Real Summer Problems: गर्मियों में दो चीज़ें ढूंढने से भी नहीं मिलतीं. एक तो राहत और दूसरी है सूअर और ख़ुद की शक्ल में अंतर. क्या कीजिएगा भइया, जब पारा 50 को छूने लगे. पूरा शरीर चपचपाए पड़ा है. सूअर तो फिर भाग्यशाली हैं, जो कीचड़ में लोट सकते. अपने पास तो वो भी सुविधा नहीं. करें तो क्या करें इस गर्मी का! मगर दिक्कत खाली चपचपाहट की नहीं है. ये मनहूस गर्मी बहुत अलग-अलग लेवल की तकलीफ़ें देती है. ऐसी-ऐसी परेशानियां कि क्या ही बताएं. ख़ैर, अब लिखने बैठे हैं, तो बता ही देते. वरना फ़ालतू में तुम लोग भी गरियाओगे.

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तो चलिए जानते हैं गर्मी में होने वाली असल परेशानियां- Real Summer Problems:

1. ज़ीब्रा बन जाना

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गर्मी में धूप में बाहर निकले नहीं कि पूरा शरीर ज़ीब्रा माफ़िक नज़र आता है. जहां तक कपड़े से ढका, वहां सफ़ेद और जो हिस्सा खुला वो काला. ऊपर से छाती पर सफ़ेद V का निशान ऐसे बन जाता है, जैसे धूप से ज़िंदा वापस आकर कोई बड़ी फ़तह हासिल कर ली हो. 

2. कपड़ों पर पसीने के निशान

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गर्मियों में सुबह पहनी टी-शर्ट शाम तक गीला पोछा बन जाती. मगर असल दिक्कत तो तब होती है, जब यही टी-शर्ट बदन पर सूखती है. फिर उस पर जो खट्टे दही माफ़िक निशान नज़र आते हैं. आए हाए हाए… जिसने पहनी है, उसको छोड़कर सबको उल्टी हो सकती है.

3. घमोरियां

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गर्मी में पूरा शरीर साबूदाने के पापड़ सा नज़र आता है. कहीं भी हाथ फेरो, उभरे-उभरे दाने. उस पर से खुजली ऐसी कि गंदी नाली के कुत्ते को कम्पटीशन दे बैठें.

4. दो अनमोल रत्नों का तवा फ़्राई बन जाना

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धूप में खड़ी बाइक पर बैठना जिगरे का काम है. सॉरी… काम तो कूल्हों का है, मगर बैठने के लिए जिगरा चाहिए. ये समझ लीजिए कि जलते तवे और धूप में तपती गद्दी में से एक पर बैठने का ऑप्शन हो, तो मैं तवे पर बैठना पसंद करूंगा.

5. जांघें छिलने के बाद चाल मिथुन दा सी हो जाती है

ये अलग लेवल की दिक्कत है. पसीने से ऐसे जांघे छिलती हैं कि आदमी पूरे में मिथुन दा बना फिरता है. ऐसे में अगर कहीं पैदल चलना पड़ जाए, तो भइया चीखें निकल जाती हैं.

6. आंखों में पसीना जाना

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चरचराहट की इंतिहा वही समझ सकता है, जिसकी आंखों में कभी पसीना गया हो. मतलब ऐसा लगता है, मानो किसी लालमिर्च ने आहिस्ता से चुम्मी ले ली हो. असीम परपराहट होती है. 

7. हिजाबी बन जाना

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ये धर्म का नहीं, बल्कि धूप का मामला है. और धूप लड़की-लड़के में भेदभाव नहीं करती, ये सबको हिजाबी पहनने को मजबूर करती है. गर्मी पर सड़कों का नज़ारा ऐसा लगता है, मानो हर ओर मिस्र की ममीज़ छोड़ दी गई हों.

Real Summer Problems: सबसे दुखद बात ये है कि गर्मी की इन परेशानियों का कोई हल नहीं है. हां, चाहो तो नोरा फ़तेही की तरह ‘हाए गर्मी’ बोलकर बस उचक सकते हो.