिवाली पर भी अपने पास करने को कुछ ख़ास नहीं है. ऐसे में ख़ुरपेची के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा. कोरोना का रोना हर जगह चल ही रहा है. आलम ये है कि हमारी तरह इस बार प्रभु राम भी अयोध्या से ही वर्क फ़्रॉम होम कर रहे हैं.

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ऊपर से ये मुए पर्यावरण की चिंता करने वाले और आफ़ती हैं. बोल रहे कि दिवाली पर पटाखे जलेंगे, तो प्रदूषण होगा. बताइए, प्रदूषण के चलते हम त्यौहार भी न मनाएं? अब मौज लेने के लिए एक ही दिन तो होता है, सांस तो रोज़ ही लेते!

ख़ैर, प्रदूषण से याद आया हमारे माननीय नेतगाण भी किसी ज़ोरदार पटाखे से कम नही हैं. सच्ची-मुच्ची. हर नेता कोई न कोई पटाखे का गुण लिए बैठा है. यहां हमारा तात्पर्य आग लगाने और माहौल प्रदूषित करने से कतई नहीं है, बाकी बारूद के कनस्तर पर बैठकर माचिस जलाने वालों को जो समझना है समझें.

तो चलिए फिर जानते हैं कि कौन से पटाखे हमारे अति प्रिय नेताओं की ज्वलनशील पर्सनैलिटी को बयां करते हैं.

1.मोदी जी वो अनार हैं, जो कभी भी फट सकता है

जी हां, हमारे सर्वप्रिय प्रधान सेवक बिल्कुल अनार माफ़िक हैं, जो कभी भी फट सकता है. नादान मोहल्ला अनार के चारों ओर ढिच्चक-ढिच्चक कर नाचा करता है. इस बात से बेख़बर कि अनार डेमोक्रेसी की सस्ती दुकान से खरीदा गया है. 

बस फिर क्या, अगले ही दिन पेपर में हेडलाइन छपती है. ‘जागरूकता के अभाव में अनार ख़रीदना पड़ा भारी, आतिशबाजी के दौरान जला युवक का हाथ’.

2. प्रियंका गांधी वो कलरफ़ुल मेहताब हैं, जिसे अनार जलाने के लिए लाया गया है

अनार को माचिस से जलाना किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं है. अनार तो जलता नहीं, तीलियां ही ज़ाया होती हैं. यही लिए कलरफ़ुल मेहताब अच्छा ऑप्शन समझा जाता है. प्रियंका गांधी वही ऑप्शन मालूम पड़ती हैं. बस समस्या ये है कि अनार जलाने की ख़्वाहिश लिए मोमबत्ती के आगे ‘हाथ’ मेहताब लिए तो बैठा है, लेकिन चिंगारी है कि निकलने का नाम ही नहीं ले रही.

3. सोनियां गांधी वो चटाई हैं, जिसमें अब तक धमाके जारी हैं

सोनिया गांधी किसी महंगी चटाई से कम नही हैं. वो चटाई, जो दगना शुरू होती है तो थमने का नाम ही नहीं लेती. एक पल को धमाके थमते हैं तो लौंडे उसके क़रीब दूसरा पटाखा लगाने पहुंच जाते हैं. इस बात से अनजान कि बारूद में चिंगारियों का असर अभी मौजूद है.

4. राहुल गांधी उसी चटाई का वो मिर्चा हैं, जो बेचारा दग न पाया

राहुल गांधी उसी चटाई का वो मिर्चा हैं, जो बेचारा दग न पाया. जी हां, चटाई की चटचटाहट कितनी भी क्यों न हो, पर सुबह तक वो थम ही जाती है. बचता है तो वो एक अदना सा मिर्चा, जो चटाई के धागे में बंधे होने के बावजूद दग न पाया. फिर सुबह हाथ बराबर लौंडे उसको सड़क से बटोर कर मजा लूटते हैं. 

5. योगी जी बिल्कुल बुलट बम की तरह हैं

योगी जी बिल्कुल बुलट बम है, जिसे आदमी ले तो आता है लेकिन दगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. चक्कर क्या है न! इसको दगाने वाला या तो अपना हाथ जला बैठता है, या फिर इसकी भयंकर आवाज़ के चक्कर में गालियां खाता फिरता है.

6. कन्हैया कुमार वो लहसुन बम हैं, जिसे सरकार बैन करना और विपक्ष फ़ोड़ना चाहता है

लहलुन बम का अपना ही भौखाल होता है. सारे उधमी लौंडे इसे लिए-लिए फिरते हैं. इसे जब जहां फ़ेंका जाता, ससुरा तगड़ा धमाका करता है. कन्हैया कुमार भी लहसुन बम की तरह ही हैं. यही लिए सरकार इन्हें बैन करने और विपक्ष फोड़ने के लिए मरा जा रहा.

7.मायावती पिछले साल का सीला हुआ पटाखा हैं, जो अब दग न पाएगा

मायावती पटाखा तो हैं लेकिन पिछले साल का, जो अब सील चुका है. आग पकड़ेगा नहीं और जिसने भी इसका बारूद निकालकर जलाने की कोशिश की है, वो बेचारा तगड़े से जला है. न यकीन हो तो अखिलेश भाईसाब से पूछ लीजिए.

8. अखिलेश यादव चकरगिन्नी हैं, जो बस नाचती ही रहती है 

कभी कांग्रेस का हाथ इनकी साइकिल पंचर करता है तो कभी हाथी कुचल देता है. यूपी का लौंडा-लौंडा बोलकर हर कोई इन्हें लौंडा ही बनाए डाल रहा. आलम ये है कि ‘मुलायम’ पुत्र चकरगिन्नी माफ़िक हो चले हैं.

9. अरविंद केजरीवाल फूलझड़ी हैं, जिसका ख़तरनाक पटाखों के बीच रहना ज़रूरी है

पटाखों के जखीरे में मासूम सी दिखने वाली फूलझड़ी के दुई-चार पैकेट ज़रूर होते हैं. अरविंद बाबू वही फूलझड़ी हैं. बड़े रंगबाज़ जहां तहलखा मचा देने वाले पटाखे फोड़ कर माहौल सेट करते हैं. वहीं, कुछ लोग फूलझड़ी के सहारे कलाकारियां करते फिरते हैं. काहे कि ये ख़तरनाक कम और रौशनी ज़्यादा छोड़ती है. बाकी है तो पटाखा ही, कुछ तो प्रदूषण फैलना लाज़मी है.

10. नीतीश कुमार वो रॉकेट हैं, जिसके नीचे आग लगती तो ऊपर धमाका तय था

भाईसाब! आग तो पकड़ ली थी, लेकिन मोदी जी के भाषणों को सुन बिहारियों का दिल पसीज गया. एंड मौके पर सुतली काट दी गई, नहीं तो आग बिहारी बाबू के नीचे लगती और धमाके साहब के आजू-बाजू सुनाई दे रहे होते. ख़ैर, सियासत कितनी भी गिरे, लेकिन लोकतंत्र रॉकेट माफ़िक ऊंचाई पर पहुंचना चाहिए.

कुल जमा ये है कि भले ही त्यौहारी पटाखे बैन हो गए हों, लेकिन सियासी पटाखों का प्रदूषण फैलाना जारी रहेगा.