स्पोर्ट्स डे के मौके पर खेल मंत्रालय ने फ़िट इंडिया मूमेंट की शुरुआत की और जैसा कि हमेशा होता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने उसे लॉन्च किया. 

The Hindu

नरेंद्र मोदी थे, माइक था तो भाषण का मौका भी बनता है. पहले तो प्रधानमंत्री ने कहा कि कलाकारों ने ऐसी प्रस्तुती दी है कि उन्हें अब भाषण देने की ज़रूरत महसूस नहीं होती. ख़ैर, इसके बाद भी प्रधानमंत्री जी आधा घंटा बोल गए. 

भाषण के दौरान मोदी जी ने फ़िटनेस के फंडे दिए, एक हिस्से में प्रधानमंत्री जी ने कहा कि पुराने समय में बच्चों को ‘त से तलवार’ पढ़ाया जाता था, सीमित सोच के लोगों को लगा कि इससे बच्चे हिंसक हो जाएंगे. बदलकर बच्चों को ‘त से तरबूज़’ पढ़ाया जाने लगा. उनका आरोप था कि इन बदलावों से मानसिक असर पड़ता है, हमारी वीरता की परंपरा ही डिरेल हो चुकी है. 

मतलब प्रधानमंत्री जी ने पहले तलवार को वीरता से जोड़ा, फिर उसे लिंक कर दिया फ़िटनेस से और तरबूज जैसे लाभकारी फल को फ़िटनेस से अलग किया उसकी बात ही रहने देते हैं. तिस पर से सीमित सोच रखने का आरोप किसी और पर! धन्य हो प्रभू! 

नरेंद्र मोदी की थ्योरी पर चलें तो बच्चों को अगर ‘भ से भालू’ की जगह ‘भाला’ और ‘ड से डमरु’ की जगह ‘डंडा’ पढ़ाया जाए तो बच्चों के वीर और फिर फ़िट होने की प्रोबेबिलिटी पढ़ जाएगी. ये तो पुराने ज़माने की बात हो गई, नई शिक्षा नीति जब लागू होगी तब शायद A फ़ॉर AK47 और T फ़ॉर Tank भी पढ़ाया जाए, वैसे भी इस सरकार को टैंक से कुछ ज़्यादा ही लगाव है, JNU कैंपस में विद्यार्थियों को बलिदान और वीरता का पाठ पढ़ाने के लिए एक सैंपल रखवा चुकी है. 

जहां विकसित देशों में ये प्रयास चल रहे हैं कि कैसे बच्चों को हिंसक चीज़ों से दूर रखा जाए, पाठ्यक्रम में ऐसी चीज़े न हों जिससे बच्चों के भीतर हिंसक मनोवृत्ति पैदा हो. रिसर्च हो रहे हैं कि गोली-बंदूक वाले वीडियो गेम खेलने से बच्चों पर कैसा असर पड़ता है. इधर हम ‘त से तरबूज’ की जगह ‘त से तलवार’ पढ़ाने की बात कर रहे हैं. पढ़ाया तो ‘त से तबला’ भी जा सकता है, एक कला की बात भी हो जाएगी और उसे बजाने से ठीक-ठाक कसरत भी होगी लेकिन तबले में तलावर जैसी वीरता वाली बात नहीं है न!