रावण को अपने युग का प्रकांड पंडित और ज्ञानी माना जाता है. लेकिन हमको लगता है कि रावण भाईसाहब बहुत भोले और निहायती लापरवाह आदमी थे. काहे कि बंदे को अपने आसपास चल रही कलाकारियों की रत्तीभर भी ख़बर नहीं थी.   

मतलब सोचने वाली बात है कि अगर आदमी इत्ता ज्ञानी था, तो उसको पता नहीं कि मोटापा सेहत के लिए हानिकारक होता है. हंडे जैसन पेट निकाले पूरे में लफर-लफर टहला करत रहा. ऊपर से भाई भी देखो कैसे रहें, एक ठोर कुंभकरण, जो पूरा टाइम सोवत ही रहें. मतलब दूसरे मोहल्ले का आदमी आकर उनके भाई को पेले दे रहा और इनका खाली सोने का पड़ा.  

दूसरा छुटका भाई विभीषण तो और बड़ा वाला निकला. जाकर बक दिए कि भइया हमारे बड़े भाई के नाभी पे तीर दे मारो, बस टाएं हो जइयें. अगर रावण में अठन्नी बराबर भी अक़्ल होती तो क्या लंका में दल-बदल क़ानून ना आ जाता. फिर देखते कैसे विभीषण को लंका से ‘घुस नाइट का बोर्ड’ लगवाते.   

ख़ैर, जब हमारी किसी को सुननी ही नहीं है, तो फिर क्या मतलब. मरो जाकर. मुद्दा तो फ़िलहाल ये है कि अगर आज रावण की तरह हमारे भी 10 सिर होते तो क्या होता? लीजिए फिर अतरंगी पेशकश का मज़ा…  

1.

अमा हां, महीने में देखो एक बार तो हम अपना झबरा जैसा बाल कटवा ही लेते हैं. अब बाल भले ही हमारा कटोरा छाप कटे लेकिन 100 रुपये की चपत तो मान कर चलो. ई हिसाब से अगर 10 सिर होता तो हज़ार रुपया का चुंगी लगता. ऊपर से हमारी अम्मा सौ रुपया सुनकर इतना आग-बबूला होती हैं, तो सोचिए अगर हज़ार लगता फिर तो हमारे बाल मोची के पास बैठाकर छिलवा देतीं.  

2.

मुंह भले ही फ़िनाइल से साफ़ करने लायक हो, लेकिन यूज़ हम फ़ेस वॉश ही करते हैं. अब 10 ठोर मुंह लिए होते फिर तो महीनेभर का मामला तीन दिन में ही निपट जाता.   

3.

गड़बड़ गिनती में नहीं है दरअसल, हम यूपी से हैं. यहां अगर 10 सिर लेकर बिना हेलमेट निकलते तो चालान 11 बार कटता. काहे कि हमारे यहां की पुलिस बाइक वालों का भी सीट बेल्ट न लगाने के चलते चालान काट देती है.    

4.

नासपीटा कोरोना तो और बवाल कराता. एक मुंह को वायरस से बचाया न जा पा रहा, 10 होते तो कांड ही हो जाता. पता चला भाईसाहब 10 ठोर मास्क लगाए हिलहिलाते चले जा रहे.  

5.

भइया खोपड़ी भले ही 10 हों, लेकिन हाथ तो दुई ही हैं. पता चला सुबह से रगड़ना शूरू करते और शाम तक घिसते मरते. अमा, सच में रावण की भी ढिठई का जवाब नहीं, मतलब तुम साला शिव जी के भक्त होकर 10 सिर का जुगाड़ कर सकते हो, लेकिन ब्रह्मा जी से चार हाथ उधार नहीं ले सकते. हद नंबरीपना है.  

6.

जिस हिसाब से सुट्टेबाजी चल रही है, अगर 10 मुंह होते तो भाई अभी हम ये सब लिखकर अपना खलिहरपना न दिखा पाते. मतलब मुंह भले ही 10 रहते पर मासूम फ़ेफ़ड़ा तो एक हई है. अब तक तो तुम्हारे इस भाई के फ़ेफड़े फट के बाहर आ जाते.  

7.

आधार कार्ड वाले दो आंखें और एक मुंह स्कैन करने में तो इतना रो देते हैं. सोचिए अगर 20 आंखें और 10 ठोर थोपड़े लेकर पहुंच जाते, फिर तो बंदा जूता लेकर मुंह ही मुंह बजा देता. पीठी पे कोहनी-घुटना एक के साथ एक फ़्री अलग से देता.   

8.

अच्छा हुआ प्रभु, जो तूने 10 सिर नहीं दिए. बाकी चीज़े तो बर्दाश्त भी कर लेते, लेकिन ये असहनीय पीड़ा न झेली जाती. अगर ग़लती से भी 20 कानों से हुज़ूर की स्पीच सुननी पड़ जाती तो, दिलवाले में जैसे पागल अजय देवगन ख़ून-ख़ून चिल्लाता था, वैसे ही हालत हमरी भी होती.  

9.

देखो अंदर की बात है, खुलकर नहीं बता सकते. बस ये समझ लो कि एक दिमाग़ है तो उसका इतना बेजा इस्तेमाल करवाया जा रहा. ग़लती से 10 मिल जाते फिर तो हम अब तक छाती पीट-पीट कर सड़क पर चिल्लाना शुरू कर चुके होते.   

10. 

अमा हां, मुंह दिखाना तो छोड़ो यहां छिपाने के वांदे हो जाते. जौन हिसाब के हम ढीठ हैं, उसके लिए मुंह छिपाकर घूमना बहुत ज़रूरी है. लेकिन 10 सिर लिए होते तो खाली दुई पर ही हाथ ढक पाते, फिर भी 8 बेशर्मी से बाहर झाका करत. ऐसी नाक कटती की वाकई में हम शूर्पणखा के भाई मालूम पड़ते.  

ख़ैर राम जी का शुक्रिया अदा करो कि अपन के 10 सिर नही हैं. काहे कि एक मुंह से जब हम इतनी मुंहपेलई कर रहे हैं, तो सोचिए अगर वाकई में 10 होते तो फिर आपका क्या होता?  

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